"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।

शुक्रवार, जुलाई 31, 2020

लिख दूँ क्या बात पुरानी - एक प्रेमी का प्रेमिका से वार्ता

नवयौवना की कहानी, कुछ तेरी ही जुबानी
लिख दूँ क्या बात पुरानी?
तुम तब भी थी सयानी, अब हो गई तू जो दीवानी लिख दूँ क्या बात पुरानी?
"As You Like" हर पन्ने में पढ़ाता था, 'हस्तलिपियों में' लिख दूँ क्या बात पुरानी?
नवयौवना की कहानी, कुछ तेरी ही जुबानी
लिख दूँ क्या बात पुरानी?
---

दुश्मन जो तुम कहलाती थी, अंतर्मन में मुस्कराती थी।
जब पास तुम्हारे आता, धड़कने तेज हो जाती थी।।
फिर भी मोर फोहराबाई, दूर दूर तुम जाती थी।
दुश्मन जो तुम कहलाती थी, अंतर्मन में मुस्कराती थी।
---

रातें सारी जाग जाग कर, दिनभर जो जमहाती थी।
लाखों बातें होती, फिर भी अधूरी रह जाती थी।।
भौतिकी के पीरियड में, रेकी जो मुझे पढ़ाती थी।
रातें सारी जाग जाग कर, दिनभर जो जमहाती थी।
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नवयौवना की कहानी, कुछ तेरी ही जुबानी
लिख दूँ क्या बात पुरानी?
दुश्मन जो तुम कहलाती थी, अंतर्मन में मुस्कराती थी।
रातें सारी जाग जाग कर, दिनभर जो जमहाती थी।
नवयौवना की कहानी, कुछ तेरी ही जुबानी
लिख दूँ क्या बात पुरानी?
---

राइटर : HP Joshi
Dated: 31/07/2020
कैम्प कवारेन्टीन, नारायणपुर

Imege :


गुरुवार, जुलाई 30, 2020

मैं बस्तर हूँ - बस्तर को चित्रांकित करने वाली सबसे बेहतरीन कविता, आपने इसे नहीं पढ़ा तो बस्तर को जानना आपके लिए मुश्किल होंगी।

मैं बस्तर हूँ

मैं बस्तर हूँ
उद्भव और जीवन का केंद्र
मैं बस्तर हूँ
दंडकारण्य बस्तर!
विशालकाय पर्वत श्रृंखलाओं और नदियों का संगम
बरसात में सैकड़ों झील और झरना वाला बस्तर


मैं बस्तर हूँ
बोड़ा और पुटु खाना है तो आओ बस्तर
पास्ता के बजाय बास्ता खाना हो तो आओ बस्तर
महुआ, चार और तेंदू खाना हो तो आओ बस्तर
गर्म पर्वत और शीतल छांह चाहिए तो आओ बस्तर
लेना हो आनन्द जीवन का, तो आओ बस्तर


मैं बस्तर हूँ
तनावमुक्त जीवन दे सकता हूँ
स्वर्ग की अनुभूति दे सकता हूँ
हर कष्ट को हर सकता हूँ
आक्सीजन और आयुर्वेदिक औषधि दे सकता हूँ
उदात्त संस्कृतियों की संगम, मैं खुशहाल बस्तर हूँ


मैं बस्तर हूँ
हल्बी में मिला मिठास, मैं बस्तर हूँ
कल्लू - सल्फी और हडिया पीला सकता हूँ
वनवास श्रीराम का सफल कर सकता हूँ
आओ तुम्हे श्रृंगी ऋषि से मिला सकता हूँ
इंद्रावती और दुधनदी का पानी पिला सकता हूँ


मैं बस्तर...
सुनसान हूँ
अनजान हूँ
मगर मौन नही हूँ
जीवन हूँ मगर बदनाम हूँ हिंसा के नाम पर
शांत हूँ मगर लथपथ हूँ वीरों के रक्त से..
मेरे गोद में सपूत हैं घूम रहे तो कुपुत्र भी छिपे हुए
लौह अयस्क से भरपूर, मैं बस्तर हूँ अमचूर


मैं बस्तर हूँ
नरक से दूर सरग के समीप, मैं बस्तर हूँ
तुम आते ही नहीं तो जानोगे कैसे मेरा हाल
फिर भी विदेशों तक है मेरा नाम
कवियों, लेखकों और शोधकर्ताओं के अज्ञानता की कहानी, मैं बस्तर हूँ
आओ लिखो, खोजो और जीयो बस्तर
स्वर्ग से अधिक शांतिदायक फिर भी उपेक्षित मैं बस्तर हूँ


मैं बस्तर हूँ
आपके पूर्वजों का आश्रयस्थल
मैं बस्तर हूं आपके मानवता का उद्गम
मैं बस्तर हूँ प्रकृति का नियम
मैं बस्तर हूँ ऋषिमुनियों का संयम
मैं बस्तर हूँ बस्तर, आपके लिए आपका अपना बस्तर...



उल्लेखनीय है कि यह रचना श्री हुलेश्वर जोशी द्वारा नारायणपुर (बस्तर) में कैम्प क़वारेन्टीन के दौरान दिनांक 30/07/2020 को लिखा गया है।


Images:










गुरुवार, जुलाई 09, 2020

धर्मगुरु हुलेश्वर को जाने बिना आपका धार्मिक और आध्यात्मिक विकास संभव नहीं

धर्मगुरु हुलेश्वर को जाने बिना आपका धार्मिक और आध्यात्मिक विकास संभव नहीं

धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा को जाने बिना आपका धार्मिक और आध्यात्मिक विकास संभव नहीं है। हालाँकि वास्तव में हुलेश्वर जोशी कोई धर्मगुरु नहीं बल्कि बहुत कम योगदान और बहुत थोड़े हल्के बुद्धि वाला एक बुद्धु सा इंसान और इस ग्रँथ का मामूली लेखक है। जो अपने बुद्धि का अधिक इस्तेमाल नहीं करता बल्कि अबोध बालक जैसे तर्क रखता है। लेखक का मानना है “कतिपय मामलों को छोड़कर हर मनुष्य में समान रूप से शारीरिक और बौद्धिक क्षमता होती है, परंतु अवसर की असमानता के कारण मनुष्य की श्रेणी बदलती रहती है।”

एक सीमा क्षेत्र के भीतर, एक सामाजिक व्यवस्था में पनप रहे सामाजिक दोष और कुरीतियों को समाप्त करने के लिए हुलेश्वर जोशी, धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा के रूप में काम कर रहे हैं। धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा का मानना है “प्रत्येक जीव आपस में भाई-बहन के समान हैं।” पिछले हजारों साल से जन्मे महात्माओं की तरह धर्मगुरू हुलेश्वर जोशी जन्म के आधार पर श्रेष्ठता का विरोध कर रहे हैं। वहीं पुरूष प्रधान समाजिक व्यवस्था, जाति, वर्ण और धार्मिक विभाजन के ख़िलाफ़ काम कर हैं। ईश्वरवाद के नाम पर झूठ परोसने तथा अयोग्य लोगों की झूठी प्रशंसा के माध्यम से सबके लिए पूज्यनीय बनाने के खेला का विरोध कर रहे हैं।

वैसे कुछ साल पहले एक दिन शाम की सैर के दौरान मैं ख़ुद ही इस सोच में पड़ गया था कि क्यों खुद को सर्वश्रेष्ठ धर्मगुरू प्रमाणित करने के लिये जोशी मठ की स्थापना कर दूँ। चंदा बरार करके ख़ुद के नाम पर विशालकाय मंदिर बनवा लूँ। मैंने बाक़ायदा प्लानिंग कर लिया और वापस आया तो विधि से चर्चा के दौरान अपने इस विचार को उनके सामने रखा। वह मन्त्रमुग्ध होकर सुनने के बाद जोर जोर से हँसने लगी। मैंने पूछा क्या हुआ सोनी जी? क्या आपको मेरा IDEA पसंद नहीं आया? वह बोली आप इतने कुटिल बुद्धि के स्वामी हैं कि मैं भी भ्रम में पड़ जाती हूँ कि मैं एक महान इंसान की पत्नी हूँ। फिर ख़्याल आता है कि मैं ख़ुद भी समान बुद्धि से युक्त इंसान हूँ इसलिये आपके बहकावे और झूठ से ख़ुद को बचा लेती हूँ। मैं निस्तेज हो गया फिर भी बेदिल होकर फिर से पूछ लिया आप क्या कहती हैं? ‘‘मैं क्या कह सकती हूँ आप महान हैं।’’ विधि बोली।

मेरी उदासी देखकर उन्होने मुझे गुरू घासीदास बाबा के 04 उपदेश सुनाने की अनुमति माँगी। मैंने अपनी मौन स्वीकृति दी। मुझे याद दिलाते हुए बताई कि (01) तरिया बनावव, कुआँ बनावव, दरिया बनावव फेर मंदिर बनई मोर मन नई आवय। ककरो मंदिर झन बनाहू। (02) बारा महीना के खर्चा सकेल लेहु तबेच भले भक्ति करहु नई ते ऐखर कोनो जरूरत नई हे। (03) मोर संत मन मोला काकरो बड़े कइही मोला सूजगा हुदेसे कस लागही। (05) मंदिरवा का करे जईबो अपन घट के ही देव मनईबो। बोलीं अब इन चारो कथन पर ज़रा ग़ौर करिये और निर्णय लीजिए कि आपके और समाज के लिये बेहतर क्या है? समीक्षा के दौरान मैंने पाया कि, मौजूदा धर्म मेरी धार्मिक आध्यात्मिक मान्यता के अनुकूल नहीं है। इसके बावजूद मैं प्राकृतिक न्याय पर आधारित एक नवीन ‘‘मानव’’ धर्म की स्थापना के उद्देश्य अपने धार्मिक, आध्यात्मिक सिद्धांतों और दर्शन को प्रतिपादित करने का भ्रम पलटे हुए ख़ुद को धर्मगुरू हुलेश्वर बाबा मान बैठा हूँ।

आपको अपनी आपबीती बताता हूँ। जब मैं महाधर्माधिकारी और औराबाबा बनने का व्यंग किया तो लोग मज़ा ले रहे थे। अवतारी पुरुष जैसे कुछ COMMENTS के साथ मुझे भी चंगा लग रहा था। जीबीबाबा, केलाबाबा और पोकोबाबा बना तब भी लोग खूब वाह-वाह किये। मगर जैसे ही मैं धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा बना लोगों की आँखें खुल गई। चूँकि अब मेरा उद्देश्य भी यही था कि, लोगों का भ्रम टूट जाये। लोग धार्मिक आध्यात्मिक समीक्षा के माध्यम से सही गलत की पहचान करना जान लें।

मेरे इन उपलब्धियों और व्यंग के बीच कुछ ज्ञानी मित्र मेरे धार्मिक आज़ादी का हवाला देकर गुपचुप तरीके से मतलब अप्रत्यक्ष रूप से विरोध कर लिये। जबकि कुछ लोग ऐसे भी हुये जो तिलमिला उठे। उनसे सहा नहीं गया और व्यक्तिगत गाली गलौज में उतर आये। कुछ लोग घमंडी, अहंकारी और रावण जैसे कुछ उपाधि देकर भी मुझे सम्मानित किये। मुझे घमंडी, अहंकारी और रावण की उपाधि देने वाले तथा गाली गलौज करने वाले तथाकथित धार्मिक लोगों से जरूर कहूँगा कि जिस PARAMETERS में जाँचने के बाद आपने पाया कि मैं धर्मगुरु होने के योग्य नहीं हूँ उसी PARAMETERS में उन्हें भी जाँचकर देखें, जिन्हें आप अपना धर्मगुरु समझते हैं। और जिन्हें मेरे धार्मिक आध्यात्मिक आस्था और विश्वास के विपरीत मुझ पर थोपने का प्रयास कर रहे हैं।

 आपको पूरा अधिकार है कि आप जिसे चाहें अपना गुरु, धर्मगुरु, भगवान या ईश्वर मान लें। मगर मेरे हिस्से का निर्णय तो मैं ही लूँगा। अपना आराध्य ख़ुद तय करूँगा। भारतीय संविधान मे निहित संवैधानिक अधिकारों के अलावा भी आपको ये अधिकार देता हूँ कि आप पूरी निष्ठा के साथ मेरा निंदा कर लें, क्योंकि निंदक नियरे राखिए; ऑंगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।। आप चाहें तो मेरे आराध्यों का भी निंदा कर सकते हैं मेरे आराध्यों के जीवन चरित्र का सकारात्मक अथवा नकारात्मक समीक्षा कर लें या फिर आराध्य मानने से इनकार कर लें।

आपसे भी अनुरोध है कि, मेरा और मेरे आराध्य का समीक्षा करने के साथ ही आप अपने आराध्य, ईश्वर और गुरुओं का भी उन्हीं पैमाने में समीक्षा करिये। शायद समीक्षा करने पर आपका भी भ्रम टूटेगा। जिससे आप स्वयं ज्ञानी महात्मा हो सकेंगे। ताकि मैं आपको भी अपना गुरु मान सकूँ। जब आप मेरा समीक्षा करेंगे तो आपके सामने कुछ इस टाइप के निष्कर्ष निकलकर आएँगेः-

@ मुझमें (धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा) में भी आपके धर्मगुरूओं से धार्मिक योग्यता कम नहीं है।

@ मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा) भी ढोंग ही कर रहा हूँ और ढिंढोरा पीट रहा हूँ।

@ मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा) भी आपको और आपके आने वाले पीढ़ी को धार्मिक रूप से ग़ुलाम ही बनाना चाह रहा हूँ तथा हथियार बनाकर दूसरे धर्म के लोगों के ख़िलाफ़ लड़ाना चाह रहा हूँ।

@ मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा) भी आपको और आपके आने वाली पीढ़ी को धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से बाँधकर रखना चाहता हूँ।

@ मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा) भी ख़ैरात की खाने के लिए आपको दान, धर्म की झूठी पाठ पढ़ा रहा हूँ।

@ मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा) भी आपका गुरू बनकर आपको, आपके परिवार तथा आपके भावी पीढ़ी को दीमक की तरह खोखला कर रहा हूँ।

@ मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर बाबा) बिना प्रचारक, बिना प्रचार सामग्री और बिना BRAND AMBASSADOR के आपको धर्मगुरु मानने को कह रहा हूँ इसलिए आप मुझे धर्मगुरु नहीं मान रहे हैं। यदि मेरे प्रचारक होते तो आप गु़मराह होकर मुझे भी अपना गुरू मान लेते।

सुधी पाठकगण इस लेख को लिखने के पीछे मेरा ये उद्देश्य है कि, यदि कोई व्यक्ति धर्म के नाम पर आपके साथ छल कपट कर रहा है तो उसे परखिये। और उनसे सुरक्षित रहिए। कुछ लोग बाबा और गुरु बनने के नाम पर समाज के साथ बहुत गलत किये हैं। कुछ नकली लोग सलाखों के पीछे हैं। बहुत सलाखों के पीछे जाने वाले हैं। जो सलाखों के पीछे जाने वाले हैं उन्हें पहचानने के लिए आपको तर्कशक्ति मिले इसलिए मैंने इस लेख को लिखा है।

मेरा उद्देश्य किसी व्यक्ति और समाज की धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाना नहीं है। मैं तो केवल एक नवीन धार्मिक, आध्यात्मिक मान्यता को आने वाली पीढ़ी के DNA में संचार कराना चाहता हूँ। इसके बावजूद यदि आपको मेरा मत अच्छा लगे तो आपसे आपके चरणस्पर्श करके माफ़ी माँगता हूँ। आप चाहें तो अपना चरण लेकर मेरे पास सकते हैं। आकर मेरी गलती बता दें ताकि दंडवत होकर आपसे माफ़ी माँग सकूँ। मैं आपसे माफी मागूँगा तो माफ कर देना ही आपका धर्म है क्योंकि जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप। जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप॥ वैसे आपको बता देना चाहता हूँ कि कबीर ने ऐसा भी कहा है फूटी आँख विवेक की, लखे ना सन्त-असन्त। जाके संग दस-बीस हैं, ताको नाम महन्त।। अर्थात् यदि आपमें विवेक नहीं हैं तो आप कौन संत हैं और कौन असंत इसकी पुष्टि नहीं कर पायेंगे, जिनके साथ भी आप 10-20 लोगों को चलते देखेंगे उन्हें आप महंत मान बैठेंगे।

अंत में आपसे अनुरोध अवश्य करना चाहूँगा कि आप .वी. रामास्वामी (पेरियार) के दर्शन को पढ़िये। भगवान बिरसामुण्डा के क्रांति के कारण को जानिये। जानिये कि भगवान बिरसामुण्डा ने क्या और क्यों कहा था? समय मिले तो भगवान ओशो के धार्मिक दर्शन को भी बिना चश्में के पढ़कर समझिये। यदि आपके पास समय हो तो भगवान ओशो के प्रवचन को यूट्यूब में भी सुन सकते हैं। हालाँकि आप ऐसा क़दापि नहीं करने वाले हैं। यदि धोखे से ऐसा कर लेंगे तो सुधर जायेंगे इसकी भी कोई गारंटी नहीं है; क्योंकि आपने बचपन में कबीर को पढ़ लिया है इसके बावजूद आचार व्यवहार में पवित्रता नहीं है धर्म के आधार पर “राम नाम सत्य हैं।”  


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