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शनिवार, दिसंबर 21, 2019

अंधभक्ति और कुरीतियों की शुरुआत कैसे होती है? - काल्पनिक स्वप्न पर आधारित लेख - एचपी जोशी

अंधभक्ति और कुरीतियों की शुरुआत कैसे होती है? - काल्पनिक स्वप्न पर आधारित लेख - एच पी जोशी

आइए अंधभक्ति और कुरीतियों की शुरुआत कैसे हुई थी इसे समझने के लिए मेरे पिछले जन्म की एक काल्पनिक कहानी पढ़ते हैं ताकि हमें समझ में आ सके कि किसी भी देश, धर्म अथवा समाज में किस तरह से अंधभक्ति और कुरीतियों की शुरुआत होती है।

पिछले कुछ जन्म पहले की बात है, मुझे उस जनम में खैरात की खाने की आदत थी। बड़ा गणितज्ञ जैसे आदमी था, बड़ा कुटिल बुद्धि वाला व्यक्ति था। मैं अपने आदत के अनुसार महीने में कम से कम 05 लोगों के साथ जरूर ठगी करता ताकि बड़े मज़े से मेरा जीवन चलता रहे।

पूस की माह थी, तिथि ठीक से याद नहीं आ रही है। तब अंग्रेजी कैलेंडर भी नहीं आया था। प्रातः लगभग 4बजे की बात है देखा कोहरा छाया हुआ था और आशंका थी कि कोहरा अभी और अधिक घना होने वाला था। मैंने गणित लगाया अपने लोगों रिश्तेदारों से कहा आप या तो मेरे बातों से सहमत होना या बैठक में मत आना। मैं एक महान गणित का रचना कर चूका हूं, प्रेक्टिकल करना है मुझे। सभी मेरे बात मान गए, मैंने "कचरू" हाका वाले को तत्काल बुलवाया, वह दौड़ता हुआ आया।

मैंने अपने कबिले सहित पास के 7कबिले वाले बड़े बुजुर्ग, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को एकत्र होने के लिए हाका लगवाया। सुबह के 7बजे के पहले ही मेरा सभा शुरू हो गया लगभग 25 कोरी से अधिक वयस्क सहित 40 कोरी लोग एकत्र हो गए।

सभा में गणित के सूत्र फिट ही कर रहा था कि पता चला घना कोहरा हटने वाला है मैंने सूत्र और कठिन करने के बजाय थोड़ी जल्दबाजी से काम लिया, बोला "अब जो मैं आप लोगों को बताने जा रहा हूं बड़ी धैर्य से बड़ी निष्ठा और विश्वास से सुनना और मानना, कहीं कोई चालाकी या अविश्वास नहीं करना आपकी अविश्वास पूरे धरती को काल के आगोश में डूबो सकती है। इसलिए सावधान रहना और पूरे ईमानदारी से ईश्वर से प्रार्थना करना कि वह हमारी मातृभूमि की, हमारी धरती की रक्षा करे। एक भी व्यक्ति का अविश्वास हमें सदा सदा के लिए समाप्त कर देगी। इसलिए सावधान रहना, कोई गणित बनाने की प्रयास मत करना।"

सबने हामी भरी! कोई पापी ही स्वरानंद पापोनाष्क महराज के आदेश का अवहेलना करेगा।

मैंने बताया अभी रात के तीसरे पहर में ही एक दिव्य विमान आया, जिसमें दिव्य पुरुष और स्त्रियां थी, स्वेत वस्त्र में साक्षात् चंद्रमा जैसे तेजस्वी दिखने वाली देवी ने मुझे कहा है कि "तुम अभी सूरज के सिर पर चढ़ने के पहले ही सभी मनुष्य को धर्म, कर्म और दान का संकल्प लेने के लिए मना लो, प्रकृति की रक्षा और पंचतत्व को ईश्वर मानने पर राजी कर लो नहीं तो आज सायं तो होगी, रात भी होगी मगर रात के ठीक तीसरे पहर के बाद दूसरा घड़ी नहीं होगी, पूरी धरती एक अंधकार में समा जाएगी, सूर्य चंद्रमा उगना बंद हो जाएंगे, हवा बर्फ बनकर जम जाएगी, पानी जहर में बदल जाएगी और धरती अस्थिर हो जाएगी।" उन्होंने धर्म, कर्म और दान के तरीके भी बताए हैं, यदि आप सभी चाहते हैं कि हम सब आज रात तीसरे पहर के बाद भी जीवित और सुरक्षित रहें, तो उनके बताए इस तीन संकल्प को दोहराना होगा। बताओ? सहमत हो!

एक स्वर में सभी ने सहमति दी और मेरा जय जयकार करने के साथ ही सबने मुझसे कृपा करने की प्रार्थना शुरू कर दी। कुछ विद्वानों ने तो मुझे साक्षात् ईश्वर का अवतार घोषित कर दिया।

मैंने 03 संकल्प दोहराने के लिए आदेश दिया और बताया कि ये तीनों संकल्प सच्चे मन से लेने से जल्दी ही धरती अपने सामान्य स्थिति में आ जाएगी और हम धरती, सूर्य, चंद्रमा, जल, वायु और अपने जीवन को बचाने में सफल हो जाएंगे, आप सबमें यदि कोई 10 व्यक्ति भी सच्चे मन से संकल्प नहीं लेगा तो हम कल की सूर्योदय नहीं देख पाएंगे। ऐसा कठोर धमकी दिया और पुनः आदेश दिया, चलो जल्दी से अपना अपना आंखें बंद करो और संकल्प दोहराएं :-
1- मैं सूर्य और चंद्रमा को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं, कि मैं सदैव धर्म, कर्म और दान के लिए अपने प्राणों की आहुति देने तक समर्पित रहूंगा/रहूंगी।
2- मैं अमृत रूपी जल, आत्मा रूपी वायु और स्वर्ग रूपी अगास को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं कि मैं स्वरानंद पापोनाष्क महराज के आदेशों का किसी भी शर्त में अवहेलना नहीं करूंगा, यदि ऐसा करूं तो नरक का भागी होऊं।
3- मैं अपनी माता और जन्मभूमि को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं कि यदि मैं भगवान के इच्छा के खिलाफ नहीं जाऊंगा और सच्चे मन, वचन और कर्म से भगवान स्वरानंद पापोनाष्क महराज के सेवा के लिए समर्पित रहूंगा। यदि ऐसा किया तो मुझे अगले जनम कीड़े मकोड़े के मिले।

सभी ने संकल्प दोहराया, अब संकल्प दोहराने के साथ ही मैं अपने काबिले के भगवान हो चुका था। संकल्प पूरा हुआ ही था, कि मेरा पुत्र तत्वम मुझे जगाने लगा और मुझसे खाने के लिए संतरा मांगने लगा।

जागकर देखा मैं अपने बेडरूम में ही सोया हुआ था, यहां कोई सभा नहीं था, मैं किसी कबिले का भगवान नहीं था, कोई आसपास के गांव के लोग नहीं आए थे। स्वप्न में संकल्प पूरा होने तक नहीं जगाने के लिए मेरे पुत्र तत्वम को धन्यवाद्।

उल्लेखनीय है कि जब मै स्वप्न और निद्रा त्यागकर चेतन अवस्था में आया तब नवा रायपुर में आज भी घना कोहरा छाया हुआ है, कोई 15मीटर दूर खडा व्यक्ति भी पहचान से परे हो रहा है, लगभग 40-50 मीटर दूर तो कोई कुछ दिखाई ही नही दे रहा है।

"काल्पनिक स्वप्न पर आधारित लेख", यदि किसी व्यक्ति अथवा समाज के आस्था को इस लेख पढकर चोट पहुंचती हो, तो लेखक क्षमाप्रार्थी है। HP Joshi

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