"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।

शनिवार, अक्तूबर 19, 2019

मानव अधिकार समस्त मनुष्य का जन्मजात अधिकार है यह किसी भी शर्त में छिना नही जा सकता - एचपी जोशी

मानव अधिकार समस्त मनुष्य का जन्मजात अधिकार है यह किसी भी शर्त में छिना नही जा सकता - एचपी जोशी

पुलिस, सेना और सस्त्र बल के जवानों को मानव अधिकार पर कोर्स करने की जरूरत है - एचपी जोशी

मानव अधिकार क्यों पुलिसकर्मियों के शहादत पर मौन हो जाती है? क्या पुलिसकर्मियों का मानव अधिकार नही होता?

आइए आज हम मानव अधिकार के बारे में संक्षिप्त में कुछ जानने का प्रयास करेंगे क्योंकि हम मानव है और मानव होने के नाते प्रकृति ने सदैव से अधिकार दिया है कि हम सभी मनुष्य ही नही वरन् सभी जीव उसके समक्ष समान हैं प्रकृति किसी भी जीव से किसी भी प्रकार से भेद नहीं करती यही ‘‘प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत’’ इसे हम ‘‘नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत’’ के नाम से भी जानते हैं। आज हम जिसे मानव अधिकार के नाम से जानते हैं वह ‘‘प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत’’ अर्थात ‘‘नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत’’ से ही प्रेरित है। 

‘‘स्वतंत्रता और समानता के अधिकार मनुष्य के जन्मसिद्ध अधिकार है।‘‘ जिसे मनुष्य से अलग नहीं किया जा सकता। व्यक्ति को उसके मानव अधिकारों से वंचित करने का अर्थ है दे के भीतर आंतरिक अशांति और गृहयुद्ध को आमंत्रित करना। मानव अधिकार ही ‘‘प्राकृतिक अधिकार’’ है इसे ‘‘व्यक्ति के अधिकार’’ के नाम से भी जाना जाता था। अधिकार मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है इसके बिना कोई नागरिक अपनी समग्र विकास नही कर सकता और न तो अधिकार के बिना वह सही अर्थों में हो सकता। दूनिया के हर नागरिक को अपने देश अथवा सरकार से अधिकार पाने का अधिकार है जिसे वह सरकार के विरूद्ध दावा कर सकता है। कोई देष अपने नागरिक को जितना अधिकार देता है उसी के आधार पर उसकी अच्छाई या बुराई का आंकलन किया जा सकता है। 

मानव अधिकार क्यों पुलिसकर्मियों के शहादत पर मौन हो जाती है? क्या पुलिसकर्मियों का मानव अधिकार नही होता?
मानव अधिकार पर कार्य करने वाले सभी लोगों और संस्थाओं को भली भांति ज्ञात है कि किसी भी व्यक्ति से उसका मानव अधिकार किसी भी शर्त में छिना नही जा सकता है। ऐसा मानव अधिकार में ही प्रावधान है। यह बडी विडम्बना है दूख का विषय है कि हम मानव अधिकार पर कार्य करते हुए केवल एक वर्ग विशेष के लिए कार्य करने लग जाते हैं सीमित और संकुचित हो जाते हैं जबकि हमें भी मानव अधिकार के निष्पक्षता के अनुरूप ‘‘नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत’’ के समानांतर चलते हुए कार्य करना चाहिए। यदि हम ऐसा नही करते मतलब हमें मालूम है हम किसी दूसरे पक्ष को अन्याय का सामना करने के लिए छोड रहे हैं। इसलिए मानव अधिकार पर कार्य करने वाले लोगों और संस्था को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से कार्य करने की जरूरत है चाहे क्यों न पुलिस राज्य का अंग है और हमें राज्य से अधिकार पाने का हक है, फिर भी पुलिसकर्मी भी मूल रूप से मानव ही हैं, सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान भी मानव ही हैं, इसे हमें नही भूलना चाहिए। क्या हम प्रकृति के सिद्धांत के विपरित जाकर पुलिसकर्मी, सेना और अर्द्धसैनिक बल के जवानों को मानव की श्रेणी अलग कर सकते हैं? क्या हम किसी मनुष्य को किसी विशेष पद धारित कर लेने के बाद उसे मानव मानने से इनकार कर सकते हैं? जवाब आता है- ऐसा हम कदापि नही कर सकते हैl फिर तो हमें याद होनी चाहिए कि पुलिसकर्मी भी मानव ही हैं सेना और अर्द्धसैनिक बल के जवान भी मानव हैं, उनके भी वही अधिकार हैं जो सभी मनुष्य के हैं। अतः हमें पुलिसकर्मियों के मानव अधिकारों की रक्षा के लिए भी संकल्पित होकर कार्य करने की जरूरत है। यह देखने की जरूरत है कि क्या देश के सेना, अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस के जवान को भी उनका मानव अधिकार मिल रहा है कि कोई उनके मानव अधिकारों का हनन कर रहा है?

पुलिसकर्मी, सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान भी मनुष्य हैं इनके भी मानव अधिकार हैं वैसा ही जैसा हम सब नागरिकों का है फिर इन्हें क्यों वंचित रखा जाए? ये वर्दी के भीतर और वर्दी के बाहर मूल रूप से मानव ही हैं, समाज के अंग हैं, हमारा दोस्त है, बेटा/बेटी है और भाई/बहन है। आइए संकल्पित होकर कार्य करें बिना भेदभाव किये मानव अधिकारों को लागू करने में कार्य करें, देखें कि कोई ऐसा वर्ग तो नही हैं जो अपने मानव अधिकारों से वंचित है। यदि ऐसा हो रहा है तो इसकी सूचना संबंधित राज्य के राज्य मानव अधिकार आयोग, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग और अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को देकर इनका भी पक्ष रखें और इन्हें भी न्याय दिलाएं।

ये जो प्रश्न उठता है कि मानव अधिकार क्यों पुलिसकर्मियों के शहादत पर मौन हो जाती है? क्या पुलिसकर्मियों का मानव अधिकार नही होता? क्या मानव अधिकार कार्यकर्ता पूरी ईमानदारी से कार्य कर रहे है?? आइए इसका सामना करें और सिद्ध करें कि ‘‘हां’’ मानव अधिकार कार्यकर्ता पुरी ईमानदारी से न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत के अनुरूप काम कर रहें हैं किसी को प्राथमिकता और किसी से भेद नही कर रही है।

अक्सर मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और संस्था के उपर आरोप लगता है कि देश के विशेषकर बस्तर (छत्तीसगढ़) में पुलिसकर्मियों और अर्द्धसैनिक के शहादत पर चूप नजर आते हैं। जबकि बस्तर में हजारों की संख्या में मानव अधिकार कार्यकर्ता हैं इसके बावजूद पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवान के हत्या पर बेजूबान हो जाते हैं आइए कुछ बोलें, मुह खोलें। 

इस लेख के माध्यम से मै उन नये साथियों से भी अपेक्षा करता हूं जो अभी हाल ही में इग्नू से ‘‘मानव अधिकार में प्रमाण-पत्र‘‘ कोर्स कर रहें हैं मानव अधिकार पर कार्य करने का लक्ष्य बनाए हुए हैं। सुनिश्चित करें कि मानव अधिकार पर कार्य करते हुए वे किसी भी शर्त में किसी वर्ग के साथ भेदभाव नही करेंगे, अपने कर्तव्य में पुलिस और अर्द्धसैनिक बल के जवानों के मानव अधिकारों पर भी ईमानदारी से कार्य करेंगे। पुलिस और अर्द्धसैनिक बल के जवानों के मानव अधिकार का भी पक्ष लेंगे। संकल्प लें कि हम मानव अधिकार को उसके सही दिशा में लेकर जाएंगे, मानव अधिकार के वास्तविक उद्देश्य पर कार्य करेंगे। मानव अधिकार के मूल सिद्धांत पर कार्य करेंगे और ‘‘प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत’’ अर्थात ‘‘नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत’’ से सदैव प्रेरित रहेंगे।

पुलिस, सेना और सशस्त्र बल के जवानों को मानव अधिकार पर कोर्स करने की जरूरत है - एचपी जोशी
मानव अधिकार को लेकर पुलिस, सेना और सशस्त्र तथा मानव अधिकार कार्यकर्ताओं व संस्थाओं के उद्देश्य में कोई मतभेद नही है फिर भी कतिपय मामलों में ऐसा देखा गया है कि माननीय न्यायालय के समक्ष दोनों आपस में परस्पर विरोधी पार्टी नजर आते हैं। इसे दूर करने के लिए आवश्यक है कि मानव अधिकार पर कार्य करने वाले संस्था और कार्यकर्ता पुलिस, सेना और सशस्त्र के जवानों के मानव अधिकार की सुरक्षा के लिए भी कार्य करें तथा पुलिस, सेना और सशस्त्र के जवान मानव अधिकारों के भली भांति जानकार हों। इसके लिए पुलिस, सेना और सशस्त्र के जवान ‘‘मानव अधिकार में प्रमाण-पत्र’’ कोर्स कर सकते हैं।

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