धर्मगुरु हुलेश्वर को जाने बिना आपका धार्मिक और आध्यात्मिक विकास संभव नहीं है। हालांकि वास्तव में हुलेश्वर जोशी कोई धर्मगुरु नहीं बल्कि बहुत कम योगदान और बहुत थोड़े हल्के बुध्दि वाला एक बुद्धु सा इंसान है; जो अपने बुद्धि का अधिक स्तेमाल नहीं करता मतलब अबोध बालक जैसे तर्क रखता है, उनका मानना है कतिपय मामलों को छोड़कर हर मनुष्य में समान रूप से शारीरिक और बौद्धिक क्षमता होती है, परंतु अवसर की असमानता के कारण मनुष्य की श्रेणी बदलती रहती है।
किसी सीमा के भीतर एक सामाजिक व्यवस्था में पनप रहे सामाजिक दोष अर्थात कुरीतियों को समाप्त करने के लिए धर्मगुरु हुलेश्वर काम कर रहे हैं। धर्मगुरु हुलेश्वर का मानना है हर जीव आपस मे भाई बहन के समान हैं, पिछले हजारों साल से जन्मे महात्माओं की तरह जन्म के आधार आधार पर श्रेष्ठता का विरोध कर रहे हैं वहीं केवल पुरूष प्रधान समाज, जाति, वर्ण और धार्मिक विभाजन के खिलाफ है।
अब मैं आपको अपनी आपबीती बात बताता हूँ, कि जब मैं औराबाबा बनने का ढोंग किया तो लोग मजा ले रहे थे, अवतारी पुरुष जैसे कुछ कमैंट्स के साथ मुझे भी चंगा लग रहा था, जीबीबाबा और पोकोबाबा बना तब भी लोग चुपचाप सह लिए; मगर जैसे ही मैं धर्मगुरु बना लोगों की आंखें खुल गई। मेरा उद्देश्य भी यही था, कि लोगों का भ्रम टूट जाए, सही गलत की पहचान करना जान लें। मेरे इन सारे उपलधियों और व्यंग के बीच कुछ ज्ञानी मित्र मेरे धार्मिक आजादी का हवाला देकर गुपचुप तरीके से मतलब अप्रत्यक्ष रूप से विरोध कर लिए, जबकि कुछ लोग तिलमिला उठे, उनसे सहा नही गया और व्यक्तिगत गाली गलौज में उतर आए, कुछ लोग घमंडी जैसे कुछ उपाधियां भी दिए।
ज्ञानी मित्र से कुछ नहीं कहूंगा, मगर गाली गलौज करने वाले आदरणीय लोगों से जरूर कहूंगा कि जिस पैरामीटर में जांच के उपरांत उन्होंने मुझे पाया कि मैं धर्मगुरु होने के योग्य नही हूँ उसी पैरामीटर में उन्हें भी जांचकर देखें जिसे आप अपना धर्मगुरु समझते हैं और मेरे धार्मिक आध्यात्मिक आस्था और विश्वास के विपरीत मुझपर थोपने का प्रयास कर रहे हैं, आपको पूरा अधिकार है आप जिसे चाहें अपना गुरु, धर्मगुरु, भगवान या ईश्वर मान लें, मगर मेरे हिस्से का निर्णय तो मैं ही लूंगा, अपना आराध्य खुद तय करूँगा। मैं संविधान के समानांतर रहकर आपको इतना अधिकार देता हूँ कि आप मेरे आराध्य का एक सीमा के भीतर निंदा कर लें, उनके जीवन चरित्र का सकारात्मक अथवा नकारात्मक निंदा कर लें या फिर आराध्य मानने से इनकार कर लें। आपसे अनुरोध है मेरा और मेरे आराध्य का समीक्षा करने के साथ ही आप अपने आराध्य गुरुओं का भी उन्हीं पैमाने में समीक्षा करिए, फिर आपका भ्रम टूट जाएगा, वास्तव में आप ज्ञानी महात्मा हो जाएंगे और फिर मैं स्वयं आपको अपना गुरु बना लूंगा। जब आप मेरा, मेरे आराध्य और अपने आराध्य की समीक्षा करेंगे तो आपके सामने कुछ ऐसे निष्कर्ष निकलेंगे :-
1- मुझमें (धर्मगुरु हुलेश्वर, में) भी धार्मिक योग्यता कम नहीं है।
2- मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर) भी ढोंग ही कर रहा हूँ और ढिंढोरा पीट रहा हूँ।
3- मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर) भी आपको और आपके आने वाले पीढ़ी को धार्मिक रूप से गुलाम ही बनाना चाह रहा था।
4- मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर) भी आपको और आपके आने वाले पीढ़ी को धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से बांधकर ही रखना चाहता हूँ।
5- मैं (धर्मगुरु हुलेश्वर) बिना प्रचारक, बिना प्रचार सामग्री और बिना ब्रांड अम्बेसडर के आपको धर्मगुरु मानने को कह रहा था, इसलिए आप मुझे धर्मगुरु नही मान रहे हैं।
माफीनामा : प्रिय, पाठक साथियों इस लेख को लिखने के पीछे मेरा केवल इतना ही कहना है कि यदि कोई व्यक्ति धर्म के नाम पर मेरे जैसे आपके साथ छल कपट कर रहे हो तो उसे परखिए और सुरक्षित रहिए। कुछ लोग बाबा और गुरु बनने के नाम पर समाज के साथ बहुत गलत किया है कुछ फर्जी लोग सलाखों के पीछे भी हैं, बहुत सलाखों के पीछे जाने वाले भी हैं। जो सलाखों के पीछे जाने वाले हैं उन्हें पहचानने की आपको तर्कशक्ति मिले इसीलिए मैंने इस लेख को लिखा है। मेरा उद्देश्य किसी भी व्यक्ति के धार्मिक आस्था को ठेस पहुचाना नहीं है, इसके बावजूद यदि आपको मेरा मत अच्छा न लगे तो आपसे आपके चरणस्पर्श करके माफी मांगता हूं।
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