"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।


सोमवार, जून 09, 2025

कबीरा खड़े दुआरी म दाई, कानो-कान चेतावत हे - काव्य संग्रह राम-राम के बेरा "RAM-RAM KE BERA" से साभार


कबीरा खड़े दुआरी म दाई, कानो-कान चेतावत हे।

कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।
हुलेश्वर जोशी मुरूख बनके; दगेबाज ल नरी धरावत हे।।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।
हुलेश्वर जोशी मुरूख बनके; दगेबाज ल नरी धरावत हे।।

जात झन पुछिहौ साधु के संगी; पुछ लेहव गियान।
सगे नता जम्मों जीव संग संगी; मनखे-ल-मनखे मान।।
वो कपटी पापी मन तोला; नकली बैतरणी देखावत हे।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।।

कबीरा कहै ‘‘झन माछी खाबे।’’ नहीं त मुरूख पछिताबे।
सरग-नरख कहूँ नई हे संगी; गहिरा पानी म बुड़ जाबे।।
नई मानच तैं तभो ले संगी; सतगुरू तोला समझावत हे।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।।

जीव हनैं सो पाप है; अहिंसा धरम सार।
कुकरी काटत हे हुलेश्वर जोशी; चढ़े फरारी कार।।
नई मानईया बर का उदिम करौं ‘‘मैं’’ दाई; सुमता घर ले नंदावत हे।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।।

फोही बिचारा नई जानै दाई; बईरी ल मित बनावत हे।
वो लालची पाखंडी मन दाई; तत्वम घलो ल डरूहावत हे।
दलदली म बुड़त जात हे झमलू टूरा; तेनो ल निकालत हे।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।।

कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।
हुलेश्वर जोशी मुरूख बनके; दगेबाज ल नरी धरावत हे।।


(हुलेश्वर प्रसाद जोशी)
दिनांक 09-06-2025
गरांजी, नारायणपुर

यह कविता (शीर्षक : कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।) श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी द्वारा लिखित एवं शीघ्र प्रकाशनाधीन काव्य संग्रह राम-राम के बेरा "RAM-RAM KE BERA" की कविता है। कवि की पहली प्रकाशित काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?" है। 

शुक्रवार, जून 06, 2025

देख तो, देख दाई; ये कईसन दिन ह आवत हे : काव्य संग्रह राम-राम के बेरा "RAM-RAM KE BERA" से साभार


देख तो, देख दाई; ये कईसन दिन ह आवत हे।
तोतरा के भासन सुनके; भैरा ताली बजावत हे।


अपन ददा बर गहिरा कोड़के;
देख तो दाई, खुदे धक्का लगावत हे।
अपन-अपन सुआरथ म जम्मो झन;
देख तो दाई, कईसे बउरावत हे।
बुधमानी के माथा गाहना म धरावत हे।
अंधेर नगरी म बईठे हुलेश्वर जोशी के मुड़ी पिरावत हे।
देख तो, देख दाई, ये कईसन दिन ह आवत हे।

मांद भीतरी म, भईंसी बईठे ‘दाई’
जौरंधा पड़रू बियावत हे।
दाई नईं जानंव फेर का उछाह म;
बाजा बजात बोकरा बेचारा, बईला बिधुन नाचत हे।
बघवा काबर साधु बनके ‘धीरज धरे’
जम्मो जीव संग सुरक्छा के वादा नेभावत हे।
हिरन घलो गुरूजी बने;
बघवा पिला ल शिकार करे सिखावत हे।
देख तो, देख दाई, ये कईसन दिन ह आवत हे।

खोरबाहरा के टूरा बेवारस भईगे;
अपन बखरी म अमरबेल सिरजावत हे।
कुकरी घलो भोरहा खागे; बाज पिला ल चरावत हे।
ड़ोकरी दाई के गोहार सुन फुफु के छाती फाटत हे।
बुढ़ी माई ल देख तो दाई; बेटा बिरधा आसरम पहुंचावत हे।
देख तो, देख दाई; ये कईसन दिन ह आवत हे।

देख तो दाई का होगे ओ;
पढ़े लिखे बिगयानी घलो मन काबर ?
धुर्त, लालची अउ बलतकारी मन के;
पांव म तेल लगावत हें।
अनपढ़ मन देवता लहुट गें;
नवजात मन घलो गुरू के अवतार पावत हें।
भलमानुस गुंगा बने; अपन अंतस म खुदेच दंवा लगावत हे।
सत् कहूं कहि देहिं "दाई" जेल म बेजा ठुसावत हें।
देख तो, देख दाई, ये कईसन दिन ह आवत हे।

देख तो, देख दाई; ये कईसन दिन ह आवत हे।
तोतरा के भासन सुनके; भैरा ताली बजावत हे।

(हुलेश्वर प्रसाद जोशी)
दिनांक 06-06-2025
गरांजी, नारायणपुर

यह कविता (शीर्षक : देख तो, देख दाई, ये कईसन दिन ह आवत हे) श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी द्वारा लिखित एवं शीघ्र प्रकाशनाधीन काव्य संग्रह राम-राम के बेरा "RAM-RAM KE BERA" की कविता है। कवि की पहली प्रकाशित काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?" है। 

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