"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।

रविवार, मई 31, 2020

कहीं आपको "कलर विजन" नामक आंखों की बीमारी तो नहीं? - श्री हुलेश्वर जोशी

कहीं आपको "कलर विजन" नामक आंखों की बीमारी तो नहीं? - श्री हुलेश्वर जोशी

"जब मैं काले चश्मे पहनकर कड़ी धूप में निकलता हूँ तो रंगों की वास्तविकता समझ से परे हो जाता है; मतलब एक प्रकार से ^कलर विज़न^ का रोगी हो जाता हूँ" यही पूरे मानव समुदाय की समस्या है।

मेरा संकेत किसी एक विशेष विचारधारा के गेरुआ में बंधकर जीने वालों की ओर है। मेरा टारगेट किसी विशेष 'वाद' पर आंख मूंदकर जीने और दूसरे वाद को समझने से मना कर देंने वाले लोग हैं। मैं किसी एक वाद और विचारधारा का समर्थक अथवा विरोधी होने की मानसिकता के खिलाफ लिख रहा हूँ। मैं अपने विचार को दोहराना चाहूंगा जिसमे मैंने कहा है - "अत्यधिक उपयोगी और अच्छे रीति नीति भी समयकाल, सीमा और परिस्थितियों के अनुसार कुरीतियों में बदल जाते हैं अथवा जो पहले मानवता और प्रकृति के अनुकूल था कभी भी उसके प्रतिकूल हो सकता है।" आप कहेंगे मैं अपना विचार थोप रहा हूँ, हो सकता है थोप रहा हूँ ऐसा संभव है मगर सत्य तो यही है कि सदैव से विशिष्ट बुद्धि और शक्ति के लोग सदा से सामान्य बुद्धि और शक्ति वाले लोगों के ऊपर अपने विचार, नियम और संस्कृति को थोपते आ रहे हैं। मैं विशिष्ट बुद्धि और शक्ति वाला इंसान नहीं हूं मुझे होना भी नहीं, मैं किसी एक विचारधारा या वाद में पड़कर अपने बुद्धि और शक्ति को नियंत्रित करने के पक्ष में नही हूँ। यदि कोई व्यक्ति दुष्ट लक्ष्य और कुटिल कर्म से प्रेरित है तो उनके बुद्धि और शक्ति पर अवश्य रोक लगानी चाहिए, परंतु जिनसे सार्वभौमिक मानव समाज, जीव जंतुओं और प्रकृति को थोड़ा भी लाभ होने की संभावना हो उनपर नियंत्रण केवल उनके मानव अधिकार का हनन नहीं बल्कि सारे मानव समाज, प्राणी जगत और प्रकृति के साथ अन्याय है।

निश्चित ही बुद्धि और शक्ति के सदुपयोग पर नियंत्रण करने वाले समस्त प्रकार के सिद्धांत, नियम और परंपरा गलत ही हैं। यदि आपके आध्यात्मिक, पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक सिद्धांत, नियम या परंपरा ऐसे ही आपके शक्ति और बुद्धि को काम करने से रोकती हो तो ऐसे बंधन से आपकी मुक्ति आवश्यक है। मैं केवल तीन विषय तक आपके शक्ति और बुद्धि की आजादी का वकालत नही कर रहा हूँ ये तीन केवल एक उदाहरण के लिए है। राजनैतिक, आर्थिक और प्रशासनिक विषयों पर बिना किसी राजनैतिक चश्मे के समीक्षा करने का अधिकार होनी चाहिये, यदि आप किसी एक मानसिकता से प्रेरित हैं तो आपके 90% समीक्षा गलत हो सकते हैं।

आपके बुद्धि पर नियंत्रण लगा दिया जाए तो आप किसी निष्कर्ष पर नही पहुच सकेंगे, गुलाम ही रहेंगे। आपके दिमाक लगाने पर रोक लगा दिया जाए तो आप मनुष्य नही हो पाएंगे, आप कोई शोध नहीं कर पाएंगे आपके वैज्ञानिक होने की संभावना समाप्त हो जाएगा। जबकि हर मनुष्य में वैज्ञानिक होने के समान गुण है यह बात अलग है कि कोई अंतरिक्षयान बना सकता है कोई खेत में मेड बना सकता है कोई भोजन में नए स्वाद ला सकता है कोई फुलवारी के जगह सब्जी की बाड़ी लगा सकता है। कोई आपके मानसिकता को बदलकर सद्गुणों की ओर ले जा सकता है तो कोई आपको दुर्गुणों की कोठी बना सकता है। यदि मैं आपके बुद्धि पर नियंत्रण करने के पक्ष में हूँ इसका मतलब यह है कि मुझे आपके बुद्धि पर संदेह है आपको मूर्ख या कुटिल समझता हूं; यदि मैं आपके शक्ति में नियंत्रण का वकालत करता हूँ इसका मतलब आपको दुष्ट समझता हूं या फिर मुझे अपने शक्ति के क्षीण होने से भयभीत हूँ।

अंत में, आपसे अनुरोध है बुद्धि और शक्ति का मुक्त परंतु संतुलित प्रयोग करिए, किसी एक वाद या विचारधारा में बंधकर मत रहिए। विकासशील रहिए स्वयम को विकसित होने के भ्रम में मत रखिए, देशकाल और परिस्थितियों के अनुसार आप भी आगे बढिए.... कब तक पीछे चलकर भीड़ बढ़ाने का काम करेंगे कभी अपने पीछे बड़ी भीड़ बनाकर बढ़ने का प्रयास करिए। क्योंकि जो भीड़ का नेतृत्वकर्ता है उसमें और आपमें बराबर योग्यता है, केवल जरूरत है तो अपने बुद्धि और शक्ति को जानने की; इसलिए अपने बुद्धि और शक्ति का समीक्षा करिए, वैज्ञानिक बनकर शोध करिए। मैं जिस काले चश्मे को पहनकर धूप में निकलता हूँ वह मेरे समझ को संकुचित कर देती है इसलिए अब मैं सनग्लास वाला चश्मा पहनना शुरू कर दिया हूँ धूप में कई बार अपने चश्मे भी निकाल कर सामने वाले का समीक्षा भी कर लेता हूँ। आप भी काले चश्मे से मुक्त होने का प्रयास करिए, क्योंकि ये जो काले चश्मे है कलर विजन बीमारी से कम नही है।

-----0-----

लेखक - शिक्षाशास्त्र में स्नातकोत्तर है परंतु अंगूठाछाप लेखक "अभिज्ञान लेखक के बईसुरहा दर्शन" नामक आत्मकथा लिखने में मस्त है।


Writer : Shri HP Joshi


शनिवार, मई 30, 2020

श्री अजीत जोगी अमर हैं, महात्मा जोगी अमर रहेंगे - हुलेश्वर जोशी

श्री अजीत जोगी अमर हैं, महात्मा जोगी अमर रहेंगे - हुलेश्वर जोशी
Shri Ajit Jogi is immortal, Mahatma Jogi will remain immortal - Huleshwar Joshi

अजीत जोगी कौन हैं?
एक गरीब छत्तीसगढ़िया किसान के बेटा हैं, असुविधाओं में जीने और पढ़ने वाले मेरिटधारी स्टूडेंट के रूप में भी जान सकते हैं। आप उन्हें छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में जान सकते हैं, आप उन्हें आईपीएस, आईएएस, इंजीनियर और उकील के नाम से से जान सकते हैं। आप उन्हें प्रशासनिक अधिकारी के बजाय राजनैतिक व्यक्ति के रूप में जान सकते हैं उन्हें सांसद, विधायक, विपक्ष के दमदार नेता और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता के रूप में भी जान सकते हैं। फिर भी ख्याल रखना महात्मा जोगी वास्तव में क्या और कितना थे उसे कोई नहीं जान सकेगा। सबकी अपनी दृष्टिकोण है आप उन्हें ज्यादा जानें का फिर कम; आप उनके प्रसंशक हों या निंदक कोई बात नहीं उनके दिशा में उनके बनाये और चले रास्ते में चलकर देखिए वह "गुरु" से  कम नही होंगे। 

महात्मा जोगी कितना गलत हैं?
मनुष्य अत्यंत बुद्धिमान प्राणी है, हर मनुष्य के अपने अलग अलग दृष्टिकोण है, हर व्यक्ति के पास अपनी अपनी तराजू है, हर व्यक्ति के आंखों में अपने अलग अलग रंग के चश्मे लगे हैं, हर आदमी समीक्षा और उचित अनुचित का बोध भी रखता है। इसके बावजूद कुछ चंद लोग मेरे (लेखक) जैसे भी हैं जिन्हें कल्याणकारी होने से मतलब नहीं, मैं अत्यंत स्वार्थी व्यक्ति हूँ अपने हिसाब से दुनिया को स्थापित करके देखना चाहता हूं। बचपन में हमारा गर्मियों का दिन जेठू गौटिया के आम के बगीचे ही गुजरता था, बहुत छोटे से लेकर युवा होने तक आम के फल लगे आम के बगीचा हमें अत्यंत आकर्षित करते। एक दिन मेरा एक साथी बोलने लगा "ईश्वर अत्यंत नासमझ है।" मैंने पूछा क्यों? क्या हुआ? तुम ईश्वर के ऊपर प्रश्न खड़ा कर रहे हो? उन्होंने कहा आम हम सबको पसन्द है फिर उन्होंने आम को कद्दू जैसे बड़े आकार के और डूमर जैसे जड़ से लेकर डाली के अंतिम छोर तक फलने वाले नहीं बना पाया। इसका मतलब आप सोचिए ईश्वर कितने अदूरदर्शी थे, ये बात मेरे दूसरे साथी भी मानने लगे थे, मैं भी मानने को मजबूर था क्योंकि मुझमें भी अविकसित बुद्धि जो थी। एक दिन रात में मेरे दादा जी हम भाई बहनों को कहानी सुना रहे थे तब मैंने उनसे पूछा क्या ईश्वर अत्यंत नासमझ थे? तब दादा जी सुनकर हँसने लगे, फिर चुप होकर समझाने लगे बोले हम ईश्वर को मानते हैं या नहीं यह बात महत्वपूर्ण नहीं आप आम को ईश्वर द्वारा निर्मित मानें या फिर क्यों न प्रकृति की देन मगर आम का पेड़ अत्यंत संतुलित आकार के होते हैं और उसके फल भी। आगे उन्होंने एक बड़ी कहानी भी सुनाया जिसमें बुद्धिलाल ईश्वर का गलती खोजने निकला रहता है तभी थककर रास्ते में ही लगे आम के पेड़ के नीचे बैठकर ईश्वर से कहता है देखो तुम कितने नासमझ हो आम के पेड़ को इतना विशालकाय बना दिया मगर फल को इतना छोटा और मनुष्य के सामान्य पहुच से दूर रखें हो। बुद्धिलाल बड़बड़ाते हुए ईश्वर को कोशते हुए वहीं आराम करने लगता है अचानक आंख खुलती है तो लाठी भांजने लगते हैं क्योंकि किसी ने उसके शिर को मार दिया था, आजु बाजू और पेड़ के पीछे देखा तो समझ मे आया कोई नही है। सोचा पक्का भगवान आकर उन्हें मार गए होंगे, भगवान उनसे जलने जलने लगे हैं, आसमान की ओर चिल्लाकर बोलते हैं तुम धन्य हो भगवान आज तुम्हारी दुश्मनी भी देख लिया तुम कितने कमजोर हो जो छिपकर मुझपर वार कर रहे हो, आओ हिम्मत है तो मेरे सामने आकर कुश्ती कर लें। इतना बोलते ही एक पके आम उनके सामने ही गिर गया, फिर दूसरा तीसरा..... सैकड़ों आम गिरने लगे क्योंकि जोर की आंधी चलने लगी थी। उन्होंने समझा अब तो पक्का भगवान उनके दुश्मन बन गए हैं सो उन्होंने लाठी भांजते हुए दौड़ते दौड़ते कोसों दूर अपने घर पहुच गए, पत्नी पूछती है भगवान के कितने गलती निकाले? बुद्धिलाल बोलने लगे गलती तो करोड़ निकाल दूँ मगर अब वे मेरे दुश्मन बन गए हैं जैसे तैसे जान बचाकर आया हूँ कहकर पूरी वृत्तांत अपनी पत्नी को बताया। पत्नी पेट पकड़ पकड़ कर हँसने लगी, बुद्धिलाल को क्रोध आने लगा अंततः पत्नी थोड़ी देर उनके मूर्खता से वापस लौटकर उन्हें समझाई तो समझ में आया कि ईश्वर सही हैं बुद्धिलाल ही, व्यर्थ के मानसिकता में पड़े थे। यदि आप भी बुद्धिलाल के जैसे इंसान हैं तो आप महात्मा जोगी के लाखों गलती, असफलता और कमजोरी निकालने का प्रयास कर सकते हैं।

महात्मा जोगी के बारे में, चंद बातें
# श्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी केवल चंद नाम के मोहताज नहीं, कुछ उपलधियों तक सीमित नहीं वे छत्तीसगढ़ राज्य के हर कण में विद्यमान रहेंगे; क्योंकि श्री अजीत जोगी भारतमाँ के रतन बेटा है, छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरुआ हीरा बेटा है। 
# श्री जोगी; श्री अजीत जोगी को केवल अजीत प्रमोद कुमार जोगी ही नहीं बल्कि महात्मा जोगी के नाम से भी जाना जाएगा, हां वही अजीत जोगी जो जाति, धर्म और राजनीतिक से भी दूर काबिलियत और संघर्ष का रोल मॉडल हैं। महात्मा जोगी कभी हारने वाले नहीं सदैव जीतने वाले रहे हैं।
# महात्मा जोगी जो गरीब और शोषित छत्तीसगढ़िया के लिए भगवान से कम नही थे।
# महात्मा जोगी हमें कई वर्ष नही, कई दशक नहीं बल्कि सैकड़ों शताब्दी तक आपको संघर्ष करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।
# महात्मा जोगी जो कई शताब्दियों तक जिंदा रहेंगे। 
महात्मा जोगी कभी मरेंगे नहीं।
# महात्मा जोगी जिंदगी की जंग हारे नहीं बल्कि जीत चुके हैं।
# जो उनके विरोधी हैं जो उन्हें अपने किसी स्वार्थगत कारणों से बदनाम करने की कोशिश करते रहे उनसे भी निवेदन हैं अब आपके स्वार्थ के बीच कोई अटकाव नही है; मगर ख्याल रखना महात्मा जोगी आपके अंदर भी जिंदा हैं, आपके जीवित रहते वे आपके दिलोदिमाग से अलग नही होंगे। क्योंकि महात्मा जोगी जिंदा हैं।

------------------------------

Writer Shri HP Joshi (Image)

गुरुवार, मई 21, 2020

हम सब भारतीय एक सामान - श्री जोशीजी की कविता

"हम सब भारतीय एक सामान"
हम सब भारतीय एक सामान हमारे मन में कोई पाप नहीं।
हमको जी भर के जीना है, अपना किसी से बात नहीं।।
हम मानवता को जानते हैं, और किसी के खास नहीं।
हम सब भारतीय एक सामान मन में कोई बात नहीं।।


हिन्दू मुस्लिम दोनों ही भाई सिक्ख इसाई भी नहीं पराई।
आओ मेरे साथ आओ, आओ हो जाओ मेरे साथ में भाई।।
हमने भी तो कसम है खाई, भारत को आओ महान बनाई।
करें एक साथ काम हम, हुलेश्वर जोशी भी नहीं पराई।।


हम सब भारतीय एक सामान, हमारे मन में कोई पाप नहीं।
आओ होली के रंग में रंगें, दिवाली बिन मन उजियारा नहीं।।
हरियाली अउ गेड़ी तिहार, तीजा बिन राखी का मोल नहीं।
हम सब भारतीय एक सामान मन में कोई बात नहीं।।

हम सब भारतीय ........................


यह कविता श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी द्वारा दिनांक 07-12-2012 को 4थी बटालियन माना कैम्प रायपुर में  लिखा गया थाl इस कविता के माध्यम से हर भारतीय नागरिक को एक समान होने का संदेश दिया गया है, कविता में हिन्दी छत्तीसगढ़ी परम्परा का भी उल्लेख किया गया है।

Image of Poet Shri Huleshwar Prasad Joshi

‘‘भारत के लाज आंव मै‘‘ - श्री जोशीजी की कविता

‘‘भारत के लाज आंव मै‘‘
भारत के लाज आंव मै, मोला संग लगाले।
तहुं ल अपन संग ले जाहूं, मोर संग तंय जोरिया ले।। 

मन मंदिर म तोला बसाएंव, तहुं मोला बसाले। 
दाई-ददा के लाज राखे बर, मोर संग तंय हरियाले।।
भारत के लाज......

भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
दुरिहा खडे हंव पराय जात अस, अपन जात अपनाले।। 
दुनो के रंग, खुन हे लाली, लाली लाल रचाले।
करिया गोरिया के भेद काबर, मानुस जात चिनहा ले।।

भारत के लाज......

भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
तेली, सतनामी अउ राउत, बामहन चाही ठाकुर कहाले।। 
मैं चाही गोंड़ या मुरिया आवंव, हिन्दू-हिन्दू कहाले। 
हिन्दू चाहे मुश्लिम मैं इसाई, मानुज-मानुज चिनहाले।
भारत के लाज......

भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले। 
कुदरी, टंगीया हांथ हे मोर, हरिया घलो धराले।।
चरोटा भात के खवईया संगी, चना मुर्रा चाही खवादे। 
रोजी मंजुरी नई करंव अब, जोशी संग सुंता बईठादे।।
भारत के लाज......

भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले।
चना ओनहारी के उपजईया मय, भले अंकरी म खवाले।। 
पेट भरईया आवव मैं किसान, भुंखा पेट सोवाले।
भारत के लाज आंव मैं, मोला संग लगाले। 
भारत के लाज आंव ...........................
कविता के माध्यम से श्री जोशी जी द्वारा जाति धर्म से परे रहने वाले किसान के माध्यम से जागरूकता लाने का प्रयास किया गया है। इसके माध्यम से अन्नदाता किसान को भी चित्रित करने का प्रयास किया है। उल्लेखनीय है कि इस कविता को श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी द्वारा 4थी वाहिनी माना रायपुर में भर्ती ड्यिूटी के दौरान दिनांक 08 12 2012  को लिखा गया था।

Image of Poet Shri Huleshwar Prasad Joshi


तइहा के गोठ ह पहाए लागिस - श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी की (कविता)

तइहा के गोठ ह पहाए लागिस.....
तइहा के गोठ ह पहाए लागिस
दूधारू गाय के लात ह मिठाए लागिस
शिक्षाकर्मी बहु ह गारी देथे बेटा ल
महतारी ह दरूहा बेटा बर काल पिरोए लागिस

नवा नेवरनिन घरघुसरी के राज हे
सांची के समुंदर मे नाश होही
बिहाए डउकी के बेटा ह रोटी जोहे
अउ सास ससुर देवी देवता के तिरस्कार होही

आगी लगय दुश्चरित्तर बेटा के जवानी म
एक बात आथे शिक्षाकर्मी बहुरानी म
हांथ जोर नवा नेवरनिन घरघुसरी के
महतारी रोवत हे घर दूवारी म

यह कविता सत्य घटना पर आधारित है। वास्तविक कहानी किस जिले की है, किस गांव की है यह सदैव ही छिपे रहेंगे। परन्तु यहां यह उल्लेखनीय है कि इस कविता की रचना वर्ष 2008 में की गई थी, जिसके प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हुए पुनः प्रकाशन किया जा रहा है।



















HP Joshi
2008 - Bastar 


बुधवार, मई 20, 2020

कोरोना वायरस के फूल (लेख) - श्री एच. पी. जोशी

कोरोना वायरस और मंगरोहन वाले मुडही के फूल (लेख) - श्री एच. पी. जोशी


सावधान और सुरक्षित रहिए क्योंकि कोरोना वायरस इस तस्वीर में दिख रहे फूल जैसे नग्न आंखों से दिखाई नही देता। दीगर राज्य और विदेशों से आने वाले अथवा कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले कोई भी व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं, संक्रमित व्यक्ति के हथेली देखकर आप नही जान पाएंगे कि वह संक्रमित है या नहीं। मेरे हथेली में जो कोरोना वायरस जैसे दिख रहा है वह मुडही का फूल है, मुडही को नग्न आंखों से देखा जा सकता है मगर वास्तव में कोरोना वायरस अत्यंत तुच्छ आकार के होने के कारण विशेष वैज्ञानिक तकनीक अर्थात स्पेशल कोरोना टेस्टिंग किट से ही पता चल पाता है और दिख सकता है। इस मुडही को कोई अंधा व्यक्ति भी छूकर जान सकता है कि यह कोई फूल है सायद उन्हें लगे कि यह कोई फल है, मगर आप चाहे कितने ही अच्छे या दिव्य दृष्टि रखते हों आपको कोरोना के वायरस दिखाई नही देंगे, कोरोना वायरस की भविष्यवाणी कोई ज्योतिष भी नहीं कर सकता। 

आपसे अनुरोध है एक ही घर परिवार में निवासरत अपने पारिवारिक सदस्यों के अलावा शेष सभी व्यक्तियों से फिजिकल डिस्टेनसिंग रखें। जब दूसरे किसी स्थान पर या किसी अन्य व्यक्ति से मिलने जाना पड़े या किसी अन्य व्यक्ति से वार्तालाप करना पड़े तो वार्तालाप और घर से बाहर रहने के दौरान नाक और मुह को अच्छे से ढ़कने योग्य मास्क जरूर लगाएं। घर में रहें तब भी समय समय पर साबुन से हाथ धोते रहें जब साबुन से हाथ धोएं तो कम से कम 20 सेकंड तक हाथ को धोते रहें। घर या कार्यालय से बाहर जब साबुन से हाथ धोने का व्यवस्था न मिले तब अल्कोहल बेस्ड सेनेटाइजर से हाथ साफ करते रहें। लिफ्ट के बटन, गेट, संदेहास्पद वस्तुओं अथवा सामग्री इत्यादि को छूने के पहले या बाद में साबुन से हाथ धोएं या सेनेटाइजर लगाएं; घर से बाहर निकलें तो बेहतर होगा सेनेटाइजर की एक छोटी बॉटल लेकर चलें।

यह उसी मुडही का फूल है जिसके तना और हरे डालियों का उपयोग छत्तीसगढी परंपरा में विवाह के दौरान मंगरोहन (लकड़ी का पुतला पुतली) बनाने और मड़वा छाने में किया जाता है। मंगरोहन मंडप के बीच में गड़ाया जाता है। मंगरोहन के सामने ही मिट्टी के 02 करसा में पानी भरकर उसके बाहरी आवरण में गोबर से चित्र बनाकर हल्दी और कुमकुम इत्यादि से रंगे हुए चाँवल से सजाया जाता है इस करसा के ढक्कन में ही तेल के जोत जलाया जाता है। जिसके चारों ओर दूल्हा दुल्हन भांवर घूमते हैं तब विवाह संपन्न होता है। सम्भव है आप इसे अर्थात मुडही को दूसरे किसी नाम से जानते हों।

माफीनामा- मूल रूप से इस लेख का "शीर्षक कोरोना वायरस और मंगरोहन वाले मुडही के फूल है" जो ईमानदारी की बात है परन्तु शोशल मीडिया में हेडिंग आधारित बेईमानी सीखकर मैने अपने लेख का शीर्षक "कोरोना वायरस के फूल" कर दिया है। मैं अपने इस बेईमानी के लिए आप पाठक बंधुओं से माफी चाहता हूं। परन्तु इस माफीनामा से आपको सीखने की भी जरूरत है कि आज अधिकांश वेबपोर्टल में पेज व्यू बढ़ाने अर्थात एडसेन्स अथवा किसी फर्म/कंपनी से विज्ञापन पाने के लिए भ्रामक शीर्षक का प्रयोग किया जाता है, ताकि आप शीर्षक के झांसे में आकर उनके लिंक में जाएं और उन्हें व्यू मिले मगर आपको गोल-मोल भंवर में फंसाकर वापस फेंक दिया जाता है। - एच. पी. जोशी (लेखक)


Written Date : 19/05/2020

रविवार, मई 17, 2020

प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य H3 होनी चाहिए; जानिए H3 क्या है?

प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य H3 होनी चाहिए; जानिए H3 क्या है?

आप अन्यथा न लें, कि मैं H3 का सिद्धांत बना रहा हूँ जो पक्षपात पूर्ण है, स्वयं को हीरो बनने की जुगाड़ है। क्योंकि आपको लग सकता है कि अंग्रेजी के H अक्षर से ही मेरा नाम शुरू होता है, इसलिए मैंने H3 का सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया। खैर; मनुष्य के लिए H3 अनिवार्य तत्व है जिसके बिना मनुष्य का मनुष्य होना अधूरा और असंगत ही रहेगा।

H3 क्या है?
H3 मतलब तीन बार H क्रमशः स्वास्थ्य, मानवता और खुशी का प्रतिनिधित्व करता है; जिसमें प्रथम H - Health बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्रेरित करता है, दूसरा H - Humanity अर्थात मानवता का द्योतक है जिसके बिना मनुष्य मनुष्य नहीं हो सकता, जबकि तीसरा और अंतिम H - Happiness अर्थात ख़ुशी का प्रतीक है।

स्वास्थ्य (Health); उत्तम स्वास्थ्य मनुष्य ही नहीं बल्कि ब्रम्हांड के सारे जीव जंतुओं के दीर्घायु जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। यदि कोई मनुष्य निरोगी नही है इसका तात्पर्य यह है कि उनका जीवन अत्यंत कठिनाइयों, दुःख और ग्लानि से भरा हुआ होगा; रोगी होने का तात्पर्य यह भी है कि वह अधिकांश प्रतियोगिताओं के लिए अयोग्य हो जाएगा। माता श्यामा देवी कहती थी "अच्छी स्वास्थ्य केवल निरोगी होने के लिए ही नहीं बल्कि बौध्दिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी आवश्यक है।"

मानवता (Humanity); मानवता हर मनुष्य के भीतर होना आवश्यक है। किसी मनुष्य के भीतर मानवता का गुण नही है इसका तात्पर्य यह है कि वह मानव के बजाय अन्य जीव के समान गुणधर्म वाले ही माने जाने योग्य हो जाएगा।

खुशी (Happiness); खुशी मानव जीवन ही नहीं बल्कि अन्य जीव जंतुओं के लिए भी उनके सफल जीवन और संतुष्टि के लिए आवश्यक है।


Image for Health, Humanity and Happiness 
(Tattvam Huleshwar Joshi)


कर्म, कर्मफल और कर्म के लेखा जोखा का सिद्धांत - श्री हुलेश्वर जोशी

कर्म, कर्मफल और कर्म के लेखा जोखा का सिद्धांत - आलेख श्री हुलेश्वर जोशी


कर्म का सिद्धांत क्या है? कर्मफल क्या है? इसे जानने के पहले हमें कर्म को जानना होगा, कि कर्म क्या है? कर्म किसे कहेंगे? कर्म अच्छे हैं या बुरे? कर्म का फल स्वयम के कर्म के अनुसार मिलता है कि हिस्सेदारी सबकी होती है? इन सब प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए आइए धरमचंद और करमचंद की कहानी पढ़ लें।

करमचंद और धरमचंद दोनो बचपन के साथी थे जन्म भी एक ही दिन हुआ था, कद काठी और देखने में लगभग एक जैसे ही लगते थे, कोई अजनबी यदि अलग अलग समय में करमचंद और धरमचंद से मिलेगा तो धोखे में रहेगा कि दोनों व्यक्ति जिससे वह मिला है एक ही है कि अलग अलग दो व्यक्ति हैं। कम उम्र में ही जब दोनों प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते थे तभी उनके गुरुजी ने करमचंद और धरमचंद को मितान बनवा दिया था। तब से इनकी अधिक गाढ़ी दोस्ती हो गई थी, दोनो एक दूसरे के अनन्य मित्र हो चुके थे। इनकी मित्रता कुछ कुछ सुदामा के मित्रता से मिलता था, केवल असमानता इस बात की थी कि सुदामा और गोपाल सोमरस का पान नहीं करते थे जबकि करमचंद और धरमचंद सोमरस के आदी थे। इनकी मित्रता, मित्र के लिए समर्पण और सम्मान कर्ण से अधिक था भिन्नता था तो केवल इस बात की कि कर्ण ने दुर्योधन के इच्छा को अपना धर्म मान लिया था जबकि करमचंद ने धरमचंद को ही अपना मित्र बना लिया था। वैसे दूसरा भिन्नता इस बात की थी कि कर्ण कभी सोमरस को हाथ नहीं लगाया जबकि करमचंद और सोमरस का अटूट रिस्ता था सोमरस हमेशा उनके हाथ में या लुंगी के गांठ में स्वयं को सुरक्षित मानता था। करमचंद अपने मित्र धरमचंद के विवाह समारोह में नृत्य कर रहा था, अचानक बैंड वाले ने नागिन डांस वाला म्यूजिक बजा दिया। फिर क्या था करमचंद नागिन डान्स करने लगा, बिधुन होकर नाचते नाचते बेहोश हो गया। पता चला करमचंद के बम में पथरीले रास्ते के नुकीले पत्थर चुभ गया था, उसके बावजूद वह नाच रहा था, नीचे लुंगी खून से लथपथ हो चुका था, उसके खून से कुछ और लोग भी सना चुके थे। चस्माराम भी खून से भीग चुका था, देशी दारू की दुकान के पास किसी ने चस्माराम को बताया कि उसका कपड़ा खून से भींग चुका है। चस्माराम अपने वस्त्र के भीतर शरीर को चेक किया तब उन्हें पता चला कि उन्हें कोई चोट नही है वापस आकर चस्माराम ने बेंड रूकवाकर लोगों को बताया तब पता चला कि करमचंद को चोट लगी है, करमचंद अपने लुंगी और शरीर के खून को देखकर मूर्छित हो गया था।

अब बताओ करमचंद को क्यों चोट लगी? क्या पिछले जन्म में उसने कोई पाप किया था? क्या उसने किसी के लिए गड्ढे खोदे थे, जिसमे वह गिरा? क्या करमचंद पापी था? क्या करमचंद का नृत्य करना पाप था? क्या करमचंद और धरमचंद में पिछले किसी जन्म में कोई दुश्मनी थी? या कभी करमचंद और धरमचंद की होने वाली पत्नी के बीच कोई पिछले जन्म की दुश्मनी थी? क्या रास्ते को बनाने वाले ठेकेदार की गलती थी? क्या सरकार की गलती थी, जिससे कच्चे रास्ते को उन्नत कर गिट्टी मुरम का बना दिया था? क्या बैंड वाले की गलती थी जो उसने नागिन डांस के लिए म्यूजिक दिया? क्या धरमचंद की गलती थी कि उसने अपने विवाह में बैंड लगवाया? क्या धरमचंद के बाप का गलती था जिसने धरमचंद का विवाह तय कर दिया? क्या महुआ दारू का गलती था जिसे करमचंद ने पी रखी थी? क्या महुआ बनाने वाले भोंदुलाल का गलती था? क्या धरमचंद के छोटे भाई मतवारीलाल का गलती था जिसने महुआ दारू खरीद लाया और करमचंद को पीने दे दिया था?

फल का जिम्मेदारी कौन लेगा? किस या किसके कर्म पर आरोप लगाया जाए जिसके कारण करमचंद अभी मूर्छित है? उत्तर बिल्कुल समझ और बुद्धि के पकड़ से दूर ही मिलता है हर अनुमान पहले सटीक जान पड़ता है फिर कुछ ही समय में उत्तर से दशकों प्रकाशवर्ष दूर चले जाते हैं यही प्रक्रिया अर्थात दूर और निकट का खेल बारम्बार नियमित रूप से पुनरावृत्ति होती है। करमचंद और धरमचंद की कहानी पढ़ने के बाद कर्मफल का जो सटीक उत्तर मिला है उसके अनुसार प्रतीत होता है कि यहां पूरा पूरा साझेदारी का गेम है, कोई अकेला व्यक्ति अथवा उसके पूर्वजन्म के कर्म ही उनके मूर्च्छा का कारण नहीं है बल्कि प्रश्न के दायरे में आने वाले सभी व्यक्ति और उनके कर्म करमचंद के कष्ट का कारण है। संभव है किसी भी कर्म और कर्मफल का अकेला कोई व्यक्ति अथवा संबंधित व्यक्ति और उनके कर्म जिम्मेदार न हों, इसलिए करमचंद के मूर्छा के लिए सभी कुछ कुछ मात्रा में जिम्मेदार हैं।

क्या कर्म का खाता होता है? क्या कर्म का एक ही एकाउंट होता है एक जीव के लिए? क्या एक जीव के कर्म का एकाउंट सैकड़ो लाखों हो सकता है? क्या पति पत्नी का साझे का एकाउंट होता है? क्या आपके कर्म के एकाउंट से आपके निकट या दूर पीढ़ी को कुछ हिस्से मिलेंगे? क्या कर्म का एकाउंट आपके जन्म जन्मांतर तक चलता रहेगा? कर्म के एकाउंट अर्थात लेखा जोखा या खाता से संबंधित सैकड़ों प्रश्न उठते हैं; परंतु क्या इन सैकड़ों प्रश्नों का कोई अत्यंत सटीक उत्तर दे सकता है? उत्तर आता है नहीं। नहीं क्यों? क्योंकि यह अनुमान है आपका मानना है सत्य नहीं। यदि सत्यता है आपके जवाब में तो साक्ष्य भी मिलना चाहिए ठीक वैसे ही जैसे आपके याहू, हॉटमेल और जीमेल एकाउंट का साक्ष्य है, आपके सोशल मीडिया एकाउंट जैसे फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग, वर्डप्रेस और टिकटोक के साक्ष्य मिलते हैं। ठीक वैसे ही जैसे बैंकों के बचत खाते, जमा खाता, ऋण खाता, फिक्स डिपॉजिट, रिकरिंग डिपॉजिट, जीवन बीमा, टर्म प्लान इत्यादि का एकाउंट होता है।

कर्म का खाता तो दिखाई ही नही देता इसके साक्ष्य भी नहीं मिलते, तो क्या यह मान लिया जाए कि कर्म का एकाउंट नही होता। क्या मान लें कि कर्म का एकाउंट जैसी बात कोरी कल्पना है? इसमें थोड़ा संदेह नजर आता है क्योंकि हम हजारों वर्षों से यह मानते आ रहे हैं कि कर्म का लेखा जोखा होता है। फिर एक झटके में इन चंद प्रश्नों के झांसे में आकर अपनी बनी बनाई SOP को खारिज करके अपनी अनुशासन क्यों बदल डालें? क्यों मानने लगें कि कर्म का एकाउंट नही होता, खाता नही होता? इसे मानने के पहले भी द्वंद पैदा हो जाता है कैसा द्वंद इसे समझने के पहले हम लगभग 1,50,000 साल ईसापूर्व चलते हैं। नजूलनाथ और फजूलनाथ दो सगे भाई हैं जो रतिहारिन की संतानें हैं रतिहारिन रोमसिंग कबीला के कबीला प्रमुख की पहली पत्नी है। जब कबीला प्रमुख रोमसिंग दूसरे कबीलों को अपने कब्जे में लेने के अभियान में चल पड़े थे और लंबे बसंत तक वापस नहीं आए तो रतिहारिन को उनकी चिंता होने लगी, वे अपने रोमसिंग के तलास में निकल पड़ी। कुछ कबीला तक उनके यात्रा के दौरान उनका खूब सम्मान हुआ, आगे चलते हुए, रोमसिंग को खोजते हुए लगभग दो बसंत बीतने को आया तब वह अपने रक्षकों और अश्व के बिना नदी किनारे स्वयं को पाई, तब वह गर्भवती हो चुकी थी, उन्हें पता नहीं कि कब कैसे किसके सहयोग से वह गर्भवती हुई है। वह आसपास के काबिले में गई तो किसी ने उसे बताया कि वह कबीला प्रमुख रोमसिंग की पत्नी है, रोमसिंग को भी सूचना मिल गई वे फौरन आकर अपनी पत्नी को लेकर चल दिये। अब शोध शुरू हुई कि रतिहारिन कैसे गर्भवती हुई सबके सब जानने में असफल रहे तब एक दरबारी मंत्री ने कहा इसे प्रकृति का संतान मान लेना चाहिए अथवा शक्तिमान का आशीर्वाद मान लेना चाहिए; ठीक ऐसे ही हुआ क्योंकि दिमाक खपाने और परिणाम नहीं मिलने की संभावना को देखते हुए दरबारी मंत्री का बात मान लेना ही बेहतर विकल्प था। रतिहारिन ने दो जुड़वा संतान को जन्म दिया उनका नाम रखा गया नजूलनाथ और फजूलनाथ दोनो अत्यंत शक्तिशाली और अपने समय में विख्यात कबीला प्रमुख हुए। नजूलनाथ और फजूलनाथ के जन्म का रहस्य किसी को पता नहीं, स्वयं रतिहारिन को भी नहीं क्योंकि दीर्घकाल तक वह बेहोश रही, स्मरण शक्ति को खो चुकी थी। मगर कोई तो शक्ति है कोई क्रिया तो हुई थी जिसके कारण नजूलनाथ और फजूलनाथ का जन्म हुआ, कोई तो एकाउंट खोला होगा। प्राकृतिक अप्राकृतिक संयोग के बिना रतिहारिन का गर्भवती होना समझ से परे नहीं बल्कि स्पस्ट है। चूंकि रोमसिंग और नजूलनाथ और फजूलनाथ ही नहीं बल्कि उनके आगे के संतान भी अत्यंत शक्तिशाली हुए इसलिए किसी के पास कोई विकल्प नही था कि कोई यह कहे कि नजूलनाथ और फजूलनाथ का जन्म ठीक उनके जैसे ही सामान्य संयोग से हुआ है।

कर्म, कर्म के सिद्धांतों और उससे जुड़े इन प्रश्नों का सटीक जवाब अभी तक किसी के पास नहीं है, है भी तो वह सर्वमान्य नही। अतः जब तक आप साहस और बुद्धि से काम नही लेंगे नजूलनाथ और फजूलनाथ प्रकृति की संतान है अथवा शक्तिमान के आशीर्वाद से ही रतिहारिन गर्भवती हुई है। अंत में यह साफ कर देना चाहता हूं कि यह काल्पनिक कहानी कर्म, कर्म के सिद्धांत, कर्म का खाता जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों के सटीक उत्तर देने असफल रहा है। इस लेख को पढ़ने में आपके समय की हुई बर्बादी को रोक सकते हैं थोड़ा सोचने से, थोड़ा अधिक सोचने से अन्यथा यह लेख आपको सुलझाने के बजाय उलझा चुका है।

आप स्वयं को अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने का प्रयास करेंगे तो संभव है समुद्र तट के नन्हे कछुआ जैसे भ्रम में पड़कर चंद्रमा की रोशनी के बजाय रेस्टोरेंट में लगे एलईडी के झांसे में आ जाएं इसलिए बुद्ध की बात मानिए। बुद्ध ने कहा था "अपना दीपक खुद बनो।"

--0--

उल्लेखनीय है कि यह लेख श्री हुलेश्वर जोशी के ग्रंथ "अंगूठाछाप लेखक" - (अभिज्ञान लेखक के बईसुरहा दर्शन) का अंश है।

Image fo Writer 

शनिवार, मई 16, 2020

भ्रष्टाचारी महिला पटवारी रिश्वत लेते पकड़ाये

भ्रष्टाचारी महिला पटवारी रिश्वत लेते पकड़ाये

आवेदक श्री संजय साहू पिता श्री लखन लाल साहू, निवासी-ग्राम-बड़ेदेवगांव, तहसील खरसिया, जिला-रायगढ़ (छ0ग0) ने दिनांक 03.03.2020 को एक लिखित शिकायत पत्र उप पुलिस अधीक्षक, एन्टी करप्शन ब्यूरो, बिलासपुर के समक्ष प्रस्तुत किया कि आवेदक ने स्वंय एवं दो नाबालिक भाईयों के नाम से बडे़देवगांव में जमीन खरीदा था। उस समय आवेदक एवं नाबालिक भाईयों के नाम से ऋण पुस्तिका था। अब तीनों भाई बालिक हो जाने से ऋण पुस्तिका में दुरूस्त कराने अपने गांव के पटवारी, कुमारी सुमित्रा सिदार, प0ह0न0-16, ग्राम-बकेली से संपर्क करने पर ऋण पुस्तिका को दुरूस्त करने हेतु 4000/- रूपये रिश्वत की मांग किया । शिकायत की वाईस रिकार्डर देकर सत्यापन कराया गया जो सही पाया गया। दिनांक 14.05.2020 को टेªप कार्यवाही की गई आरोपी कुमारी सुमित्रा सिदार, प0ह0न0 -16, ग्राम-बकेली, तहसील-खरसिया, जिला-रायगढ़ (छ0ग0) को प्रार्थी से 4000/- रूपये रिश्वत लेते हुये रंगे हाथों पकड़ा गया। आरोपी के विरूद्ध धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत विधिवत कार्यवाही करते गिरफ्तार किया गया है।

प्रार्थी द्वारा रिश्वत संबंधित बातचीत को रिकार्ड करने के बाद प्रार्थी के पिताजी का स्वास्थ्य खराब होने एवं लाकडाउन होने से आज कार्यवाही की गई है।

एक वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त चतुर्थ वर्ग कर्मचारी का पेंशन एवं जमा राशि दिलवाने के एवज में 16000/-रूपये रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ाये

एक वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त चतुर्थ वर्ग कर्मचारी का पेंशन एवं जमा राशि दिलवाने के एवज में 16000/-रूपये रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ाये 

आवेदक श्री बिनेश्वर राम टेकाम पिता स्व. श्री घोंडूराम टेकाम, उम्र-62, वर्ष, निवासी-ग्राम रेंवटी, तहसील प्रतापपुर, थाना चंदोरा, जिला-सूरजपुर (छ0ग0) ने दिनांक 17.03.2020 को एक लिखित शिकायत पत्र उप पुलिस अधीक्षक, एन्टी करप्शन ब्यूरो, अम्बिकापुर के समक्ष प्रस्तुत किया कि वह खण्ड चिकित्सा अधिकारी कार्यालय प्रतापपुर में चतुर्थ वर्ग स्वीपर के पद से जनवरी 2019 में सेवानिवृत्त हुआ था। सेवानिवृत्त होने के पश्चात् उसे गे्रजवेटी एवं अन्य राशि मिलाकर लगभग 10 लाख रूपये मिलना था। जिसमें से प्रथम किस्त के रूप में उसे 07 लाख रूपये प्राप्त हो चुका है एवं 03 लाख रूपये मिलना शेष होने से प्रार्थी को काफी आर्थिक तंगी थी। प्रार्थी ने शेष 03 लाख रूपये के लिये एवं पेंशन प्रकरण तैयार करने के लिये कार्यालय खण्ड चिकित्सा अधिकारी प्रतापपुर जिला सूरजपुर में जाकर लेखापाल श्री गिरवर कुशवाहा से मिला जिन्होंने शेष 03 लाख रूपये का बिल बनाकर टेªजरी में प्रस्तुत करने एवं पेेंशन प्रकरण तैयार करने के एवज में 16000/-रूपये रिश्वत की मांग की। लेखापाल श्री गिरवर कुशवाहा पूर्व में भी 07 लाख रूपये दिलाने के एवज में प्रार्थी से 19000/-रूपये ले चुका है। प्रार्थी आरोपी को रिश्वत नही देना चाहता था। शिकायत की वाईस रिकार्डर देकर सत्यापन कराया गया जो सही पाया गया। दिनांक 14.05.2020 को टेªप कार्यवाही की गई आरोपी श्री गिरवर कुशवाहा, लेखापाल, कार्यालय खण्ड चिकित्सा अधिकारी प्रतापपुर जिला-सूरजपुर को प्रार्थी से 16000/-रूपये रिश्वत लेते हुये रंगे हाथों पकड़ा गया। आरोपी के विरूद्ध धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत विधिवत कार्यवाही की जा रही है।

अभी तक प्रार्थी के सेवानिवृत्त के 01 वर्ष के बाद भी पेंशन प्रकरण नही बनाया गया जो शासन के दिशानिर्देश का उलंधन कर एक चतुर्थ वर्ग सेवानिवृत्त कर्मचारी को जान बूझकर प्रताड़ित किया जा रहा था। जिस पर एसीबी द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही कर आरोपी को गिरफ्तार किया गया है।

कहीं उपेक्षित तो नही "मेरा गाँव और मेरे हीरो" - एच.पी. जोशी

कहीं उपेक्षित तो नही "मेरा गाँव और मेरे हीरो" - एच.पी. जोशी

मेरे गांव में अनेकों बहादुर और हीरोज हैं जिन्हें लोग जानते नही। इन्हें भले ही कोई पदक न मिला हो, भले ही आप जानकारी और साक्ष्य के अभाव में इन्हें नहीं जानते हों मगर ये आपके फिल्मी दुनिया वाले हीरो से कम नही हैं। आज अपने गाँव के तीन हीरो के बारे में बताता हूँः-

1- स्विमिंग पूल में घंटों सैकड़ों किलोमीटर तैरकर विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले भी 10-11 साल के दिनेश के साथ प्रतियोगिता में फैल हो सकता है, क्योंकि दिनेश राहेन नदी के बाढ़ में घंटों आरपार कर लेता है।

2- ग्लेशियर में हजारों मील ऊपर चढ़ना निःसंदेह कठिन काम है मगर 10-11 साल का उम्मेंद अपने शिर से ऊपर खाप वाले गेड़ी में चढ़कर 1-2 किलोमीटर तक कच्चे और कीचड भरे रास्ते में चल सकता है और कम बहाव वाले नाला को भी पार कर लेता है क्या यह बहादुरी से कम है?

3- सागर, सागर तो 3री कक्षा का स्टूडेंट है शशी रंगीला का सगा भाई है मगर यह भी किसी हिरो से कम नही, वह अपना पेट फुला ले तो कोई कितना भी ढिशुम ढिशुम कर ले, आपके हाथ थक जाएंगे मगर उनके पेट मे दर्द नही होगा।

ख्याल रखना, उम्मेद मेरे पथरहापरा का ही लड़का है जो भले ही मुझसे 5 साल बडा है मगर रिस्ते में मेरे दादा जी हैं जबकि दिनेश मुझसे 3साल छोटा मेरा मौसेरा भाई है, छोटे भाई शशि रंगीला एक छत्तीसगढ़ी कलाकार हैं जो सतनामी बघवा वाला गाना गाते हैं।

आपको बता दूं मेरे गाँव मे केवल ये तीन हीरो ही नहीं, बल्कि सैकड़ो हीरो हैं जिनके अपने विशेष योग्यता हैं आपको बतादूं ऐसे हीरो हर गाँव में मिल जाएंगे। आइये संकल्प लें अपने गाँव के ऐसे ही हीरोज का सम्मान करें, उनके बारे में लोगों को भी जानने का अवसर प्रदान करें ताकि हमारी योग्यता और विशेषता आने वाली पीढ़ी को ज्ञात रहे। क्योंकि बिते दिनों को जानन के लिए हम इतिहास, समकालिन ग्रथ और साहित्य पढ़ते हैं मगर जो लिखा ही नही जाएगा वह आगे पढ़ने को कैसे मिलेगा? पूर्व में लिखे गये पुस्तकों में उल्लेख नही होने के कारण हम अपना गौरवशाली परम्परा और इतिहास भूल जाएंगे इसलिए इनके बारे में भी लिखना आवश्यक है। 

माता श्यामा देवी कहती थी "जिनके दरबारी साहित्यकार अथवा इतिहासकार नही रहेे इतिहास में उनके बहादूरी और महानता के कारनामे नही मिलेंगे, उपेक्षा से बच गये तो भी उनके योग्यता और चरित्र के विपरित उन्हें जलील और बदनाम भी किया जा सकता है। इतिहास अथवा साहित्य में जो लिखा है वह पूरी निष्ठा से लिखी गई है इसकी कोई गारंटी नही है वह बनावटी और झूठा भी हो सकता है।" इसलिए छोटे-मोटे साहित्यकारों को निश्पक्ष होकर अपने आसपास के लोगों के बारे में भी लिखना चाहिए वह भी पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ, बिना किसी स्वार्थ अथवा व्यक्तिगत हित के। 

यदि आप लेखन में रूचि रखते हैं तो जरूर लिखिए, अपने आसपास के महान लोगों को उपेक्षा के शिकार होने के लिए बेरहम बनकर चूप मत बैठिए, लिखिए। अधिक नहीं तो कम ही सहीं परन्तु लिखिए, आपका लेखन चाहे साहित्य के कसौटियों से परे हों लिखिए उन्हें अमर कर दिजीए जो अमरता के असली हकदार हैं, लिखिए।

--0--

लेखक श्री हुलेश्वर जोशी वर्तमान में "अंगुठाछाप लेखक" - (अभिज्ञान लेखक के बईसुरहा दर्शन) नामक ग्रंथ लिख रहा है, उल्लेखनीय है कि लेखक द्वारा लिखे जा रहे ग्रंथ जो कुछ-कुछ आत्मकथा, सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संवाद, काल्पनिक आलेख और पिछले जन्म के स्वप्नों और स्मृतियों पर आधारित है।

शुक्रवार, मई 15, 2020

एक हसीन ख्वाब लेकर बस जा मेरे दिल में - सोमवार, अप्रेल 18/2011 की रचना

"मेरे दिल में"
यह कविता मेरे द्वारा सीआईएटीएस स्कूल, 5वीं वाहिनी छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल कंगोली, जगदलपुर में तैनाती के दौरान सोमवार, अप्रेल 18/2011 को लिखा गया था, जो मेरी अपनी काल्पनिक प्रेमिका को संबोधित है। 

कोई हसीन ख्वाब लेकर आ मेरे दिल में
बिना बुलाए बस जा, मेरे दिल में
मैं करीब ही तो हूं कहीं तेरे दिल में.....
एक हसीन ख्वाब लेकर बस जा मेरे दिल में


मुझे किसी मंजिल की जरूरत नहीं
तेरे जाने के बाद, मेरे दिल में
एक भोली सुरत बनकर आ जाओ.....
एक हसीन ख्वाब लेकर बस जा मेरे दिल में


कोई आंखों से पुकारती है समां कर मेरे दिल में
कोई छिपकर चोरी से देखती है मेरे दिल में
प्लीज तुम भी आ जाओ न .....
एक हसीन ख्वाब लेकर बस जा मेरे दिल में


मंगलवार, मई 12, 2020

महान होने की चाहत में भूल गया, कि मैं कितना गलत और स्वार्थी हूँ - आलेख

महान होने की चाहत में भूल गया, कि मैं कितना गलत और स्वार्थी हूँ

जन्म से ही उच्च नीच की कहानियां सुनते हुए पला बढ़ा हूँ, उच्च लोगों की आवभगत, आदर सत्कार, सम्मान और पूजा देखा हूँ। नीच लोगों के तिरस्कार, अपमान और उनसे घृणित व्यवहार को देखकर मेरा पूरा फिजिक्स कांप चुका है गणित भी आपस में टकरा टकरा कर लाखों विस्फोट कर रहे हैं। मेरा गणित प्रभावित है, प्रेरित है तो सिर्फ और सिर्फ उच्च नीच के विभाजनकारी सिद्धांत और उनके अर्थात उच्च लोगों के अधिकार व स्वाभिमान और नीच लोगों के गुलामी व कर्तव्य से। मेरे गणित का क्या दोष है? क्या मनुष्य को देख और सुनकर नही सीखना चाहिए? क्या जिसे अपने लोगों ने, समाज और धर्म ने जिन सिद्धांतों को अच्छा कहकर तारीफ किया, उसका पालन किया, ऐसे परम्परा को ऐसे संस्कृति को चाहे क्यों न वह अमानवीय है भूल जाऊं? मुझे सिद्धांत के अमानवीय अथवा विभाजनकारी होने से क्या मतलब, मैं तो अपने संस्कृति और परंपरा के नाम पर बिना कोई प्रश्न किये अपने लीडर के पीछे भेंड़ की तरह चलते रहना चाहता हूं। क्योंकि क्रांतिकारी होने, आंदोलन करने अथवा बनी बनाई परंपरा को समाप्त करने का प्रयास करना अत्यंत कठिन है। मैं ऐसे रिवाज का विरोध क्यों करूँ जिसमे मुझे ही फायदा हो? मुझे दूसरे दबे हुए वर्ग का प्रतिनिधित्व करने से तो हानि ही है फिर क्यों अपने पैर में कुल्हाड़ी मारूँ।

मेरी पत्नी कहती है कि हमारा अगला जन्म उसी नीच लोगों के बीच होगा तो क्या करेंगे? वह कहती है आज हम स्टेटबैंक के कर्जदार हैं तो चाहे किसी भी शर्त में हो हमें ब्याज सहित लौटाना ही पड़ेगा, वह कहती है कर्म का एकाउंट पहले जन्म के साथ ही खुल चुका है जो बारम्बार नही बदलेगा ठीक वैसे ही जैसे आप राजपत्र में नाम बदलवाने, चेहरे का प्लास्टिक सर्जरी करवाकर चेहरा बदलने के बाद भी स्टेट बैंक से कर्ज वाला एकाउंट कर्ज जमा किये बिना बंद नही कर सकते। जिस प्रकार आप सैकड़ों बैंक में कई प्रकार के एकाउंट खोलते हैं वैसे ही आप अपने जीवन मे करोड़ो एकाउंट खोलते रहते हैं। आपको ज्ञात है आपके मृत्यु के बाद भी कर्ज देने वाला बैंक आपके चल अचल सम्पति को कुर्की करवा लेती है अर्थात मरने के बाद भी लेनदेन चुकता होने के बाद ही आपका एकाउंट बंद होता है। मेरी पत्नी मुझसे कहती है आप ऐसा कोई एकाउंट मत खोलिए जिससे आगे आपको दाण्डिक ब्याज सहित लौटना पड़े, आप प्रयास करिए कि ऐसा एकाउंट खोलिए जिसमें ब्याज सहित न भी सहीं बराबर या उससे कम मिले तो भी जीवन सुखमय ही बना रहे, चाहे मिले या न मिले जीवन मुश्किल न हो, अपमान और तिरस्कार न मिले, चाहे तब जीवन मनुष्य का हो या पशु, पक्षी या किट पतंगे का हो।

मोक्ष, आध्यात्म और तपस्या एकांत नही है - श्रीमती विधि हुलेश्वर जोशी
वह कहती है बिना मृत्यु के मनुष्य जानवर नहीं हो सकता, जानवर पक्षी नही हो सकते, पक्षी कीड़े नही हो सकते और कीड़े मनुष्य नही हो सकते। कहती है शेर भालू नही हो सकता और भालू शेर नहीं हो सकता। हो सकता है विज्ञान ऐसा अविष्कार कर ले तब ऐसा संभव हो, मगर अभी तो ऐसा नही हो रहा है। आज धार्मिक आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार आत्मा परमात्मा का प्रक्रिया निरंतर जारी रहेगा, श्रेष्ठ मानवीय कर्म के बिना जीवन मृत्यु के चक्र से मोक्ष भी नहीं मिलेगा, मोक्ष मिला भी तो वह भी कुछ निर्धारित समय के लिए ही मिलेगा। मोक्ष से भी आप बोर हो जाएंगे, ठीक जैसे अकेले शून्य का अधिक महत्व नहीं, अकेलेपन में आप भी नही रह पाएंगे। आपको अपने होने पर संदेह होने लगेगा और आप मेरे तलास में फिर जन्म मरण के चक्र में वापस लौट आएंगे क्योंकि हित-मित, साथी या मितान के बिना हर कोई अपने जीवन को व्यर्थ और नीरस जान लेता है। आपका यह सोचना कि आप आध्यात्म करेंगे, तपस्या करेंगे तो कब तक? क्या वहां आपका साथी नही होगा? साथी तो वहां भी मिलेगा, आप स्वयं अपने साथी होंगे। आप स्वयं को पूर्ण अपूर्ण पाकर वापस लौट आएंगे तपस्या और आध्यात्म से क्योकि तब जो अधिक मिल जाएगा उसे रखोगे कहाँ? या फिर खाली हो जाएगा तो खालीपन को भरोगे किसमें? आपने अभी कल ही एक कविता लिखा है "आध्यात्मिक प्रेमी और उनके संवाद" यह क्या है? उस कविता को समीक्षा करेंगे तो पाएंगे उस कविता में काल्पनिक प्रेमी और प्रेमिका आपके भीतर ही द्वंद वार्तालाप कर रहे हैं, ठीक आध्यात्म और तपस्या भी इस कविता की भांति ही अंदर ही अंदर बात करने का बेहतर तरीका है, इसी तरीके से आप कुछ बेहतर पा सकते हैं ऐसा उन्हें लगता हैं जो इस मार्ग में चलते हैं। तब आप अकेले शरीर मे भी अकेले नही हो पाएंगे, आपके शरीर में और अधिक भीड़ होंगी, अधिक द्वंद होंगे, अधिक वार्ता होगी, बुद्धि में अधिक जोर होगा। आप अपने आराध्य को आकर्षित करने के लिए अधिक बल का प्रयोग करेंगे, सायद जितना आपको विशालकाय पर्वत के ऊपर गट्ठा लेकर चलने में ताकत लगाना पड़ेगा, सायद जितना बैल गाड़ी में लगे बैल को नदी का चढ़ाव चढ़ने में लगेगा उससे भी अधिक। मतलब यह कि आप अकेले कहीं भी किसी भी स्थिति में नहीं होते, आप अकेले हो भी नही सकते, यह बात केवल आपके लिए नहीं हर जीव जंतुओं के लिए है।

ज्योतिष की औकात नही कि वह 100 फिसदी सटीक भविष्यवाणी कर सके - श्रीमती विधि हुलेश्वर जोशी
मैंने कहा "मुझे इस जन्म में जो अच्छा लगता है, मेरे स्वार्थ के लिए अच्छा है वही करता हूँ, अगले जन्म को किसने देखा है?" इतना कहते ही जैसे उन्हें मौका मिल गया बोलने लगी आपको ज्योतिष शास्त्र में बड़ा विश्वास है, आपके कुछ परिचित लोग आज भी ज्योतिषी हैं, कुछ हद तक आप भी ज्योतिषी होने का स्वांग करते थे। जाओ अपने किसी ज्ञानी ज्योतिषी के पास या पूरे विश्व मे खोजिए सायद कोई ज्योतिषी हो जो आपको अगले जन्म का दावा करके बता दे, मैं तो कई ज्योतिषी को जानती हूँ जो बड़े बड़े दावे और तरीके बताते फिरते हैं। सटीक और 100फीसदी अनुमान लगाने के नाम पर करोड़पति बन चुके हैं। यह बात अलग है कि आपका एक ज्ञानी ज्योतिषी दोस्त जो अपने स्वयं का विवाह सफल बना नहीं पाया वह दूसरे के विवाह को सफल करने का तरीका बताता है, कुंडली देखकर गुण कम या अधिक मिलने का दावा करता है। ऐसे झूठे लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी के लिए FIR करना चाहिए, आपको जिसने आपके वैवाहिक जीवन के बारे में बताया था वह सरासर झूठ निकला फिर भी आप उनके भक्त बने फिर रहे हैं। कुछ लोग जो स्वयं खुश नही रह पा रहे हैं वे खुश रहने के योग बताते हैं जो कभी दान नही किया वह दान करना सीखाता है। जो अपने घर में शाम को क्या सब्जी बनेगा नही जानता वह लोक परलोक का भविष्यवाणी करता है, जो अपने मांसाहारी और शराबी पुत्र के चरित्र को जान नही पाता वह आपके साथी के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह बनाता है। वह जो सड़े हुए नारियल को अपनी अज्ञानता छिपाने के लिए शुभ बता देता है वह जो लेफ्टिनेंट कर्नल का स्पेलिंग नहीं जानता, हिंदी में भी नही लिख पाता वह आपको कहता है आपकी बेटी आर्मी में कर्नल बनेगी। वह जो खुद अधिक खा कर अपना हाजमा बिगाड़ लेता है वह आपको संयम सिखाता है। आप बचपन में थे तब से पता है 2 को 2 से जोड़ेंगे तो 4 ही होगा यह सही है ऐसा मान्य है मगर आप 5 लोगों से अपना कुंडली बनवाओगे तो 5 के 5 अलग अलग भविष्यवाणी करेंगे, आगे आप 50 के पास जाओ कुंडली बनवाओ सब घुमा फिराकर बताएंगे, संभावना बताएंगे, वह भी सटिक नहीं। सत्य और सही अनुमान कोई नही बताएगा, 99% झूठ ही मिलेंगे, कुछ दावे भी किये जायेंगे मगर उससे शीघ्र ही पर्दा भी उठ जाएगा। बोलने लगी पूरे विश्व के ज्योतिषियों में कोई एक ज्योतिष भी नही होगा जिसका 30% भविष्यवाणी भी सही अथवा सटीक हो और उनके उपाय वास्तव में सही हों। यदि ऐसा कोई है तो मेरा चुनौती है साबित करे कि उनका भविष्यवाणी सही हो। उस ज्योतिषी की बात तो आपको याद होगा ही जिसने कहा था कि हम दो जुड़वा बेटी के माता पिता होंगे, क्या सही साबित हुआ? हमारे वैवाहिक जीवन अत्यंत सरल और सुखमय होगा उसने कहा था, उसने कहा था हमारा विचार शतप्रतिशत मिलेगा। यदि विचार शतप्रतिशत मिल रहा है तो आज हम वादविवाद में क्यों उलझे हैं? क्यों संघर्ष कर रहे हैं? 

न्याय करना मेरे आचरण में नही क्योंकि मैं मक्कार और स्वार्थी हूं - हुलेश्वर जोशी
मेरे ज्योतिषी दोस्त और विश्वसनीय ज्योतिष शास्त्र के बारे में इतना बुराई और कमी सुनकर अंदर ही अंदर क्रोध बढ़ने लगा, मगर क्या करूँ उनसे विवाद करना अत्यंत घातक आत्मघाती है इसलिए छत ऊपर चला गया। बहुत सोचा, बहुत कुछ समझ मे आया मगर इतने हजारों साल से मेरे पूर्वजों के भरोसे को क्यों तोड़ दूँ? क्यों पत्नी के कहने मात्र से अपने परंपरा और विश्वास से विमुख हो जाऊं? जिसे मेरे पूर्वज हमेशा से मानते आए हैं उन्हें गलत क्यों प्रमाणित कर दूं? क्यों उस विचारधारा को गलत मानकर अपने पूर्वजों के बुद्धिमत्ता पर प्रश्न करूँ? इससे बेहतर है कि सही गलत को छोड़कर बनी बनाई नियम, परंपरा और संस्कृति पर चलना बेहतर समझता हूं। चाहे मेरे पूर्वज गलत रहे हों, उनके सिद्धांत मानवता के खिलाफ रहा हो या फिर संकुचित विचारधारा से प्रेरित हो, अलग से दिमाक नही लगाऊंगा यदि ये सिद्धांत मुझे महान बताता है या फायदा पहुचाता है अथवा मेरे सम्मान के लिए अच्छा है तो इसका विरोध नही करूँगा। अच्छा भला मेरा स्वार्थ पूरा हो रहा है और पत्नी कहती है सबको बराबर समझो सबसे बराबर का सम्मान दो, मुझे बड़ा गुस्सा आता है पत्नी ऊपर क्योंकि मैं महान हूँ, महान बने रहना चाहता हूँ इसलिए पत्नी के बातों का मेरे लिए कोई औचित्य नहीं है। मैं तो दूसरे व्यक्ति से नफ़रत, घृणा और द्वेष करते रहूंगा; मैं तो केवल अपना स्वार्थ सिद्धि के लिए अग्रसर रहूंगा। दूसरे लोग, दूसरे समाज, दूसरे वर्ण, दूसरे धर्म और दूसरे सभ्यता को झूठ और गलत समझता रहूंगा। अपने समाज, वर्ण, धर्म और सभ्यता की समीक्षा नहीं करूंगा क्योंकि समीक्षा करूँगा तो मैं स्वयं भी हर वर्गीकरण में नीच हो जाऊंगा, खुद से घृणा और अपराधबोध से ग्रसित हो जाऊंगा। इसलिए यह तय रहेगा कि मैं, मेरा परिवार, मेरी जाति, मेरा वर्ण, मेरा धर्म, मेरा समाज और मेरी सभ्यता सबसे श्रेष्ठ है। चाहे कोई कुछ भी समझे, कुछ भी बोले, कुछ भी करे मैं अपने पूर्वजों के मान्यता के साथ रहूंगा, चाहे कोई कुरीति कहे, अमानवीय कहे मुझे इससे कोई फर्क नही पड़ेगा। कोई मुझे सोचने पर मजबूर करेगा, मेरे विश्वास के खिलाफ बोलेगा तो धार्मिक आस्था को हानि पहुचाने का झूठा आरोप लगाकर उसे जेल भेजवा दूंगा।

यह लेख श्री हुलेश्वर जोशी के अप्रकाशित पुस्तक अंगुठाछाप लेखक का एक हिस्सा है। श्री जोशी अपने पुस्तक के माध्यम से समाज को एक नवीन दर्शन की ओर मोडने का प्रयास कर रहे हैं, हालांकि उनका स्वयं मानना है वे असफल दार्शनिक हैं।

शनिवार, मई 09, 2020

आध्यात्मिक प्रेमी और उनके वार्ता - HP Joshi

आध्यात्मिक प्रेमी और उनके वार्ता - HP Joshi
काले बोल्ड रंग के शब्द प्रेमी के प्रश्न है जबकि नीले रंग के शब्द प्रेमिका का प्रतिउत्तर है।


वह कौन हैं जिसे अपनी बात बताऊं
वह कौन है जिसे अपने साथ चलाऊं
वह कौन है जिससे रूठकर मनाऊं
वह कौन है जिसे हर बात में पकाऊं

     
आप कह सकते हैं मुझसे अपनी बात
कितने कठिन हों रास्ते चलूंगी साथ
चाहे कितने रूठ जाएं मुझसे, आप
संकल्प है मेरी, रहूंगी आपके साथ

धरती के उस पार से निहारोगी कैसे?
आकाशगंगा में दूर रहती आओगी कैसे?
रेडियो संदेश भी मिलता है बहुत देर से
बताओ, वादा करके निभाओगी कैसे?


धरती के इस पार हूँ तो क्या हुआ
आकाशगंगा की दूरी भी तो क्या हुआ
कोशिश करूंगी हर बार ऐसा....
मिलेंगे, मुझे ऐसा एक विश्वास हुआ


जो उस दुनिया की महारानी हैं आप
गुरुत्वाकर्षण की शक्तिकेंद्र हैं आप
एक पल छोड़ आओगी तो बिखर जाएंगी जिंदगियां
बताओ, फिर भी क्या मेरे अपने हैं आप


महारानी हूँ यह जानती हूं
शक्तिकेन्द्र हूँ यह भी भूली नही हूँ
मन में तो मेरा ही अधिकार है साथी
विश्वास का रिश्ता तुमसे ही निभाती हूँ


सोचो जरा, राज को कोई जानेगा तो क्या होगा?     
ईश्वर भी तो अंदर ही है आपके भी रहने से क्या होगा?
तो क्या प्रत्यक्ष दर्शन और वार्ता नही होगी आपके साथ?     
विश्वास करिए, धैर्य रखिए, हर कण में हूँ आपके साथ।

इस कविता के रचनाकार श्री हुलेश्वर जोशी जी हैं, जो "अंगुठाछाप लेखक" (अभिज्ञान लेखक के बईसुरहा दर्शन) नामक ग्रंथ के लेखक हैं। हालांकि यह ग्रंथ अभी प्राकशित नही हुई है।


:Images for Poem:


शुक्रवार, मई 01, 2020

यह क्या है?

यह क्या है?

यह क्या है?
बर्तन या टोकरी?
नही; न बर्तन, न टोकरी!

यह किससे बनी है?
मिट्टी या कागज?
नही; न मिट्टी, न कागज़!

तुमने कैसे सीखा, इसे बनाना
यूट्यूब, फेसबुक या रेसिपी?
नही; न यूट्यूब से, न फ़ेसबुक से, न रेसिपी से!

तुम नासमझ और अंधे हो, बेहुदा और जिद्दी हो।
हां।
हो सकता है मैं नासमझ हूँ।
हो सकता है मैं अंधा ही हूँ।
हो सकता है में बेहुदा और जिद्दी भी हूँ।

बाबूजी यह......
न बर्तन, न टोकरी; हमारी जरूरी इनोवेशन
न मिट्टी, न कागज; हमारी मेहनत और फैशन
न इसे यूट्यूब से सीखा, न फेसबुक से सीखा, न इसे रेसिपी से; सीखा है माँ से बनाती थी जैशन

Image for Innovation of Rural Bharat 


















रचनाकार - श्री एचपी जोशी

जोशी की गीता

जोशी की गीता

असंगठित शब्द, बिना लय-छंद कविता
एक आग्रह "विनती", जोशी की गीता

झूठ फरेब कुरीति और आडम्बर
नैसर्गिक न्याय सबके लिए बराबर

चोरी चकारी, झूठ लूट डकैती
धर्म नहीं तेरे बाप की बपौती

धोखा अफवाह मोबलिंचिंग हिंसा
एक रास्ता है अब करले अहिंसा

स्वर्ग नरक नहीं कोई जन्नत
है मेरा भी एक ही मन्नत

संगठन शक्ति की तुम करते हो बर्बादी
निष्ठा कर संविधान में, जो देती आजादी

5000 हजार साल पीछे की कल्पना
कोई गैर नहीं, आज तेरा भी है अपना

अपना पराया, उच्च नीच
एक सेल्फी तो साथ में खींच

खोद के गड्ढा जिसने गिराया
उठा उन्हें भी नही पराया

Image of HP Joshi












रचनाकार - श्री एचपी जोशी

अभी खरीदें 23% की छूट पर VIVO 5G मोबाइल

महत्वपूर्ण एवं भाग्यशाली फ़ॉलोअर की फोटो


Recent Information and Article

Satnam Dharm (सतनाम धर्म)

Durgmaya Educational Foundation


Must read this information and article in Last 30 Day's

पुलिस एवं सशस्त्र बल की पाठशाला

World Electro Homeopathy Farmacy


"लिख दूँ क्या ?" काव्य संग्रह

"लिख दूँ क्या ?" काव्य संग्रह
Scan or Click on QR Code for Online Reading Book

WWW.THEBHARAT.CO.IN

Important Notice :

यह वेबसाइट /ब्लॉग भारतीय संविधान की अनुच्छेद १९ (१) क - अभिव्यक्ति की आजादी के तहत सोशल मीडिया के रूप में तैयार की गयी है।
यह वेबसाईड एक ब्लाॅग है, इसे समाचार आधारित वेबपोर्टल न समझें।
इस ब्लाॅग में कोई भी लेखक/कवि/व्यक्ति अपनी मौलिक रचना और किताब निःशुल्क प्रकाशित करवा सकता है। इस ब्लाॅग के माध्यम से हम शैक्षणिक, समाजिक और धार्मिक जागरूकता लाने तथा वैज्ञानिक सोच विकसित करने के लिए प्रयासरत् हैं। लेखनीय और संपादकीय त्रूटियों के लिए मै क्षमाप्रार्थी हूं। - श्रीमती विधि हुलेश्वर जोशी

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कैसे करें?

Blog Archive

मार्च २०१७ से अब तक की सर्वाधिक वायरल सूचनाएँ और आलेख