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Saturday, May 25, 2019

प्रकृति का सिद्धान्त अर्थात नैसर्गिक सिद्धान्त ही न्याय है, सच्चा धर्म और सर्वोच्चतम् जीवन शैली है - HP Joshi

प्रकृति का सिद्धान्त अर्थात नैसर्गिक सिद्धान्त ही न्याय है, सच्चा धर्म और सर्वोच्चतम् जीवन शैली है - एचपी जोशी

समग्र ब्रम्हाण्ड में लाखों ज्ञात/अज्ञात धर्म हैं, जो छोटे छोटे कबिलों के सरदार से लेकर ईश्वर द्वारा स्थापित माना जाता हैं। निःसंदेह ये सभी धर्म स्थापना के दौरान प्रकृति के सिद्धान्त के अनुकूल ही रहे होंगे, परन्तु बाद में अच्छे-बूरे लोगों के सम्पर्क में आने के बाद लगातार बदलते रहे हैं इसलिए हम कुछ धर्मों को नैसर्गिक सिद्धान्तों के विपरित पाते हैं। वर्तमान में अधिकांश धर्मों के तथाकथित रखवाले भी है जो मौजूदा स्थिति में व्याप्त बुराईयों, अधार्मिक सिद्धान्तों को बदलने के स्थान पर संरक्षित करने के लिए हिंसा फैलाने के लिए उत्तरदायी हैं। 

ऐसे स्थिति में सच्चे मानव धर्म की पुनस्र्थापना के लिए मैं धार्मिक नेताओं से अपील करता हूं कि वे मौजूदा धर्म में व्याप्त बुराईयों, अधार्मिक सिद्धान्तों को बदलने का आवश्यक पहल करें। ताकि उनका धर्म मौलिक धर्म अर्थात प्रकृति के सिद्धान्त के अनुकूल हो सके।

मै मानव समाज से भी अनुरोध करता हूं कि वे अपने अंतरात्मा के अनुकूल धर्म को मानें, तथाकथित धर्म के चक्कर में आकर मानवता के खिलाफ, मानव-मानव के बीच भेदभाव, छूआछूत, घृणा और नफरतें न करें। क्योंकि समस्त मनुष्य का जन्म समान प्रक्रिया से होती है जो एक ही प्रकृति द्वारा पोषित हैं, जिस प्रकृति द्वारा हम अभिसिंचित हैं वह प्रकृति हम सभी मानव से समान व्यवहार करती है, किसी से भेद नही करती है। यह प्रकृति ही देवता है जो सबको समान रूप से देती है, ईश्वर है जो समस्त ऐश्वर्य का कारण है, परमात्मा है जो समस्त आत्माओं की हेतु है। 

आपसे पुनः अनुरोध है आओ आज संकल्प लें कि हम प्रकृति के सिद्धान्तों के अनुकूल ही व्यहार करेंगे, इसके विपरित कृत्य नही करेंगे। मानव-मानव को एक समान मानेंगे और सच्चे अर्थों में मनुष्य बनकर रहेंगें नैसर्गिक सिद्धान्त को अपने धर्म में शामिल करेंगे। क्योंकि प्रकृति का सिद्धान्त अर्थात नैसर्गिक सिद्धान्त ही न्याय है, सच्चा धर्म और सर्वोच्चतम् जीवन शैली है।

जो किसी दूसरे व्यक्ति/मनुष्य से घृणा अथवा नफ़रत करते हैं, उन्हें कारणों/मापदण्ड की समीक्षा करनी चाहिए, कि क्या उनका मापदण्ड नैसर्गिक (प्रकृति) के सिद्धांत के अनुकूल है?

यदि, आपका आचरण नैसर्गिक सिद्धांतों के अनुकूल है तभी आप सच्चे अर्थों में मानव हैं। अन्यथा आपसे अनुरोध है कि आप नैसर्गिक सिद्धांत को समझें, यही न्याय है, यही सच्चा धर्म है और यही सर्वोत्तम मानव जीवन शैली भी है। 


(एचपी जोशी)
अटल नगर, रायपुर

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