कबीरा खड़े दुआरी म दाई, कानो-कान चेतावत हे।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।
हुलेश्वर जोशी मुरूख बनके; दगेबाज ल नरी धरावत हे।।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।
हुलेश्वर जोशी मुरूख बनके; दगेबाज ल नरी धरावत हे।।
जात झन पुछिहौ साधु के संगी; पुछ लेहव गियान।
सगे नता जम्मों जीव संग संगी; मनखे-ल-मनखे मान।।
वो कपटी पापी मन तोला; नकली बैतरणी देखावत हे।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।।
कबीरा कहै ‘‘झन माछी खाबे।’’ नहीं त मुरूख पछिताबे।
सरग-नरख कहूँ नई हे संगी; गहिरा पानी म बुड़ जाबे।।
नई मानच तैं तभो ले संगी; सतगुरू तोला समझावत हे।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।।
जीव हनैं सो पाप है; अहिंसा धरम सार।
कुकरी काटत हे हुलेश्वर जोशी; चढ़े फरारी कार।।
नई मानईया बर का उदिम करौं ‘‘मैं’’ दाई; सुमता घर ले नंदावत हे।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।।
फोही बिचारा नई जानै दाई; बईरी ल मित बनावत हे।
वो लालची पाखंडी मन दाई; तत्वम घलो ल डरूहावत हे।
दलदली म बुड़त जात हे झमलू टूरा; तेनो ल निकालत हे।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।।
कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।
हुलेश्वर जोशी मुरूख बनके; दगेबाज ल नरी धरावत हे।।
(हुलेश्वर प्रसाद जोशी)
दिनांक 09-06-2025
गरांजी, नारायणपुर
यह कविता (शीर्षक : कबीरा खड़े दुआरी म दाई; कानो-कान चेतावत हे।) श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी द्वारा लिखित एवं शीघ्र प्रकाशनाधीन काव्य संग्रह राम-राम के बेरा "RAM-RAM KE BERA" की कविता है। कवि की पहली प्रकाशित काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?" है।