"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।


गुरुवार, सितंबर 14, 2023

चाँद की सैर; दुष्ट हुलेश्वर् जोशी की कथा (एक अनोखी और रोचक कहानी)

चाँद की सैर; दुष्ट हुलेश्वर् जोशी की कथा

दिनाँक 14-09-2023
आज रात्रि 2 बजे की बात है, मुझे नींद नहीं आ रही थी बेचैनी के कारण मैं पृथ्वी से घूमने के लिए निकल पड़ा। चाँद में कदम रखा ही था कि एक मोरनी के जोर-जोर से रोने और चीखने-चिल्लाने की आवाज सुनाई देने लगी। आवाज को फॉलो करते हुए जानने की कोशिश किया तो पता चला सूर्य में कोई मोर मोरनी के साथ जबरदस्ती क्रूरता कर रहा है। मैं उसे बचाने के लिए सूर्य की ओर निकाल पड़ा। किन्तु अँधेरी रात्रि के कारण सूर्य बेहद शीतल और बर्फीली हो गई थी; सूर्य में मेरा कदम रखना मुश्किल हो रहा था। असहनीय ठंड के कारण खुद को बर्फीली ठंड से बचाने के लिए वापस धरती आया अपना जैकेट, मफ़लर, दस्ताने और स्पोर्ट्स जूते पहना और दौड़ते हुए फिर से सूर्य के लिए निकल पड़ा। मैं सूर्य पहुँचा तब मोरनी अंतिम सांस ले रही थी। मुझे देखते ही पहचान गई कि मैं कुछ क्षण पहले जब उनके साथ क्रूरता हो रहा था तो सूर्य के नजदीक से वापस लौट गया था। वह दुखी होकर बोली "हे स्वार्थी, निकम्मे और दुष्ट हुलेश्वर् जोशी आपने मुझे बचाने के बजाय जानबूझकर मुझे मरने के लिए छोड़ दिया। जबकि आपको भली-भांति ज्ञात है कि खुद को सर्दी से बचाने से पहले मेरी जान बचाना तुम्हारा सर्वोच्च कर्तव्य था, इसके बावजूद मुझे मरने को छोड़ दिया था। अतः मेरा श्राप है अभी के अभी तुम रेंटहा बन जाओ।"

मैंने हाथ जोड़कर अपने अपराध के लिए मोरनी से माफ़ी माँगा। मोरनी बहुत दयालु थी। मोरनी श्राप से मुक्ति का मार्ग बताते हुए बोली "तुम धरती में जाकर सेट्रिजिन, डेक्सोना और पैरासिटोमोल की टेबलेट लेकर खा लेना, तुम्हारी सर्दी और एलर्जी समाप्त हो जाएगी।"

मैं नाक पोंछेत-पोंछते और सिरकते हुए पृथ्वी की ओर वापस लौट रहा था तभी शुक्र ग्रह से टकरा गया। फिर क्या था, दूसरी बार गलती करते हुए गुस्से से शुक्र को फूटबॉल की तरह जोर से एक लात दे मारा। जिससे मेरे पैर में भी चोंट आ गई, मैं दर्द के मारे जोर से चीखा और पैर पकड़कर बैठ गया। मेरी बेटी दुर्गम्या मेरी आवाज सुनकर बोली "पापा, क्यों हल्ला करते हैं सोने दो ना, हमें सुबह स्कूल जाता पड़ता है।" "सॉरी बेटी" बोलकर मैं फिर से अपने बिस्तर में सो गया, क्योंकि मुझे पता चल गया कि मैं कहीं भ्रमण-श्रमण करने नहीं गया था बल्कि अपने बिस्तर में पड़ा सोया हुआ फालतू के सपने देख रहा था। 

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