"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।


मंगलवार, दिसंबर 31, 2019

नया साल 2020, आपके सुख, समृद्धि और सफलता के लिए हो : हुलेश्वर जोशी

नया साल 2020, आपके सुख, समृद्धि और सफलता के लिए हो : हुलेश्वर जोशी

आदरणीय/ आदरणीया

पिछले वर्षों में आपने अपने जीवन के साथ सुख, समृद्धि, शांति, स्वास्थ्य, उन्नति, सफलता, बंधुत्व और शांति प्राप्त करने के तरीकों को जान लिया है। कतिपय मामलों में कुछ शेष हो तब भी कोई बात नही, क्योंकि जीवन पर्यंत मनुष्य को सीखने का अवसर प्राप्त होता रहता है। इसलिए हम अपेक्षा करते हैं कि आपके जीवन मे आने वाले सभी चुनौतियों का आप तठस्थ होकर सामना करेंगे और बिना रुके, बिना हारे सफलता को हासिल कर लेंगे, कतिपय मामलों में पराजय को भी शिक्षा का एक अध्याय जानकर स्वीकार लेंगे मगर दुखी नही होंगे। इसी कामनाओं के साथ नया साल 2020 के लिए आपको शुभकामनाएं, आप जीवन पर्यंत खुश रहें और उन्नति करें।

एतद्द्वारा मैं आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।

भवदीय
(हुलेश्वर जोशी)
नवा रायपुर, अटल नगर, छत्तीसगढ़

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नए साल के लिए मेरे द्वारा लिखे कविता शीर्षक "नये साल, नव संकल्प हमारा" को आपके लिए सादर प्रस्तुत करता हूँ।

नये साल, नव संकल्प हमारा
"मानवता ही धर्म" के सिद्धांत को अपनाएंगे।
सहपाठी सब, भाई बहन हैं
अनवरत, रक्षा का धर्म निभाएंगे।।
न, जाति-धर्म की होंगी बन्धन
"मनखे-मनखे एक समान" हो जाएंगे।।।
राष्ट्रीय सुरक्षा, और गरिमा के लिए
न्यौछावर, प्राण कर जाएंगे।।।।
नये साल ...........

भ्रूण हत्या, भेदभाव के खिलाफ
एक नया, मुहिम चलाएंगे।
"जम्मो जीव हे भाई बरोबर"को धर्म, अपना बनाएंगे।।
स्वर्ग की कल्पना, साकार करने
सत्य, अहिंसा को अपनाएंगे।।।
शाकाहार, आयुर्वेद के लिए
हम 10-10 पेड़ लगाएंगे।।।।
नये साल ...........



शनिवार, दिसंबर 21, 2019

अंधभक्ति और कुरीतियों की शुरुआत कैसे होती है? - काल्पनिक स्वप्न पर आधारित लेख - एचपी जोशी

अंधभक्ति और कुरीतियों की शुरुआत कैसे होती है? - काल्पनिक स्वप्न पर आधारित लेख - एच पी जोशी

आइए अंधभक्ति और कुरीतियों की शुरुआत कैसे हुई थी इसे समझने के लिए मेरे पिछले जन्म की एक काल्पनिक कहानी पढ़ते हैं ताकि हमें समझ में आ सके कि किसी भी देश, धर्म अथवा समाज में किस तरह से अंधभक्ति और कुरीतियों की शुरुआत होती है।

पिछले कुछ जन्म पहले की बात है, मुझे उस जनम में खैरात की खाने की आदत थी। बड़ा गणितज्ञ जैसे आदमी था, बड़ा कुटिल बुद्धि वाला व्यक्ति था। मैं अपने आदत के अनुसार महीने में कम से कम 05 लोगों के साथ जरूर ठगी करता ताकि बड़े मज़े से मेरा जीवन चलता रहे।

पूस की माह थी, तिथि ठीक से याद नहीं आ रही है। तब अंग्रेजी कैलेंडर भी नहीं आया था। प्रातः लगभग 4बजे की बात है देखा कोहरा छाया हुआ था और आशंका थी कि कोहरा अभी और अधिक घना होने वाला था। मैंने गणित लगाया अपने लोगों रिश्तेदारों से कहा आप या तो मेरे बातों से सहमत होना या बैठक में मत आना। मैं एक महान गणित का रचना कर चूका हूं, प्रेक्टिकल करना है मुझे। सभी मेरे बात मान गए, मैंने "कचरू" हाका वाले को तत्काल बुलवाया, वह दौड़ता हुआ आया।

मैंने अपने कबिले सहित पास के 7कबिले वाले बड़े बुजुर्ग, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को एकत्र होने के लिए हाका लगवाया। सुबह के 7बजे के पहले ही मेरा सभा शुरू हो गया लगभग 25 कोरी से अधिक वयस्क सहित 40 कोरी लोग एकत्र हो गए।

सभा में गणित के सूत्र फिट ही कर रहा था कि पता चला घना कोहरा हटने वाला है मैंने सूत्र और कठिन करने के बजाय थोड़ी जल्दबाजी से काम लिया, बोला "अब जो मैं आप लोगों को बताने जा रहा हूं बड़ी धैर्य से बड़ी निष्ठा और विश्वास से सुनना और मानना, कहीं कोई चालाकी या अविश्वास नहीं करना आपकी अविश्वास पूरे धरती को काल के आगोश में डूबो सकती है। इसलिए सावधान रहना और पूरे ईमानदारी से ईश्वर से प्रार्थना करना कि वह हमारी मातृभूमि की, हमारी धरती की रक्षा करे। एक भी व्यक्ति का अविश्वास हमें सदा सदा के लिए समाप्त कर देगी। इसलिए सावधान रहना, कोई गणित बनाने की प्रयास मत करना।"

सबने हामी भरी! कोई पापी ही स्वरानंद पापोनाष्क महराज के आदेश का अवहेलना करेगा।

मैंने बताया अभी रात के तीसरे पहर में ही एक दिव्य विमान आया, जिसमें दिव्य पुरुष और स्त्रियां थी, स्वेत वस्त्र में साक्षात् चंद्रमा जैसे तेजस्वी दिखने वाली देवी ने मुझे कहा है कि "तुम अभी सूरज के सिर पर चढ़ने के पहले ही सभी मनुष्य को धर्म, कर्म और दान का संकल्प लेने के लिए मना लो, प्रकृति की रक्षा और पंचतत्व को ईश्वर मानने पर राजी कर लो नहीं तो आज सायं तो होगी, रात भी होगी मगर रात के ठीक तीसरे पहर के बाद दूसरा घड़ी नहीं होगी, पूरी धरती एक अंधकार में समा जाएगी, सूर्य चंद्रमा उगना बंद हो जाएंगे, हवा बर्फ बनकर जम जाएगी, पानी जहर में बदल जाएगी और धरती अस्थिर हो जाएगी।" उन्होंने धर्म, कर्म और दान के तरीके भी बताए हैं, यदि आप सभी चाहते हैं कि हम सब आज रात तीसरे पहर के बाद भी जीवित और सुरक्षित रहें, तो उनके बताए इस तीन संकल्प को दोहराना होगा। बताओ? सहमत हो!

एक स्वर में सभी ने सहमति दी और मेरा जय जयकार करने के साथ ही सबने मुझसे कृपा करने की प्रार्थना शुरू कर दी। कुछ विद्वानों ने तो मुझे साक्षात् ईश्वर का अवतार घोषित कर दिया।

मैंने 03 संकल्प दोहराने के लिए आदेश दिया और बताया कि ये तीनों संकल्प सच्चे मन से लेने से जल्दी ही धरती अपने सामान्य स्थिति में आ जाएगी और हम धरती, सूर्य, चंद्रमा, जल, वायु और अपने जीवन को बचाने में सफल हो जाएंगे, आप सबमें यदि कोई 10 व्यक्ति भी सच्चे मन से संकल्प नहीं लेगा तो हम कल की सूर्योदय नहीं देख पाएंगे। ऐसा कठोर धमकी दिया और पुनः आदेश दिया, चलो जल्दी से अपना अपना आंखें बंद करो और संकल्प दोहराएं :-
1- मैं सूर्य और चंद्रमा को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं, कि मैं सदैव धर्म, कर्म और दान के लिए अपने प्राणों की आहुति देने तक समर्पित रहूंगा/रहूंगी।
2- मैं अमृत रूपी जल, आत्मा रूपी वायु और स्वर्ग रूपी अगास को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं कि मैं स्वरानंद पापोनाष्क महराज के आदेशों का किसी भी शर्त में अवहेलना नहीं करूंगा, यदि ऐसा करूं तो नरक का भागी होऊं।
3- मैं अपनी माता और जन्मभूमि को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं कि यदि मैं भगवान के इच्छा के खिलाफ नहीं जाऊंगा और सच्चे मन, वचन और कर्म से भगवान स्वरानंद पापोनाष्क महराज के सेवा के लिए समर्पित रहूंगा। यदि ऐसा किया तो मुझे अगले जनम कीड़े मकोड़े के मिले।

सभी ने संकल्प दोहराया, अब संकल्प दोहराने के साथ ही मैं अपने काबिले के भगवान हो चुका था। संकल्प पूरा हुआ ही था, कि मेरा पुत्र तत्वम मुझे जगाने लगा और मुझसे खाने के लिए संतरा मांगने लगा।

जागकर देखा मैं अपने बेडरूम में ही सोया हुआ था, यहां कोई सभा नहीं था, मैं किसी कबिले का भगवान नहीं था, कोई आसपास के गांव के लोग नहीं आए थे। स्वप्न में संकल्प पूरा होने तक नहीं जगाने के लिए मेरे पुत्र तत्वम को धन्यवाद्।

उल्लेखनीय है कि जब मै स्वप्न और निद्रा त्यागकर चेतन अवस्था में आया तब नवा रायपुर में आज भी घना कोहरा छाया हुआ है, कोई 15मीटर दूर खडा व्यक्ति भी पहचान से परे हो रहा है, लगभग 40-50 मीटर दूर तो कोई कुछ दिखाई ही नही दे रहा है।

"काल्पनिक स्वप्न पर आधारित लेख", यदि किसी व्यक्ति अथवा समाज के आस्था को इस लेख पढकर चोट पहुंचती हो, तो लेखक क्षमाप्रार्थी है। HP Joshi

शुक्रवार, दिसंबर 20, 2019

अबोध विचारक और अंगूठाछाप लेखक होने का भी अपना मजा है - एचपी जोशी

अबोध विचारक और अंगूठाछाप लेखक होने का भी अपना मज़ा है - एचपी जोशी

लेखन और रचना के क्षेत्र में मैं वर्ष 1997-98 में ही जब कक्षा-7वीं का छात्र हुआ करता था तब से ही अपने बडे भैया श्री देव प्रसाद जोशी का नकल करते करते शुरू कर दिया था, हालांकि उस दौर में प्रायः अपने बडे भैया का कविता चुराकर अपने दोस्तों में होशियार बनता था और कुछ शायरी वगैरह लिखता भी तो वह भी चोरी से, कहीं बाबुजी न पकड लें, भैया यह न जान ले कि मैं शायरी लिखता हूं। चूंकि ग्रामीण परिवेश में जीवन जीने वाला अबोध छात्र और घुमंतू लडका था, मेरा शायरी साहित्य के कसौटी से परे हुआ करता था। वर्ष 2000 तक अपने शायरी लिखने के कारण अपने दोस्तों में कुख्यात हुआ करता था, इसी कारण बडे भैया से डांट भी खानी पडी, धमकी भी मिला और उन्होनें सही मार्ग दिखाया कविता और लेख का क, ख, ग सीखाया। आज मैं जो भी हूं चाहे लेखन के क्षेत्र में या फिर चाहे सेवा के क्षेत्र वह मैं अपने बडे भैया श्री देव प्रसाद जोशी के बदौलत ही हूं। एक बात तो भूल ही रहा था सायद वर्ष 1993-94 की बात होगी जब हमारे घर में कुंआ का जोडाई चल रही थी, लगभग 12-13 फिट ही जोडाई हुआ था लगभग पानी के भराव से थोडा कुछ आधा-एक फिट अधिक तब उसमें मैं गिर गया था, यदि मेरे बडे भैया न होते तो आज मैं न होता। उन्होनें मेरे लम्बे घने बाल और हांथ पकडकर बडी मुश्किल से निकाला था हांलांकि आज मेरे बाल घने भी नही हैं और न तो मैं लम्बा रखता हूं।

पहले मैं वर्ष-2001 से कंप्यूटर का इस्तेमाल करना शुरू किया, परन्तु लेखन और कविता इससे दूर कलम और काॅपी में ही रहती, फिर वर्ष-2009 में जब बडे भैया ने मुझे लेपटॉप गिफ्ट दिये तब से अपना लेख कलम काॅपी के बदले सीधे लेपटाॅप में करना शुरू किया, लेपटाॅप में दोनों हाथ के सारे अंगुली और अंगूठे से लिखता था। मेरे एक अनन्य मित्र श्री दिवाकर मिश्रा जी के प्रेरणा से वर्ष 2013 में जब स्मार्टफोन खरीद लिया तब से यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में अंगूठाछाप प्रोफेसर हो गया हूं। हांलांकि आज भी कविता को कलम काॅपी में ही लिखता हूं। मजे की बात यह है कि स्मार्टफोन ने टाॅयलेट टायमिंग को भी उपयोगी बना दिया है, मैं कई बार अपने बचे हुए लेख टाॅयलेट में ही लिखता हूं। मैं शुक्रगुजार हूं श्री मिश्रा जी का जिन्होने मुझे स्मार्टफोन प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में मेरी पहली ज्वायनिंग डिपार्टमेंट ऑफ स्क्रेब बुक में वर्ष 2009-10 में हुई थी, तब तक फेसबुक मुझे अच्छा नहीं लगता था, फिर डिपार्टमेंट ऑफ स्क्रेब बुक बंद होने के कारण मुझे मजबुरन वर्ष 2011 में डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में ज्वायनिंग लेना पडा, इसके साथ-साथ 2012 में डिपार्टमेंट ऑफ ब्लाॅगर में ज्वायनिंग ले लिया था और अभी वर्ष 2013 से डिपार्टमेंट ऑफ वाट्सएप्प में भी सक्रिय हूं। उल्लेखनीय है कि डिपार्टमेंट ऑफ स्क्रेब बुक में मुझे मेरे अनन्य मित्र श्री परमेश्वर निषाद के मार्गदर्शन और सहयोग से ज्वायनिंग मिला था।

यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में कोई वेतन नहीं मिलता, कोई भत्ता नहीं मिलता कोई विशेष सुविधा अथवा कोई लाभ नहीं मिलता। फिर भी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपना समय और बुद्धि का सदुपयोग करता हूं ताकि मेरे स्टूडेंट्स इसका फायदा उठा सकें, कोई किसी के बहकावे में न आ जाए।

जब तक मैं पेन वाला लेखक कवि था, आईएसबीएन नंबर का इंतजार किया, संपादक और प्रकाशक का प्रतीक्षा करता रहा। कोई मान्यता नहीं मिला, मगर अब अंगूठाछाप लेखक कवि होने के कारण मेरा सारा का सारा लेख, मेरा सारा का सारा कविता पूर्ण होने के पहले ही बिना संपादक, बिना आईएसबीएन के प्रकाशित हो जाता है। बाकायदा यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में लोगों को निःशुल्क अध्ययन और समीक्षा करने, अपनी प्रतिक्रिया देने का अवसर भी मिलता है। हां यह बात तो हानिकारक ही है कि कभी कभी यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया के स्टूडेंट्स और अन्य प्रोफेसर्स के निंदा और आक्रोश का सामना सीधा सीधा करना पड़ता है, कई बार बखेड़ा खड़ा हो जाता है कई प्रोफेसर को माफी मांगनी पड़ जाती है, मुझे भी अपना अंगूठा चलाकर ओवरराइटिंग करना पड़ता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया के डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में अधिक स्टूडेंट्स एडमिशन लेते हैं प्रोफेसर भी बहुत हैं ज्ञान का भंडार है यह सेक्टर मगर डिपार्टमेंट ऑफ ट्विटर में स्टूडेंट्स कम हैं प्रोफेसर अधिक हैं। मेरा काम प्रोफेसरी का है उपर से नौसिखिया तो डिपार्टमेंट ऑफ ट्विटर में मेरा क्या काम, सो मुझे डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में काम करने, लेक्चर देने में अच्छा लगता है। डिपार्टमेंट ऑफ टेलीग्राम में भी ज्वाइन करने का प्रयास किया मगर सफल नहीं हो सका, वैसे डिपार्टमेंट ऑफ वॉट्सएप में भी काम कर लेता हूं मगर समस्या यह है कि उसमें गोपनीयता अधिक है हर क्लासरूम के लिए अलग अलग क्लास देना पड़ता है उपर से रिकॉर्डिंग का प्रावधान नहीं है इसलिए डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में लिखना अच्छा लगता है।

डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में अरबों अंगूठाछाप प्रोफेसर हैं जिसमें से कुछ प्रोफेसर अफवाहें फैलाने का भी काम करते हैं वैसे ये अफवाहें फैलाने के लिए सभी डिपार्टमेंट में सक्रिय रहते हैं इनके लिए डिपार्टमेंट ऑफ वॉट्सएप अधिक सुरक्षित माना गया है।

एक मज़े की बात तो ये है कि यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में प्रोफेसर बनने के लिए किसी भी प्रकार के डिग्री हासिल करने की जरूरत नहीं पड़ती, कोई नेट या स्लेट पास होना नहीं पड़ता, अपने विषय में पीएचडी और एमफिल भी नहीं, मास्टर डिग्री, बेचलर डिग्री, इंटरमीडिएट, इंटर/ मैट्रिक, मिडिल या प्राइमरी किसी भी तरह के प्रमाणपत्र अथवा अंकसूची की आवश्यकता नहीं होती, यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में प्रोफेसर बनने अथवा स्टूडेंट्स के रूप में एडमिशन लेने के लिए केवल स्मार्टफोन धारक होने की जरूरत है। इसलिए यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया के प्रोफेसर असली तो दूर फर्जी सर्टिफिकेट, फर्जी डिप्लोमा और फर्जी डिग्री के भागमभाग से दूर रहते हैं।

यह लेख व्यंग और सच्ची घटना पर लिखी गई आप बीती है, फिर भी यदि किसा व्यक्ति अथवा समाज के आस्था अथवा कानून का उल्लंघन होता हो तो लेखक इसके लिए पूर्व क्षमाप्राथी है।

सोमवार, दिसंबर 16, 2019

ज्ञान की ५बातें................... जरूर पढ़ें

ज्ञान की ५बातें...................
(हिंदुत्व अर्थात मूल सनातन धर्म परम्परा के मान्यता के अनुसार)
(लेखक - एचपी जोशी)

एक बार पूरा लेख जरूर पढ़ें, संभव है आपका विचार बदल जाए, आपकी सोचने और जीवन जीने का तरीका बदल जाए। पहले पढ़िए, अच्छा लगेगा फिर आगे पढ़िए थोड़ा बुरा लगेगा, हो सकता है बहुत बुरा लगेगा और लेखक को गाली देने का मन करेगा, थोड़ा ऐसा भी विचार आएगा कि लेखक एचपी जोशी मिल जाए तो दो चार जूते मार लेता, मगर ऐसा संभव नहीं थोड़ा भीतर ही भीतर मुझे गाली जरूर दे लेना, ध्यान रखना ज्यादा गाली गलौज आपको मानसिक रूप से विकलांग न बना दे। बड़े मज़े से गाली गलौज करने के बाद भी आगे पढ़ना और शांति से सोचना, समझने का प्रयास करना। यदि समझ में न आए तो एक बार फिर से पढ़ना, फिर भी समझ न आए तो कोई बात नहीं थोड़ा सा हिंदी पढ़ने का प्रयास करना। चलें अब पढ़ने समझने और जूते मारने या गाली गलौज के विचार से ऊपर उठकर ज्ञान की 05 बातें जानने का प्रयास करते हैं।

ये हैं ज्ञान की 5बातें.....
1- दुनिया में 84लाख योनि है।
2- मृत्यु के पश्चात पुनर्जन्म होता है।
3- सभी जीव में आत्मा होती है और भगवान ब्रम्हा परमात्मा है, अर्थात सभी जीव भगवान ब्रम्हा के पुत्र हैं।
4- मनखे- मनखे एक समान - गुरु घासीदास बाबा।
5- जम्मों जीव हे भाई बरोबर - HP Joshi.

अब जब आप 5 बातें पढ़ लिए, तो आइए कुछ तर्क करने, प्रश्न करने और सोचने या समझने का भी प्रयास करते हैं :-

अबोध बालक के प्रश्न:
हे मनुष्य, ऊपर के ५बातें तो कुछ और ही कहने का प्रयास करती है, फिर हम जाति, वर्ण, धर्म और जन्म के आधार पर घृणा, दुर्भावना और नफरत क्यों करते हैं? उच्च नीच के पैमाना क्यों? निर्धारित किए बैठे हैं?
क्यों न ऐसे मनोभाव को त्यागने का प्रयास करें, आओ इन बातों का सारांश जानें।

बिंदु 1+2 का सारांश यह है कि:-
# इस जनम में मैं इंसान हूं, अगले जनम में सुवर या गधा हो सकता हूं, मेंढ़क या छिपकली हो सकता हूं, मुर्गी या मछली हो सकता हूं अर्थात् 84लाख योनियों में किसी भी योनि को प्राप्त हो सकता हूं और आप भी!
# इस जनम में हिन्दू हूं अगले जनम में मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी, जैन या बौद्ध हो सकता हूं और आप भी!
# इस जनम में मैं नर हूं अगले जनम में मादा या हिजड़ा भी हो सकता हूं और आप भी!
# इस जनम में तुम मुझे नीच कहते हो, अगले किसी जनम में तुम्हे भी इसी नीच जाति / कुल में जनम लेना पड़ेगा।

बिंदु ३का सारांश यह है कि:-
लेखक इस जनम में जोशी है अगले जनम में मेहर या मोची हो सकता है, राउत या केंवट हो सकता है, तेली या कुर्मी हो सकता है, मरार या कलार हो सकता है आदिवासी या बैगा हो सकता है, ठाकुर या बनिया हो सकता है। ब्राम्हण, क्षत्री, वैश्य अथवा शूद्र के अलावा दूसरे धर्म में भी जनम लेे सकता है और आप भी! इसलिए आपसे विनती है केवल इस जनम के आधार पर व्यवहार मत करो, इस जनम के आधार पर जीवन जीने की अपेक्षा को त्याग दो, क्योंकि करोड़ों अरबों जनम से आप, मैं और अन्य सभी जीव जंतु भी भगवान ब्रम्हा के ही पुत्र हैं अर्थात सभी सगे भाई बहन हैं।

आओ आंखें खोलें, थोड़ा पानी डालकर धो लें, चिपर निकालकर अच्छे साफ सुथरे आखों से देखें। "मनखे- मनखे एक समान" और "जम्मों जीव हे भाई बरोबर" हमारे धार्मिक सिद्धांत का मूल तत्व है, मूल ज्ञान है। जरूरत है तो इन बातों को आत्मर्पित करने की। आओ थोड़ा ज्ञानी मुझे भी बनने दें मैं भी आपको थोड़ा सा ज्ञानी बनने का अवसर दूंगा, इस छोटे से लेख को पढ़कर अपने लोगों से तर्क कीजिए, चाहे आप सहमत न हों। यदि सहमत न हों तब भी जीवन में कम से कम एक बार किसी दूसरे ज्ञानी व्यक्ति के सामने इन ५बातों को रखिए और एक बार फिर मुझे मूर्ख या बेवकूफ जैसे गाली दीजिए और मेरे लेख को मूर्खतापूर्ण लेख मानकर खिलखिलाकर हस पड़िए।

सुधि पाठकों से निवेदन है कि यह लेख व्यंगात्मक काल्पनिक विचारधारा पर आधारित है, यदि किसी व्यक्ति अथवा समाज के आस्था विश्वास को क्षति पहुंचती है तो लेखक (एचपी जोशी) क्षमा प्रार्थी है।

गुरुवार, दिसंबर 12, 2019

बलात्कार और क्रुर हत्या के आरोपी को कैसी मौत दी जाए? - HP Joshi

बलात्कार और क्रूर हत्या के अपराधियों को सामान्य फांसी न दी जाए, बल्कि उसके शरीर के महत्वपूर्ण Organ(s) और Tissue(s) को निकालकर बेची जाए और निर्भया का स्मारक बनाया जावे अथवा उनके आश्रितों को रकम दी जावे - एचपी जोशी

मृत्यु देखकर निर्भया के अपराधी को नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत याद आने लगा। तरह तरह के उपाय बताने लगा है इसलिए हम भी एक उपाय एक धर्म की बात बताने का प्रयास करते हैं, नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के अनुरूप ही एक आइडिया बताते हैं।

ये है, नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के अनुकूल आइडिया:
अंगदान मृत्यु के पश्चात और पहले दोनों समय किया जा सकता है यह भी धर्म और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के अनुरूप है। इसलिए निर्भया के अपराधियों के सभी आवश्यक Organ(s) और Tissue(s) को बेचकर निर्भया का स्मारक बनाया जावे अथवा उनके आश्रितों को यह रुपए दिए जाएं।

क्योंकि,
"निर्भया की मृत्यु भी उनके जीवन के अधिकार सहित समस्त प्रकार के मानव अधिकारों का हनन है।" निर्भया के अपराधियों को मृत्युदंड नहीं मिलना, केवल निर्भया ही नहीं वरन् समस्त बलात्कारी और हत्यारे जिन्हें फांसी दी जा चुकी है उसके साथ अन्याय होगा और बलात्कार को बढ़ावा देने का आमंत्रण होगा। इसलिए क्यों न, बलात्कारियों की आंख, आंत, किडनी व हृदय सहित समस्त आवश्यक Organ(s) और Tissue(s) (जिसे किसी दूसरे व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जा सके) को निकाल लिया जावे।

उल्लेखनीय है कि देश में अब तक लाखों लोगों ने अपने जीवित अवस्था में ही मृत्यु पश्चात अंगदान का संकल्प लिया है और हजारों लोगों के मृत्यु पश्चात उनके अंग को दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित किया गया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि लेखक स्वयं (Huleshwar Joshi) मृत्यु पश्चात अंगदान का संकल्प लिया है।

लेखक/संपादक, इस आलेख में किसी भी प्रकार के गलतियों, त्रुटियों और कानून के उल्लंघन पूर्ण क्षमाप्रार्थी है।

शनिवार, दिसंबर 07, 2019

बिना सेसन ट्रायल, तीन दिन में ही क्रूर हत्या और रेप के आरोपी को फांसी दी जा सकती है, वह भी न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत के अनुरूप, तरीके जानने के लिए पूरा लेख पढ़ें - एचपी जोशी

पूरे देश के सभी क्रूर हत्यारे और बलात्कारियों को तीन महीने के भीतर सजा दी जा सकती है।

तीन दिन में ही क्रूर हत्या और रेप के आरोपी को फांसी दी जा सकती है, वह भी न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत के अनुरूप।

(एक विकल्प (एक आईडिया) बलात्कार और हत्या के आरोपियों के लिए न्याय व्यवस्था हेतु)

कैसे, बिना सेसन ट्रायल, केवल माननीय उच्च न्यायालय के सीटिंग जज के सामने फोरेंसिक जांच के बाद आरोपी गिरफतार होने के तीसरे दिन ही आरोपी को फासी की सजा दी जा सकती है। इस संबंध में इस लेख में विस्तृत सुझाव और जानकारी दी गई है, लेख पढ़ने के पहले आप पाठक से लेखक का एक प्रश्न है, जवाब अपने अंतर्मन में जरूर तैयार कर लें।

लेखक का प्रश्न :
यदि उन 4 अपराधियों, क्रूर अमनुश दरिंदे में यदि कोई एक व्यक्ति वास्तविक रूप से रेप में सहभागी ही न होता और वो चौथा व्यक्ति यदि आप होते तो? या फिर वह चौथा व्यक्ति आपका अपना सगा भाई या पुत्र होता तो?
एक बार जरूर सोचिए.........

कुछ न्यायिक सिद्धांत :
"बिना जांच के सजा, न्यायोचित नहीं हो सकता!"
"किसी भी शर्त में हिंसा के बदले हिंसा, या हत्या के बदले हत्या और रेप के बदले रेप न्याय नहीं हो सकता।"
"नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार अपराधी को अपना अपराध कबूलने अथवा अपनी बेगुनाही साबित करने का अवसर मिलना चाहिए।"
"पुलिस को सजा देने का अधिकार नहीं है, अपराधियों का एनकाऊंटर की कार्यवाही परिस्थितिजन्य प्रतीत होता है। इसे सजा देने का तरीका न मानें।"

संक्षेप में, तरीका:
1- आरोपी गिरफ्तार किया जाना और पुलिस कार्यवाही एक दिन में पूर्ण हो।
2- दूसरे दिन माननीय उच्च न्यायालय के सीटिंग जज के समक्ष, नार्को टेस्ट के साथ अन्य फोरेंसिक जांच हो, देर शाम तक 2-3 सदस्यीय माननीय न्यायाधीश द्वारा तत्काल मृत्यु दंड का आदेश जारी हो।
3- तीसरे दिन नए नियम के अनुसार, नियमानुसार आरोपी को फांसी दी जाए।

क्या हो तरीका, विस्तार से:
रेप और हत्या में सजा देने का प्रावधान अत्यंत कठोर और त्वरित करने की जरूरत है। ऐसे अपराधियों को एक माह या उससे कम समय सीमा में, अथवा आरोपी के पकड़े जाने के दूसरे दिन जांच और तीसरे दी मृत्युदंड/फांसी देने का प्रावधान होनी चाहिए। फोरेंसिक साइंस वर्तमान में बहुत आगे आ चुकी है बिना ट्रायल के ही ऐसे अपराधियों को सजा दी जा सकती है वह भी फोरेंसिक जांच और आरोपियों के ही बयान के आधार पर, बिल्कुल न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत के अनुरूप।

इस तरीके को अपनाने के लिए केवल विशेषज्ञ द्वारा तैयार कुछ प्रश्नों की श्रृंखला के माध्यम से जांच की जा सकती है। माननीय उच्च न्यायालय के एक सीटिंग जज के सामने तत्काल प्रभाव से आरोपियों को पेश किया जावे, उसके बाद कुछ निम्नानुसार परीक्षण स्वतः माननीय न्यायाधीश के समक्ष हो:
1- Narco Analysis
2- एसडीएस (सस्पेक्ट डिटेक्शन सिस्टम) - पॉलीग्राफ + ब्रेन फिंगर प्रिंटिंग
2- LVA (Layered Voice Analysis)
3- Lie Detection (Polygraph)
4- BEOSP - Brain Electrical Oscillation Signature Profile
5- EyeDetect
उपरोक्त टेस्ट में नार्को टेस्ट के साथ किसी भी एक या दो टेस्ट करने से ही सत्यापित किया जा सकता है कि क्या जिसे हम आरोपी समझकर पकड़े हैं वह सही में आरोपी है। शासन को इस दिशा में काम करने की जरूरत है।

इस लेख के माध्यम से देश के नीति निर्धारकों से अपील है कि वे ऐसे नियम बनाकर तत्काल प्रभावी करें, अथवा माननीय राष्ट्रपति के माध्यम से अध्यादेश जारी कर देश में जितने भी क्रूरता पूर्वक हत्या और रेप के मामले हैं उन्हें तीन महीने के भीतर निपटारा कराएं। "ऐसा संभव भी है।" जरूरत है तो केवल फोरेंसिक साइंस को एक अध्यादेश अथवा कानून लाकर वैध बनाने की।

लेखक के ज्ञान और जानकारी के आधार पर ऐसा लेब हमारे देश में भी उपलब्ध हैं, विस्तृत जानकारी और लेख की पुष्टि के लिए गुजरात फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी से संपर्क किया जा सकता है। लेखक को विश्वास है गुजरात फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के सहयोग से तीन महीने से भी कम समय सीमा में देश के सभी क्रूर हत्या और रेप के मामले को निपटाया का सकता है। बिना किसी प्रकार से फास्ट ट्रेक न्यायालय में ट्रायल किए बिना ही।

लेखक का माफीनामा:
उपरोक्त आइडिया लेखक के ज्ञान और विश्वास पर आधारित है, यदि इससे किसी कानून का उल्लघंन अथवा माननीय न्यायालय का अवमानना होती हो तो लेखक HP (Huleshwar) Joshi पूर्व से क्षमा मांगता है।

अंत में एक अपील:
सोशल मीडिया, समाचार पत्रों और वेब पोर्टल न्यूज चैनल में प्रकाशन और वायरल करने के लिए आपसे निवेदन है।

बुधवार, दिसंबर 04, 2019

लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग चारित्रिक पैमाने की सोच ही बलात्कार का कारण है - एचपी जोशी

निर्भया मेरी भी बहन है, निर्भया मेरी भी बेटी है - एचपी जोशी
लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग चारित्रिक पैमाने की सोच ही बलात्कार का कारण है - एचपी जोशी
गुरु घासीदास जयंती के संबंध में आयोजक मंडल को सुझाव - एचपी जोशी

पर स्त्री (दूसरे की पत्नी, बहन और बेटी) को माता बहन मानों .... ऐसा शिक्षा देने वाले संत को केवल एक ही जाति तक सीमित कर देना अत्यंत दुर्भाग्य जनक है। उल्लेखनीय है कि गुरु घासीदास बाबा ने पराय स्त्री को माता बहन मानने की शिक्षा समाज को दी है यदि हम आज इतने वर्षों में यदि इस संदेश को स्वीकारते हुए अपने संस्कार में शामिल कर लेते तो कोई बेटी और कोई बहन निर्भया बनने पर मजबूर नहीं होती, किसी स्त्री का बलात्कार नहीं होता, किसी महिला का रेप नहीं होता, किसी बच्ची के साथ क्रूरता नहीं होती। मगर हमें तो जाति, वर्ण और धर्म के विभाजन और कुंठा से प्रेरित विभाजन में गर्व करना अच्छा लगता है इसलिए किसी दूसरे समाज में जन्म लेने वाले गुरु का बात क्यों मानें, चाहे वह प्रासंगिक ही क्यों न हो।

आज हमारी संस्कार पूरी तरह से दूषित हो चुकी है, नष्ट हो चुकी है और भ्रष्ट हो चुकी है। वर्तमान परिवेश में हम अपने आने वाली पीढ़ी को संस्कार के नाम पर कुछ नहीं देते हैं केवल प्रतियोगिता की शक्ति और श्रेष्ठता का विचारधारा ही दे पा रहे हैं। इसलिए हम बेटियों और बहनों के लिए गिद्ध बन चुके हैं और माताओं के लिए हिंसक जानवर हो चुके हैं हमारी भावी पीढ़ी भी इसी तरह हमारे तरह ही जन्म लेने वाली है बिल्कुल गिद्ध की तरह, बिल्कुल हिंसक जानवर की तरह, इसलिए क्यों न आने वाली पीढ़ी को सुधारने का प्रयास किया जाए, उच्च स्तरीय शिक्षा के साथ थोड़ा सा संस्कार भी दिया जाए। प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के तरीकों के साथ थोड़ा सा मानवता का पाठ भी पढ़ाएं, घर में हमारे पास समय नहीं तो स्कूल और कोचिंग संस्थान के माध्यम से ही संस्कार सिखाएं। यदि हमारे संस्कार में पराय स्त्री माता बहन है और मनखे मनखे एक समान शामिल होता तो किसी बेटी को, किसी बहन को, किसी स्त्री को निर्भया कहलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। आइए संवेदनशील समाज बनाने का प्रयास करें, संवेदनहीनता के खिलाफ एकजुट होकर समाज को सुधारने का प्रयास करें।

आज हम बड़ी बेसब्री से अपनी बारी का इंतज़ार करने में समय बर्बाद कर रहे हैं, हम इंतजार कर रहे हैं कि "जब तक कोई गिद्ध, कोई दरिंदा कोई जानवर हमारी बेटी बहन के साथ ऐसी क्रूरता नहीं करेगा हमें किसी निर्भया से कोई मतलब नहीं" ऐसे सोच रखने वाले चेत जाएं सावधान हो जाएं। ऐसा सोचने वाले अमानुश भी सावधान हो जाएं कि मेरी तो बहन नहीं है, मेरी तो बेटी नहीं हैं। लड़का है बदमाशी नहीं करेगा तो क्या लड़की करेगी?? "लड़की लड़के में भेद करने वाली सोच ही बलात्कार का कारण है।" ये सोच आपको बर्बाद कर देगी, क्योंकि आपकी भी बेटी पैदा होने वाली है और जिसकी बेटी है उनके भी बेटा जन्म लेने वाला है। इसलिए बेटी और बेटा के लिए अलग अलग चरित्र का पैमाना बनाने वाले सावधान हो जाएं, अपनी ही बहन बेटियों के खिलाफ ऐसे सोच को जन्म देने की नींव मत डालो।

मेरे कुछ मित्र हैं जिनकी बहन या बेटियां नहीं हैं वे लड़कियों के चरित्र और उनके पालकों के संस्कार में प्रश्न करते रहते हैं, जबकि उनके संस्कार भी लड़की और लड़के के लिए दोहरे चरित्र का मापदंड तय करती है। उनके ऐसे मानसिकता पर शर्म आती है मुझे घिन आती है ऐसे विचारधारा पर। मेरे कुछ साथी ऐसे भी हैं जिनकी बेटियां हैं वे बहुत चिंतित रहते हैं मैं भी अत्यंत चिंतित हूं क्योंकि मेरी भी बेटी है, मैं भी बहुत चिंतित हूं क्योंकि मेरी और भी बेटियां जन्म लेने वाली हैं मेरे संस्कार में शामिल है पराय स्त्री माता बहन के समान हैं इसलिए पूरे दुनिया की स्त्री मेरी मां बहन और बेटियां हैं। जागरूकता की यह कठोर तरीके किसी व्यक्ति के आस्था को चोटिल करती हो तो लेखक माफ़ी चाहता है।

इस महीने के 18 तारिक से हम गुरु घासीदास बाबा जी के जयंती मनाने वाले हैं, ये वही संत हैं जो मानव मानव एक समान की शिक्षा देते हैं ये वहीं संत हैं जो पराय स्त्री को माता बहन मानने का सलाह देते हैं ये वही गुरु हैं जो हिंसा के खिलाफ और शाकाहार खाने को प्रेरित करते हैं ये वही धर्मगुरु हैं जो आडंबर से परे रहकर वास्तविक धर्म की बात करते हैं ये वहीं मार्गदर्शक हैं जो हमें सरल और सहज पद्धति से जीवन जीने की कला सीखते हैं। इसलिए इनके संदेशों को सभी समाज के संस्कार में शामिल होना चाहिए..... प्रिय पाठकों मैं इस लेख के माध्यम से गुरु घासीदास बाबा जी की जयंती मनाने वाले और जयंती नहीं मानने वाले दोनों को ही उनके संदेश को जानने के लिए निवेदन करता हूं। बताना चाहता हूं कि बड़े बड़े आयोजन करके, लाखों करोड़ों रुपए खर्च करके जयंती मनाने से कोई लाभ नहीं यदि आपको बाबा जी के संदेश प्रचारित नहीं किया जाता। हम कम से कम गुरु घासीदास दास बाबा जी के 07 संदेश ही जान लें, 07 संदेशों को ही प्रचारित कर लें, तो हमारा जयंती मानना सफल हो जाएगा।

मैं सतनामी समाज के पदाधिकारियों से आयोजक मंडल से अपील करता हूं कि इस बार बड़े आयोजन के बजाय मात्र गुरु घासीदास बाबा जी के संदेशों को पूरे दुनिया में प्रचारित करने का प्रयास करें, लाखों करोड़ों रुपए जयंती के नाम पर, विशेषकर सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए समाज का धन बर्बाद न करें। मैंने पिछले कुछ वर्षों से समाज से लगातार आग्रह किया कि वे बड़े विशाल होर्डिंग्स में नेताओं के और स्वयं के फोटो लगवाते हैं सायम को बड़ा नेता, बड़ा समाज सेवक, सामाजिक कार्यकर्ता बताने का प्रयास करते हैं जो केवल दिखावा है, यदि आपने गुरु घासीदास बाबा जी के संदेश को ही नहीं बताया, तो विशाल होर्डिंग्स का क्या औचित्य?? होश में आएं, गुरु घासीदास बाबा जी के संदेशों का प्रचार करें, विशाल होर्डिंग्स में नेताओं की फोटो नहीं बाबा जी के संदेश छपवाएं, संस्कृति कार्यक्रम के नाम पर अश्लीलता नहीं बल्कि बाबा जी के जीवन लीला और संदेशों के प्रसार के लिए प्रवचन कराएं। करोड़ों रुपए की बर्बादी नहीं सदुपयोग करें, बिना किसी बंधन के सभी जाति धर्म के लोगों को जयंती में शामिल होने के लिए आग्रह करें, उन्हें भी बाबा जी के संदेश बताएं।

शुक्रवार, नवंबर 29, 2019

हां, मैं पूर्णतः समानता का समर्थक हूं - HP Joshi

मैं टैक्सपेयर हूं। 
मैं भारत का आम नागरिक हूं।
मैं मनुष्य हूं और मानवता का समर्थक।

चाहे क्यों न मेरे बच्चे प्राइवेट स्कूल कॉलेज में पढ़ते हो या चाहे क्यों न मेरा पूरा परिवार निजी अस्पताल में इलाज करवाता हो।

फिर भी ..
मैं चाहता हूं कि स्वास्थ्य और शिक्षा पूर्णतः निःशुल्क होनी चाहिए।

क्योंकि मैं मानव हूं मानव मानव एक समान और जम्मो जीव हे भाई बरोबर के सिद्धांत का समर्थक हूं।

क्या??
क्या तुम्हें ...... 
क्या तुम ........

हां, हां मैं चाहता हूं कि सब समान हों, मानव मानव में कोई भेदभाव न हो।

हां, मैं चाहता हूं कि जो आज निर्धन है गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं उनके बच्चे भी अच्छे विद्यालय में पढ़ सकें, मेरे बच्चों के समान उन्नति कर सकें।

हां, मैं चाहता हूं कि गरीबों को भी उनके मेहनत का पूरा पूरा श्रेय उन्हें ही मिले, उन्हें भी मेहनत करने और उन्नति करने का अवसर मिले।

हां, मैं चाहता हूं कि जो गरीब हैं वे भी आनंद के साथ जीवन जी सकें, परिवार के साथ समय बिता सकें। अच्छे सेवन स्टार होटल में खाना खा सकें, होटल ताज में रात बिता सकें और विदेश टूर में जा सकें।

हां, मैं चाहता हूं कि गरीबों के बच्चे भी यूपीएससी और देश के प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग फ़्री में कर सकें, आईएएस आईपीएस अधिकारी बन सकें, वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर बन सकें।

हां, मैं चाहता हूं कि उन्हें भी इतना सम्मान मिल सके कि वह देश के सर्वोच्च पदों में नियुक्त और निर्वाचित हो सके, इसके लिए उनकी आर्थिक स्थिति उन्हें न रोके।

हां, मैं चाहता हूं कि गरीबों के बच्चे भी मेरे बच्चों से आगे आ जाएं, उन्हें भी अपनी योग्यता साबित करने के लिए समान अवसर मिल सके।

हां, मैं चाहता हूं कि गरीबों के बच्चे भी एसी बस से स्कूल कॉलेज का सकें, एसी कमरे में रह कर अध्ययन कर सकें, आईआईटी आईआईएम में पढ़ सकें।

हां, हां, हां, मैं पूर्णतः समानता का समर्थक हूं, क्योंकि मैं जानता हूं मेरिट अवसर का प्रतिफल है सुविधाओं का प्रतिबिंब है इसलिए मेरिट और ज़ीरो के सिद्धांत में बदलाव की अपेक्षा करता हूं।

एचपी जोशी
नवा रायपुर, छत्तीसगढ़

क्या? अकेला एक आदमी भी बड़े मीडिया घराने को टक्कर दे सकता है?

जब तक संपादकीय अच्छी नहीं होगी कोई आपका पुस्तक, पेपर या वेबपोर्टल नहीं पढ़ेगा।

यदि आपके संपादकीय में अच्छे शब्द और तर्क जो लोगों को प्रेरित न कर सके और यदि उनके अनुकूल न हो तो सोशल मीडिया में भी लोग आपके पोस्ट को देखकर अनदेखा कर देते हैं।

यदि आपके समाचार का टाईटल उस संबंधित व्यक्ति के इंट्रेस्ट से यदि न जुड़ा हो तो कोई आपके यूआरएल/लिंक या पोस्ट को क्यों देखेगा?

आज यदि एक अकेला आदमी एक बड़ा मीडिया बन सकता है बिना लागत के और बड़े बड़े मीडिया घराने को टक्कर दे सकता है तो इसके पीछे उसका अच्छा संपादकीय, लोक लुभावने हेडिंग, सत्यता को लिखने और करोड़पति बनने के सपने से दूरी बनाए रखना हो सकता है। हालांकि उन्हें भी गूगल ऐडसेंस तथा राष्ट्रीय पर्व,  राजनैतिक लोगों और आम लोगों द्वारा दिए जाने वाले व शासन स्तर पर मिलने वाले विज्ञापन से कमाई करेगा तभी तो अपनी बेरोजगारी दूर करेगा।

"क्या? अकेला एक आदमी भी बड़े मीडिया घराने को टक्कर दे सकता है?"
हां, सर बिल्कुल। आपने सही सुना।

"बताओ भला कैसे?"
छोटे से स्टेप्स और पूरी ईमानदारी और निष्ठा से कार्य करने से। इसके लिए वे कुछ ऐसे स्टेप्स फॉलो करते हैं......
1- पीआईबी के वेबसाइट से प्रेस विज्ञप्ति में संपादकीय, रोज लगभग 10 से अधिक विज्ञप्ति जारी होते हैं जिसमें 2-4 में संपादकीय कर सकते हैं इसके अलावा अपने संबंधित राज्य के जनसंपर्क विभाग से जारी प्रेस विज्ञप्ति।
2- मंत्रिमंडल के निर्णय और मंत्रियों, नेताओं, फिल्म स्टार, सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई कार्यकर्ता और खिलाड़ियों के सोशल मीडिया एकाउंट की निगरानी करना।
3- क्राइम रिपोर्टिंग के लिए कुछ स्थानीय जिलों के पुलिस फेसबुक पेज का सहारा लिया जा सकता है।
4- लगभग सभी विभाग से प्रेस विज्ञप्ति जारी किया जाता है, इसके मिलने के सोर्स से समन्वय।
5- विपक्षी दलों के नेताओं से समन्वय और उनके सोशल मीडिया पर सक्रिय रहना और निष्पक्ष समीक्षा करना।
6- सोशल मीडिया में ट्रेंड हो रहे पोस्ट की समीक्षा, कि वह फर्जी है या सही?
7- कुछ दार्शनिक, विचारकों, लेखकों और संपादकों से समन्वय बनाकर रखना।
8- कुछ पुलिस अधिकारी/कर्मचारी, अधिवक्ता, डॉक्टर से समन्वय बनाकर रखना।
9- राष्टीय और राज्य स्तर के मामलों के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट और माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का अवलोकन करते रहना।
10- लोकसभा और राज्यसभा टीवी चैनल पर निगरानी
11- अन्य, अपने कार्यक्षेत्र और चॉइस के अनुसार ....

"ये तो कितना आसान उपाय है अब तो मैं भी अपना अकेले का वेबपोर्टल न्यूज चैनल बनाऊंगा..."
  • मुझे पता था, आप ऐसे ही कुछ सोचोगे। मगर क्या आपमें संपादकीय योग्यता और अनुभव है?
  • क्या समाचार बनाने की अनुभव है?
  • कभी किसी झांसे में आकर उपर नीचे मत लिख देना, बहकावे और आवेश में आकर, खोजी पत्रकारिता के नाम पर ऐसा कोई तथ्य पर दावे पेश मत कर देना, किसी की सामाजिक/राजनैतिक चरित्र का हनन मत कर देना, किसी के आस्था विश्वास को आघात मत पहुंचा देना। किसी अधिकारी, नेता या संस्था के खिलाफ झूठे दावे को सही मानकर अपना टीआरपी मत बढ़ा लेना। 
  • क्या आप संविधान, नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत और देश/राज्य में प्रभावी कानूनों की जानकारी है?


ये तो नहीं है यार!
तब तो वेबपोर्टल न्यूज चैनल चलाने की मत सोचो। लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद.....

यह लेख केवल एक ब्यंग है।

मृत शरीर को जलाने या दफनाने से न मोक्ष मिलती है, न आत्मा को शांति मिलती है और न अमरता की प्राप्ति होती है - एचपी जोशी

अंगदान धरती में सबसे बड़ा दान है इससे बडा और श्रेष्ठ दान कुछ हो ही नहीं सकता - एचपी जोशी

मृत शरीर को जलाने या दफनाने से न मोक्ष मिलती है, न आत्मा को शांति मिलती है और न अमरता की प्राप्ति होती है - एचपी जोशी

मृतशरीर को जलाना/दफनाया जाना केवल रूढ़िवादी परम्परा, अब इसे समाप्त करने की जरूरत है - एचपी जोशी

आओ मरणोपरांत अंगदान का संकल्प लें और दूसरों को भी प्रेरित करें - एचपी जोशी

अंगदान सबसे बड़ा जीवन दान है इससे बडा और श्रेष्ठ दान कुछ हो ही नहीं सकता। आपके अंगदान करने से 5 से 10 लोगों को जीवन/बेहतर जीवन मिल सकता है। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आज ही National Organs and Tissues Transplant Organization [Ministry of Health and Family Welfare] Govt. of India के वेबसाइट http://notto.nic.in/ में जाकर मृत्यु पश्चात अंगदान का संकल्प लें।

यहां यह उल्लेखनीय है कि अंगदान करने से मरणोपरंत आपके मृत शरीर में से उपयोगी Organs एवम Tissues को NOTTO (Govt. of India)  उपयोग में ले लेता है अर्थात आपके मृत शरीर निकालकर किसी जरूरतमंद व्यक्ति के शरीर में प्रतिस्थापित कर देता है और उसके बाद शेष शरीर को आपके परिजन को लौटा देती है। जिसका आपके परिजन द्वारा धार्मिक/समाजिक रितिरिवाज एवं परम्परा के अनुसार कार्यवाही की जा सकती है।

चाहे आप अंगदान के पक्ष में हों या फिर विपक्ष में मगर एक बार लेखक के तर्क को जरूर पढ़िए, जरूर एक बार स्वयं से प्रश्न करके देखें कि आप क्यों अंगदान नही कर सकते? अंगदान करने से क्या हानि है? एक बार जरूर सोचें आपके मृत शरीर को यदि जलाया या दफनाया जाएगा तो आपको या आपके परिवार को क्या मिलेगा? एक बार इसपर जरूर विचार करें, एक बार जरूर सोचें? आखिर क्यों?

चलो अब प्रश्न से आगे बढ़कर, मृत शरीर को जलाने और दफनाने के पीछे के राज से पर्दा उठाने का प्रयास करते हैं, चलो एक सकारात्मक तर्क को पढ़ने और समझने का प्रयास करते हैं। बिते दिनों की बता हो या चाहे वर्तमान की बात हो यदि मृत शरीर को आबादी क्षेत्र मे, खुले स्थान में छोड़ दिया जाएगा तो उसमें कीडे लग जाएंगे और आसपास बदबु फैलेगी, इससे महामारी फैलने की भी पूरी गारंटी रहती। इसलिए हमारे पुर्वजों ने इससे बचने के लिए बडे चालाकी के साथ इसे आस्था, विश्वास और धर्म से जोड़ते हुए मृत शरीर को जलाने अथवा दफनाने के लिए प्रेरित किया, जो सर्वथा उचित और सर्वोत्तम उपाय है हालांकि मृत शरीर को जलाने और दफनाने की परंपरा आज भी उचित परम्परा है। मृत शरीर के जलाने और दफनाने के पीछे एक मात्र उद्देश्य मृत शरीर को खुला छोडने के बाद फैलने वाले महामारी/हैजा को रोकना और मनुष्य के मन में भी अपने भविष्य में होने वाले मृत्यु के बाद दुर्गति और घृणा के भावना को रोकना ही था। मृत शरीर को जलाने या दफनाने से न तो आत्मा को शांति मिलती है, न मोक्ष मिलता है और न तो पुनः अमरता को प्राप्त होता है, ऐसा दावा करना केवल कोरी कल्पना मात्र है। इसलिए मरणोपरांत अंगदान के संकल्प से केवल लाभ ही होगा, मानवता की रक्षा ही होगी, ऐसा करके आप किसी दूसरे जरूरतमंद मनुष्य को अच्छे जीवन का वरदान ही देंगे। यह भी तर्क है कि यदि आप किसी मनुष्य अथवा जीव को जीवन दे सकते हैं या खुसी दे सकते हैं तो यह आपकी महानता ही होगी ऐसे ही वरदान देने वाले ऐसे ही दूसरे को खुसी देने वाले लोग आज पूजे जाते हैं।

यह बात उन दिनों की है जब मै (लेखक-हुलेश्वर जोशी) वर्ष 2003-04 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, डिण्डौरी, तहसील लोरमी, जिला बिलासपुर में कक्षा-12वीं का छात्र था, किसी बात पर मुझे मेरे कुछ सहपाठी हस रहे थे, जिसके कारण मैं उनसे नाराज था। ठीक मेरे नाराज होने के समय ही हमारे अर्थशास्त्र के गुरुजी श्री महेन्द्र सिंह मार्को जी कक्षा में प्रवेश किये और उन्होने मेरा चेहरा देखकर नाराजगी का कारण जाना और समझाते हुए कहा कि ‘‘कोई मनुष्य यदि किसी को खुशी दे सकता है, मुस्कराने का अवसर दे सकता है, किसी के कष्ट को हर सकता है तो वह उनके लिए ईश्वर से, माता पिता से अथवा किसी अन्य आराध्य से कम नहीं हो सकता है।’’ 

ज्ञातव्य हो, कि मैंने दिनांक 24/01/2018 को मृत्यु उपरांत अपने शरीर के समस्त Organs एवम Tissues को दान करने का संकल्प लिया है। मैंने अपने मृतशरीर को व्यर्थ जलने/दफन होने से बचाने का प्रयास किया है, मेरे द्वारा ऐसा करना एक रूढ़िवादी परंपरा को समाप्त करने के लिए छोटा सा प्रयास है। यदि मेरे मृत शरीर को जलाया जाएगा तो पर्यावरण प्रदुषित होगा और किसी नदी के पवित्र जल को मेरे हड्डी दुषित करेंगे और यदि मेरे शरीर को दफनाया जाएगा तो धरती के भीतर उसे सड़-गल जाना ही तो है। यदि मेरे मरने के बाद भी मेरा कोई अंग किसी व्यक्ति को बेहतर जीवन देने में सक्षम है तो इसे व्यर्थ जलने/दफनाने के लिए आखिर क्यों छोड दूं? मैंने अंगदान किया, इसे शेयर करना अच्छी बात है। यह बहुत अच्छा होता कि आप स्वयं अंगदान कर लें। मेरे अंगदान की सूचना देते हुए ज्ञात हुआ कि मुझसे पहले लगभग देशभर के 1लाख से अधिक लोगों ने अंगदान का संकल्प लिया है। - एचपी जोशी

पर्यावरण संरक्षण, ईश्वर और मूल धर्म पर Durgamya और Tattvam के मध्य संवाद - HP Joshi

पर्यावरण संरक्षण, ईश्वर और मूल धर्म पर Durgamya और Tattvam के मध्य संवाद - HP Joshi

वर्तमान परिवेश के अनुरूप पर्यावरण संरक्षण, ईश्वर और धर्म को नए दिशा देने की अत्यंत आवश्यकता है इसलिए आज हम दो नन्हें बच्चों के संवाद के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं इस संवाद का उद्देश्य पूर्णतः लोकहित और कल्याण को समर्पित है यह लेख धर्म निरपेक्षता का समर्थन करता है और धर्म के आधार पर आपसी मतभेद को मिटाने का प्रयास करता है। 

आइए हम Durgamya और Tattvam के मध्य हुए काल्पनिक संवाद को जानने का प्रयास करते हैं। वास्तव में ये दोनों नन्हे पात्र Durgamya पीपी2 की स्टूडेंट्स है और Tattvam अभी 2वर्ष का अबोध बालक है।

Durgamya: सूर्य न होता तो ?? यदि सूर्य न होता, यदि पृथ्वी न होती, यदि चंद्रमा न होता, यदि आक्सीजन न होता, यदि कार्बन डाइऑक्साइड न होता तो और यदि पानी न होती तो क्या आप होते??
क्या इनमे से एक भी नहीं होगा तो आप जीवित रहने में सक्षम होंगे?

Tattvam: नहीं। क्या धर्म नहीं होता तो आप जीवित रहने में सक्षम होंगे?

Durgamya: हां, कथित धर्म की हमें कोई आवश्यकता नहीं है। इन कथित प्रचलित धर्म के बिना भी हम जी सकते हैं जैसे मनुष्य के अलावा सभी प्राणी जीवित हैं।

Tattvam: तो हम धर्म के नाम पर इतना क्यों उलझे हैं? आपस में लड़ क्यों रहे हैं? हिंसा क्यों कर रहे हैं? आपसी भाईचारे को समाप्त क्यों कर चुके हैं?

Durgamya: ये सब धार्मिक नेताओं के मज़े के लिए है उनके मनोरंजन के लिए है। वे आपको इस पचड़े में फंसाकर राज करना चाहते हैं और आपको मानसिक रूप से गुलाम ही रखना चाहते हैं। हम उनके झांसे में आकर फंसे हुए हैं यही वास्तविकता है।

Tattvam: क्या हम सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी के लिए, उसके सुरक्षा के लिए कुछ कर सकते हैं?

Durgamya: वास्तव में सूर्य और चंद्रमा हमारे ईश्वर है, भगवान है, परमात्मा है और यही श्रेष्ठ देवता है। इनके लिए कुछ न करो तब भी चलेगा, क्योंकि कि ईश्वर, भगवान, परमात्मा या देवता आपके पूजा का मोहताज नहीं, यदि कोई स्वयं को पूजने को कहता है तो कुछ तो गड़बड़ है।
आपको अपने जन्मभूमि के लिए अपनी पृथ्वी के लिए पृथ्वी में विद्यमान जल की स्वच्छता के लिए, आक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की सही मात्रा में उपलब्धता के लिए, इनके सुरक्षा के लिए कार्य करने की जरूरत है क्योंकि ये हमारे लिए अत्यंत उपयोगी ही नहीं जीवन के लिए निहायत जरूरी है, इसके बिना एक पल भी जीवन संभव नहीं है।

Tattvam: दीदी तो बताओ, मैं पृथ्वी, आक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और जल के संरक्षण के लिए क्या करूं? मुझे क्या करना चाहिए?

Durgamya: इसके लिए भी आपको बहुत अधिक कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप अधिकाधिक वृक्षारोपण करें, भोजन में फलों के प्रयोग को बढ़ाएं, ताकि आपको आक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और आपके और आपके प्रकृति के लिए बराबर मिलता रहेगा। जब आप अधिक से अधिक वृक्ष लगाएंगे तो जलस्तर बढ़ेगी, नदिया नलों और तालाबों में पानी होगी, आप वर्षा के जल को बांध, चेकडैम और हार्वेस्टिंग के माध्यम से भी रोककर जल स्तर बढ़ा सकते हैं ताकि आपके आने वाली पीढ़ियों को पानी की किल्लत न झेलनी पड़े।

पृथ्वी के संरक्षण के लिए केवल एक काम करना है सोलर एनर्जी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की जरूरत है और भूगर्भ के भीतर से निकलने वाले कोयले इत्यादि निकालकर जमीन के भीतर को खोखली होने से बचाओ।

पर्यावरण में वायु के स्वच्छता के लिए जितने भी प्रदूषण कारक पदार्थ हैं जैसे डीजल, पेट्रोल, केरोसिन, लकड़ी, कचरे और फैक्ट्री से निकालने वाले खराब सामग्री उन्हें मत जलाइए, पदार्थ के प्रकृति के अनुसार कचरे का उचित प्रबंधन कीजिए।

Tattvam: दीदी, क्या जिन्हें हमें हमारा मौजूदा धर्म ईश्वर और भगवान कहता है उनकी पूजा करने से स्वर्ग मिल सकता है?

Durgamya: गजब के बेवकूफ बने हो Tattvam; ऐसा कुछ नहीं है। मगर हां यदि तुम आक्सीजन और पानी के लिए, इसके बचत के लिए इनकी पूजा अर्थात संरक्षण के लिए वृक्षारोपण नहीं करोगे तो अवश्य ही नर्क में होगे।

मेरा तात्पर्य भौतिक स्वर्ग से है उस काल्पनिक स्वर्ग नर्क के मूर्खता पूर्ण तर्क से नहीं। स्वस्थ जीवन, स्वच्छ वातावरण और भाईचारे व आत्मीयता पूर्ण सामाजिक सद्भाव वाले समाज, गांव और शहर से है इसे ही मैं स्वर्ग कहूंगी। नर्क के लिए ठीक इसके शर्त को उल्टे पलट दीजिए आपको नर्क मिल जाएगा, अर्थात जहां पीने को साफ पानी न मिले, जीने के शुद्ध आक्सीजन न मिले, खाने को अच्छे भोजन न मिले और रहने के लिए अच्छा सद्भाव पूर्ण समाज न मिले, और शोरगुल से परे शांतिपूर्ण निवास स्थान न मिले तो जान लेना यही नर्क है। समाज में हिंसा व्याप्त हो।

Tattvam: दीदी, मैं धर्म किसे समझूं?

Durgamya: सच्चा धर्म आप सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आक्सीजन के प्रकृति को ही मानों, जैसे ये सभी परोपकार के लिए किसी से भेद नहीं करती ऐसे ही किसी भी जीव जंतु से भेद नहीं करना ही धर्म है।

यह काल्पनिक संवाद समाजिक जागरूकता पर आधारित एक लेख है, इसके माध्यम से लेखक देशवासियों ही नही वरन् समस्त मानव समाज से अपील करता है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आएं, जाति/धर्म के नाम पर मानव-मानव में भेद को त्यागें और शांति और शौहार्द्रपूर्ण समाज की स्थापना के लिए आगे आएं। क्योंकि स्वच्छ जल, हवा और प्रदुषण मुक्त पर्यावरण हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

बुधवार, नवंबर 20, 2019

ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव - CG Poem

ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव
उबड़ खाबड़ नहीं, पक्का रसदा तोला धरावत हंव

ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव।
चना के पेड़ बनाके, तोला नई चढ़ावत हंव।।
गुरतुर बोली बतरस म, तोला नई फसांवत हंव।
मानले संगी मोर बात ल, सत् धरम के रस्ता ल बतावत हव।।1।।

ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव।
आगी खाए ल घलो संगी, तोला नई सिखावत हंव।।
‘‘मनखे मनखे एक समान’’ भेद ल बतवात हंव।
‘‘जम्मो जीव हे भाई बरोबर’’ गियान अइसने सिखावत हंव।।2।।

ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव।
‘‘शिक्षा ग्रहण पहिलि’’ करे बर मनावत हंव।।
गंजा दारू छोडव संगी, शाकाहार बनावत हंव।
बैर भाव म कांहि नइहे, मया के बात सिखावत हंव।।3।।

ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव।
एक घांव मोर संग चलव संगी, अइसे गोहरावत हंव।।
आडम्बर, अमानुषता अउ भेदभाव ल मनखे ले मिटावत हंव।
गौतम बुद्ध, गुरूनानक अउ पेरियार संग, दोसती करावत हंव।।4।।

ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव।
कबीर दोहा के संग ओशो घलो के बिचार ल समझावत हंव।।
भगवान बिरसा मुण्डा जइसे लडे ल सिखावत हंव।
"भारत के संविधान सच्चा धरम" ऐहि बात बतावत हंव।।5।।

ओ दिन के सियानी गोठ तोला मैं बतावत हंव
उबड़ खाबड़ नहीं, पक्का रसदा तोला धरावत हंव


रचना: एचपी जोशी, नवा रायपुर, अटल नगर, छत्तीसगढ़

मंगलवार, नवंबर 12, 2019

गुरू नानकदेव ने हमें भाईचारा, एकता और मानवता का पाठ पढ़ाया - एचपी जोशी

गुरू नानकदेव ने हमें भाईचारा, एकता और मानवता का पाठ पढ़ाया - एचपी जोशी

मै पूरे मानव समाज को गुरू नानकदेव जयंति अर्थात प्रकाश पर्व की शुभकामना देता हूं।

उल्लेखनीय है कि गुरू नानकदेव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन अर्थात आज ही के दिन 550 वर्ष पहले हुई थी, उनके जयंति को हम प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं। उन्होनें हमें भाईचारा, एकता और मानवता के सिद्धांत पर चलने का रास्ता दिखाया। हम गुरू नानकदेव के चीरऋणी हैं जिन्होने हमें धर्म निरपेक्षता के लिए प्रेरित किया, इसीलिए सभी धर्म के अनुयायी उनके शिष्य बने और उनका अनुसरण कर अमरता को प्राप्त हुए। गुरू नानकदेव मानते थे कि अहंकार मनुष्य का सबसे बडा दुश्मन है अतः उन्होनें सेवाभाव को अपने आचरण में शामिल करने के लिए प्रेरित किया, उन्होनें मानव समाज में व्याप्त उंच-नीच, जाति-पाति, छुआछूत और भेदभाव को मिटाने के लिए लंगर की शुरूआत किया, जिसमें सभी जाति-धर्म के लोग एक ही पंक्ति में भाईचारा के साथ प्रसाद पाते हैं और सेवा करते हैं।

गुरू नानकदेव ने मानव समाज को बताया कि भंवसागर में एक ही ईश्वर है जो हमारा पिता है अर्थात हम एक ही ईश्वर के संतान हैं। उन्होनें ईमानदार रहकर संयमित जीवन जीनें, परोपकार करने और स्त्री का आदर करने का संदेश दिया।

हमें गुरू नानकदेव से प्रेरित होकर जीवन जीनें की आवश्यकता है, सच्चे अर्थो में मानव होने के लिए गुरू नानकदेव जी के मार्ग में चलना अत्यंत आवश्यक है।

शनिवार, नवंबर 09, 2019

न्याय का साथ दें, न्याय समस्त जीव का अधिकार - एचपी जोशी

न्याय का साथ दें, न्याय समस्त जीव का अधिकार

अयोध्या विवाद में हमें शीघ्र ही न्याय मिलने वाला है। हम न्याय के साथ हैं, अमन और शांति के साथ हैं, प्रेम और भाईचारे के साथ हैं, मंदिर मस्जिद में भेदभाव के खिलाफ हैं क्योंकि हम मानव हैं।

न्याय सबका अधिकार है इसलिए जिस वर्ग को भी न्याय मिलेगा उसके खिलाफ जाकर अन्याय नहीं करेंगे।

चाहे हम हिन्दू हैं, चाहे हम मुस्लिम हैं, चाहे हम ईसाई हैं या फिर चाहे हम अन्य भारतीय धर्म के अनुयाई।

हिंसा किसी भी शर्त में बेहतर विकल्प नहीं हो सकता और न तो धर्म हिंसा को आदर्श के रूप में स्वीकार सकता है। अहिंसा में ही धर्म का सर्वोच्चता और महानता निहित है इसलिए अयोध्या में न्याय का समर्थन समस्त देशवासी ही नहीं वरन् पूरे विश्व के मानव समूदाय का परम कर्तव्य है।

अयोध्या मसले में मानव-मानव एक समान, जम्मो जीव हे भाई बरोबर और वसुधैव कुटुम्बकम से प्रेरित होने की जरूरत है। इन विचारधारा से प्रेरित होना भारत के महानता का परिचायक होगा अन्यथा देश में पैदा होने वाले अशांति और हिंसा हमें बर्बर मानव के उपाधि से ही सम्मानित करेगी।

आइये न्याय का सांथ दें, माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान करेें।

शनिवार, अक्तूबर 19, 2019

मानव अधिकार समस्त मनुष्य का जन्मजात अधिकार है यह किसी भी शर्त में छिना नही जा सकता - एचपी जोशी

मानव अधिकार समस्त मनुष्य का जन्मजात अधिकार है यह किसी भी शर्त में छिना नही जा सकता - एचपी जोशी

पुलिस, सेना और सस्त्र बल के जवानों को मानव अधिकार पर कोर्स करने की जरूरत है - एचपी जोशी

मानव अधिकार क्यों पुलिसकर्मियों के शहादत पर मौन हो जाती है? क्या पुलिसकर्मियों का मानव अधिकार नही होता?

आइए आज हम मानव अधिकार के बारे में संक्षिप्त में कुछ जानने का प्रयास करेंगे क्योंकि हम मानव है और मानव होने के नाते प्रकृति ने सदैव से अधिकार दिया है कि हम सभी मनुष्य ही नही वरन् सभी जीव उसके समक्ष समान हैं प्रकृति किसी भी जीव से किसी भी प्रकार से भेद नहीं करती यही ‘‘प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत’’ इसे हम ‘‘नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत’’ के नाम से भी जानते हैं। आज हम जिसे मानव अधिकार के नाम से जानते हैं वह ‘‘प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत’’ अर्थात ‘‘नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत’’ से ही प्रेरित है। 

‘‘स्वतंत्रता और समानता के अधिकार मनुष्य के जन्मसिद्ध अधिकार है।‘‘ जिसे मनुष्य से अलग नहीं किया जा सकता। व्यक्ति को उसके मानव अधिकारों से वंचित करने का अर्थ है दे के भीतर आंतरिक अशांति और गृहयुद्ध को आमंत्रित करना। मानव अधिकार ही ‘‘प्राकृतिक अधिकार’’ है इसे ‘‘व्यक्ति के अधिकार’’ के नाम से भी जाना जाता था। अधिकार मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है इसके बिना कोई नागरिक अपनी समग्र विकास नही कर सकता और न तो अधिकार के बिना वह सही अर्थों में हो सकता। दूनिया के हर नागरिक को अपने देश अथवा सरकार से अधिकार पाने का अधिकार है जिसे वह सरकार के विरूद्ध दावा कर सकता है। कोई देष अपने नागरिक को जितना अधिकार देता है उसी के आधार पर उसकी अच्छाई या बुराई का आंकलन किया जा सकता है। 

मानव अधिकार क्यों पुलिसकर्मियों के शहादत पर मौन हो जाती है? क्या पुलिसकर्मियों का मानव अधिकार नही होता?
मानव अधिकार पर कार्य करने वाले सभी लोगों और संस्थाओं को भली भांति ज्ञात है कि किसी भी व्यक्ति से उसका मानव अधिकार किसी भी शर्त में छिना नही जा सकता है। ऐसा मानव अधिकार में ही प्रावधान है। यह बडी विडम्बना है दूख का विषय है कि हम मानव अधिकार पर कार्य करते हुए केवल एक वर्ग विशेष के लिए कार्य करने लग जाते हैं सीमित और संकुचित हो जाते हैं जबकि हमें भी मानव अधिकार के निष्पक्षता के अनुरूप ‘‘नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत’’ के समानांतर चलते हुए कार्य करना चाहिए। यदि हम ऐसा नही करते मतलब हमें मालूम है हम किसी दूसरे पक्ष को अन्याय का सामना करने के लिए छोड रहे हैं। इसलिए मानव अधिकार पर कार्य करने वाले लोगों और संस्था को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से कार्य करने की जरूरत है चाहे क्यों न पुलिस राज्य का अंग है और हमें राज्य से अधिकार पाने का हक है, फिर भी पुलिसकर्मी भी मूल रूप से मानव ही हैं, सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान भी मानव ही हैं, इसे हमें नही भूलना चाहिए। क्या हम प्रकृति के सिद्धांत के विपरित जाकर पुलिसकर्मी, सेना और अर्द्धसैनिक बल के जवानों को मानव की श्रेणी अलग कर सकते हैं? क्या हम किसी मनुष्य को किसी विशेष पद धारित कर लेने के बाद उसे मानव मानने से इनकार कर सकते हैं? जवाब आता है- ऐसा हम कदापि नही कर सकते हैl फिर तो हमें याद होनी चाहिए कि पुलिसकर्मी भी मानव ही हैं सेना और अर्द्धसैनिक बल के जवान भी मानव हैं, उनके भी वही अधिकार हैं जो सभी मनुष्य के हैं। अतः हमें पुलिसकर्मियों के मानव अधिकारों की रक्षा के लिए भी संकल्पित होकर कार्य करने की जरूरत है। यह देखने की जरूरत है कि क्या देश के सेना, अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस के जवान को भी उनका मानव अधिकार मिल रहा है कि कोई उनके मानव अधिकारों का हनन कर रहा है?

पुलिसकर्मी, सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान भी मनुष्य हैं इनके भी मानव अधिकार हैं वैसा ही जैसा हम सब नागरिकों का है फिर इन्हें क्यों वंचित रखा जाए? ये वर्दी के भीतर और वर्दी के बाहर मूल रूप से मानव ही हैं, समाज के अंग हैं, हमारा दोस्त है, बेटा/बेटी है और भाई/बहन है। आइए संकल्पित होकर कार्य करें बिना भेदभाव किये मानव अधिकारों को लागू करने में कार्य करें, देखें कि कोई ऐसा वर्ग तो नही हैं जो अपने मानव अधिकारों से वंचित है। यदि ऐसा हो रहा है तो इसकी सूचना संबंधित राज्य के राज्य मानव अधिकार आयोग, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग और अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को देकर इनका भी पक्ष रखें और इन्हें भी न्याय दिलाएं।

ये जो प्रश्न उठता है कि मानव अधिकार क्यों पुलिसकर्मियों के शहादत पर मौन हो जाती है? क्या पुलिसकर्मियों का मानव अधिकार नही होता? क्या मानव अधिकार कार्यकर्ता पूरी ईमानदारी से कार्य कर रहे है?? आइए इसका सामना करें और सिद्ध करें कि ‘‘हां’’ मानव अधिकार कार्यकर्ता पुरी ईमानदारी से न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत के अनुरूप काम कर रहें हैं किसी को प्राथमिकता और किसी से भेद नही कर रही है।

अक्सर मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और संस्था के उपर आरोप लगता है कि देश के विशेषकर बस्तर (छत्तीसगढ़) में पुलिसकर्मियों और अर्द्धसैनिक के शहादत पर चूप नजर आते हैं। जबकि बस्तर में हजारों की संख्या में मानव अधिकार कार्यकर्ता हैं इसके बावजूद पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवान के हत्या पर बेजूबान हो जाते हैं आइए कुछ बोलें, मुह खोलें। 

इस लेख के माध्यम से मै उन नये साथियों से भी अपेक्षा करता हूं जो अभी हाल ही में इग्नू से ‘‘मानव अधिकार में प्रमाण-पत्र‘‘ कोर्स कर रहें हैं मानव अधिकार पर कार्य करने का लक्ष्य बनाए हुए हैं। सुनिश्चित करें कि मानव अधिकार पर कार्य करते हुए वे किसी भी शर्त में किसी वर्ग के साथ भेदभाव नही करेंगे, अपने कर्तव्य में पुलिस और अर्द्धसैनिक बल के जवानों के मानव अधिकारों पर भी ईमानदारी से कार्य करेंगे। पुलिस और अर्द्धसैनिक बल के जवानों के मानव अधिकार का भी पक्ष लेंगे। संकल्प लें कि हम मानव अधिकार को उसके सही दिशा में लेकर जाएंगे, मानव अधिकार के वास्तविक उद्देश्य पर कार्य करेंगे। मानव अधिकार के मूल सिद्धांत पर कार्य करेंगे और ‘‘प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत’’ अर्थात ‘‘नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत’’ से सदैव प्रेरित रहेंगे।

पुलिस, सेना और सशस्त्र बल के जवानों को मानव अधिकार पर कोर्स करने की जरूरत है - एचपी जोशी
मानव अधिकार को लेकर पुलिस, सेना और सशस्त्र तथा मानव अधिकार कार्यकर्ताओं व संस्थाओं के उद्देश्य में कोई मतभेद नही है फिर भी कतिपय मामलों में ऐसा देखा गया है कि माननीय न्यायालय के समक्ष दोनों आपस में परस्पर विरोधी पार्टी नजर आते हैं। इसे दूर करने के लिए आवश्यक है कि मानव अधिकार पर कार्य करने वाले संस्था और कार्यकर्ता पुलिस, सेना और सशस्त्र के जवानों के मानव अधिकार की सुरक्षा के लिए भी कार्य करें तथा पुलिस, सेना और सशस्त्र के जवान मानव अधिकारों के भली भांति जानकार हों। इसके लिए पुलिस, सेना और सशस्त्र के जवान ‘‘मानव अधिकार में प्रमाण-पत्र’’ कोर्स कर सकते हैं।

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