"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।

शुक्रवार, दिसंबर 20, 2019

अबोध विचारक और अंगूठाछाप लेखक होने का भी अपना मजा है - एचपी जोशी

अबोध विचारक और अंगूठाछाप लेखक होने का भी अपना मज़ा है - एचपी जोशी

लेखन और रचना के क्षेत्र में मैं वर्ष 1997-98 में ही जब कक्षा-7वीं का छात्र हुआ करता था तब से ही अपने बडे भैया श्री देव प्रसाद जोशी का नकल करते करते शुरू कर दिया था, हालांकि उस दौर में प्रायः अपने बडे भैया का कविता चुराकर अपने दोस्तों में होशियार बनता था और कुछ शायरी वगैरह लिखता भी तो वह भी चोरी से, कहीं बाबुजी न पकड लें, भैया यह न जान ले कि मैं शायरी लिखता हूं। चूंकि ग्रामीण परिवेश में जीवन जीने वाला अबोध छात्र और घुमंतू लडका था, मेरा शायरी साहित्य के कसौटी से परे हुआ करता था। वर्ष 2000 तक अपने शायरी लिखने के कारण अपने दोस्तों में कुख्यात हुआ करता था, इसी कारण बडे भैया से डांट भी खानी पडी, धमकी भी मिला और उन्होनें सही मार्ग दिखाया कविता और लेख का क, ख, ग सीखाया। आज मैं जो भी हूं चाहे लेखन के क्षेत्र में या फिर चाहे सेवा के क्षेत्र वह मैं अपने बडे भैया श्री देव प्रसाद जोशी के बदौलत ही हूं। एक बात तो भूल ही रहा था सायद वर्ष 1993-94 की बात होगी जब हमारे घर में कुंआ का जोडाई चल रही थी, लगभग 12-13 फिट ही जोडाई हुआ था लगभग पानी के भराव से थोडा कुछ आधा-एक फिट अधिक तब उसमें मैं गिर गया था, यदि मेरे बडे भैया न होते तो आज मैं न होता। उन्होनें मेरे लम्बे घने बाल और हांथ पकडकर बडी मुश्किल से निकाला था हांलांकि आज मेरे बाल घने भी नही हैं और न तो मैं लम्बा रखता हूं।

पहले मैं वर्ष-2001 से कंप्यूटर का इस्तेमाल करना शुरू किया, परन्तु लेखन और कविता इससे दूर कलम और काॅपी में ही रहती, फिर वर्ष-2009 में जब बडे भैया ने मुझे लेपटॉप गिफ्ट दिये तब से अपना लेख कलम काॅपी के बदले सीधे लेपटाॅप में करना शुरू किया, लेपटाॅप में दोनों हाथ के सारे अंगुली और अंगूठे से लिखता था। मेरे एक अनन्य मित्र श्री दिवाकर मिश्रा जी के प्रेरणा से वर्ष 2013 में जब स्मार्टफोन खरीद लिया तब से यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में अंगूठाछाप प्रोफेसर हो गया हूं। हांलांकि आज भी कविता को कलम काॅपी में ही लिखता हूं। मजे की बात यह है कि स्मार्टफोन ने टाॅयलेट टायमिंग को भी उपयोगी बना दिया है, मैं कई बार अपने बचे हुए लेख टाॅयलेट में ही लिखता हूं। मैं शुक्रगुजार हूं श्री मिश्रा जी का जिन्होने मुझे स्मार्टफोन प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में मेरी पहली ज्वायनिंग डिपार्टमेंट ऑफ स्क्रेब बुक में वर्ष 2009-10 में हुई थी, तब तक फेसबुक मुझे अच्छा नहीं लगता था, फिर डिपार्टमेंट ऑफ स्क्रेब बुक बंद होने के कारण मुझे मजबुरन वर्ष 2011 में डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में ज्वायनिंग लेना पडा, इसके साथ-साथ 2012 में डिपार्टमेंट ऑफ ब्लाॅगर में ज्वायनिंग ले लिया था और अभी वर्ष 2013 से डिपार्टमेंट ऑफ वाट्सएप्प में भी सक्रिय हूं। उल्लेखनीय है कि डिपार्टमेंट ऑफ स्क्रेब बुक में मुझे मेरे अनन्य मित्र श्री परमेश्वर निषाद के मार्गदर्शन और सहयोग से ज्वायनिंग मिला था।

यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में कोई वेतन नहीं मिलता, कोई भत्ता नहीं मिलता कोई विशेष सुविधा अथवा कोई लाभ नहीं मिलता। फिर भी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपना समय और बुद्धि का सदुपयोग करता हूं ताकि मेरे स्टूडेंट्स इसका फायदा उठा सकें, कोई किसी के बहकावे में न आ जाए।

जब तक मैं पेन वाला लेखक कवि था, आईएसबीएन नंबर का इंतजार किया, संपादक और प्रकाशक का प्रतीक्षा करता रहा। कोई मान्यता नहीं मिला, मगर अब अंगूठाछाप लेखक कवि होने के कारण मेरा सारा का सारा लेख, मेरा सारा का सारा कविता पूर्ण होने के पहले ही बिना संपादक, बिना आईएसबीएन के प्रकाशित हो जाता है। बाकायदा यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में लोगों को निःशुल्क अध्ययन और समीक्षा करने, अपनी प्रतिक्रिया देने का अवसर भी मिलता है। हां यह बात तो हानिकारक ही है कि कभी कभी यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया के स्टूडेंट्स और अन्य प्रोफेसर्स के निंदा और आक्रोश का सामना सीधा सीधा करना पड़ता है, कई बार बखेड़ा खड़ा हो जाता है कई प्रोफेसर को माफी मांगनी पड़ जाती है, मुझे भी अपना अंगूठा चलाकर ओवरराइटिंग करना पड़ता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया के डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में अधिक स्टूडेंट्स एडमिशन लेते हैं प्रोफेसर भी बहुत हैं ज्ञान का भंडार है यह सेक्टर मगर डिपार्टमेंट ऑफ ट्विटर में स्टूडेंट्स कम हैं प्रोफेसर अधिक हैं। मेरा काम प्रोफेसरी का है उपर से नौसिखिया तो डिपार्टमेंट ऑफ ट्विटर में मेरा क्या काम, सो मुझे डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में काम करने, लेक्चर देने में अच्छा लगता है। डिपार्टमेंट ऑफ टेलीग्राम में भी ज्वाइन करने का प्रयास किया मगर सफल नहीं हो सका, वैसे डिपार्टमेंट ऑफ वॉट्सएप में भी काम कर लेता हूं मगर समस्या यह है कि उसमें गोपनीयता अधिक है हर क्लासरूम के लिए अलग अलग क्लास देना पड़ता है उपर से रिकॉर्डिंग का प्रावधान नहीं है इसलिए डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में लिखना अच्छा लगता है।

डिपार्टमेंट ऑफ फेसबुक में अरबों अंगूठाछाप प्रोफेसर हैं जिसमें से कुछ प्रोफेसर अफवाहें फैलाने का भी काम करते हैं वैसे ये अफवाहें फैलाने के लिए सभी डिपार्टमेंट में सक्रिय रहते हैं इनके लिए डिपार्टमेंट ऑफ वॉट्सएप अधिक सुरक्षित माना गया है।

एक मज़े की बात तो ये है कि यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में प्रोफेसर बनने के लिए किसी भी प्रकार के डिग्री हासिल करने की जरूरत नहीं पड़ती, कोई नेट या स्लेट पास होना नहीं पड़ता, अपने विषय में पीएचडी और एमफिल भी नहीं, मास्टर डिग्री, बेचलर डिग्री, इंटरमीडिएट, इंटर/ मैट्रिक, मिडिल या प्राइमरी किसी भी तरह के प्रमाणपत्र अथवा अंकसूची की आवश्यकता नहीं होती, यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया में प्रोफेसर बनने अथवा स्टूडेंट्स के रूप में एडमिशन लेने के लिए केवल स्मार्टफोन धारक होने की जरूरत है। इसलिए यूनिवर्सिटी ऑफ सोशल मीडिया के प्रोफेसर असली तो दूर फर्जी सर्टिफिकेट, फर्जी डिप्लोमा और फर्जी डिग्री के भागमभाग से दूर रहते हैं।

यह लेख व्यंग और सच्ची घटना पर लिखी गई आप बीती है, फिर भी यदि किसा व्यक्ति अथवा समाज के आस्था अथवा कानून का उल्लंघन होता हो तो लेखक इसके लिए पूर्व क्षमाप्राथी है।

1 टिप्पणी:

अभी खरीदें 23% की छूट पर VIVO 5G मोबाइल

महत्वपूर्ण एवं भाग्यशाली फ़ॉलोअर की फोटो


Recent Information and Article

Satnam Dharm (सतनाम धर्म)

Durgmaya Educational Foundation


Must read this information and article in Last 30 Day's

पुलिस एवं सशस्त्र बल की पाठशाला

World Electro Homeopathy Farmacy


"लिख दूँ क्या ?" काव्य संग्रह

"लिख दूँ क्या ?" काव्य संग्रह
Scan or Click on QR Code for Online Reading Book

WWW.THEBHARAT.CO.IN

Important Notice :

यह वेबसाइट /ब्लॉग भारतीय संविधान की अनुच्छेद १९ (१) क - अभिव्यक्ति की आजादी के तहत सोशल मीडिया के रूप में तैयार की गयी है।
यह वेबसाईड एक ब्लाॅग है, इसे समाचार आधारित वेबपोर्टल न समझें।
इस ब्लाॅग में कोई भी लेखक/कवि/व्यक्ति अपनी मौलिक रचना और किताब निःशुल्क प्रकाशित करवा सकता है। इस ब्लाॅग के माध्यम से हम शैक्षणिक, समाजिक और धार्मिक जागरूकता लाने तथा वैज्ञानिक सोच विकसित करने के लिए प्रयासरत् हैं। लेखनीय और संपादकीय त्रूटियों के लिए मै क्षमाप्रार्थी हूं। - श्रीमती विधि हुलेश्वर जोशी

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कैसे करें?

Blog Archive

मार्च २०१७ से अब तक की सर्वाधिक वायरल सूचनाएँ और आलेख