"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।


शुक्रवार, दिसंबर 18, 2020

मनखे-मनखे एक समान का सिद्धांत प्रतिपादित करने वाले गुरु घासीदास बाबा समूचे मानव समाज का गुरु है; केवल किसी एक धर्म या समाज की कॉपीराइट नहीं - श्री हुलेश्वर जोशी

#गुरु घासीदास जयंती विशेषांक

गुरु घासीदास बाबा द्वारा प्रतिपादित समानता और मानव अधिकार पर आधारित सभी सिद्धांत आज भी मानव जीवन के बेहतरी के लिए प्रासंगिक है; उनके सिद्धांत युगों युगों तक प्रासंगिक रहेंगे। उनके सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और शैक्षणिक आंदोलन से केवल सतनामी समाज ही नहीं वरन देश का हर जाति, वर्ण और धर्म के लोग लाभान्वित हुए हैं; खासकर दलित और महिलाएं। महिलाओं की बात होती है तो केवल महिला तक सीमित समझना न्यायोचित नहीं है क्योंकि हम सब महिलाओं के गर्भ ही जन्म लेते हैं। महिलाओं के बेहतर जीवन के अभाव में पुरुषों का जीवन भी व्यर्थ और अधूरा है, क्योंकि महिलाएं हर स्तर हर पुरुषों के जीवन और सुख में भागीदार रहती हैं। इसके बावजूद कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा गुरु घासीदास बाबा को किसी एक समाज का आराध्य/गुरु बताने का प्रयास किया का रहा है जबकि वे समूचे मानव समाज का गुरु हैं। गुरु घासीदास बाबा के मानव मानव एक समान का सिद्धांत समस्त सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों का मूल संक्षेप है। उल्लेखनीय है कि गुरु घासीदास बाबा का जन्म ऐसे समय में हुआ जब पूरे देश में सामाजिक असमानता, छुआछूत, द्वेष, दुर्भावना और घृणा जैसे घोर अमानवीय सिद्धांतो के माध्यम से समाज कई वर्गों खासकर शोषक और शोषित वर्ग में बटा हुआ था, जिसे समाप्त करने में गुरु घासीदास बाबा का अहम योगदान है।

आज गुरु घासीदास बाबा जी की 264 जयंती है, गुरु घासीदास बाबा के द्वारा सामाजिक चेतना के लिए किए गए योगदान को किसी एक लेख में समाहित कर पाना संभव नहीं है, खासकर तब जब उनके योगदान को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से इतिहास में लिखा न गया हो। कपोल कल्पित कहानी के माध्यम से उन्हें चमत्कारी पुरुष के रूप में प्रचारित कर उनके मूल योगदान को भुलाने का भी षड्यंत्र रचा गया; कुछ अशिक्षित, अज्ञानी और अतार्किक लोगों के द्वारा अपने लेख, गीतों के माध्यम से अतिसंयोक्तिपूर्ण अवैज्ञानिक साक्ष्य के माध्यम से उनके कार्य के मूल प्रकृति के खिलाफ गुरु घासीदास बाबा के चरित्र का वर्णन किया गया है। 

यदि गुरु घासीदास बाबा के जीवनी और योगदान पर लिखने का प्रयास करूं तो सम्भव है मैं भी गलत, झूठा या भ्रामक ही लिखूंगा। इसलिए मैं गुरु घासीदास बाबा के सिद्धांतों विपरीत परन्तु उनके नाम से प्रचलित हो चुके झूठ का पर्दाफाश करना आवश्यक समझता हूं; मेरे लेख से अधिकांश लोगों को आपत्ति भी होगा, मगर मैं गुरु घासीदास बाबा के लिए फैलाये जा रहे झूठ को कदापि बर्दाश्त नहीं करना चाहता। कुछ धार्मिक अंधत्व के शिकार लोगों के फर्जी आस्था का ख्याल रखना मेरी मजबूरी है इसलिए मैं खुलकर अपनी बात नही रख पा रहा हूँ, मगर सांकेतिक रूप से सत्य को सामने लाने का प्रयास जरूर करूँगा :-
1- गुरु घासीदास बाबा ने जीवन पर्यंत मूर्ति पूजा का विरोध किया और कुछ लोग उनके ही मूर्ति बनाकर पूजने लगे।

2- गुरु घासीदास बाबा ने चमत्कार और अतिसंयोक्तिपूर्ण कपोल कल्पित कहानियों का विरोध किया और लोग उनके बारे में ही चमत्कारिक अफवाहें फैला दी।
# मरणासन्न को मृत बताकर, मृत बछिया को जिंदा करने की अफवाह फैलाई गई।
# भाटा के बारी से मिर्चा लाना : गुरु घासीदास बाबा ने भाटा के बारी से मिर्च नही लाया बल्कि उन्होंने कृषि सुधार के तहत एक समय में, एक ही भूमि में, एक साथ एक से अधिक फसल के उत्पादन करने का तरीका सिखाया। जैसे - राहर के साथ कोदो, धान अथवा मूंगफली का उत्पादन। चना के साथ धनिया, सूरजमुखी, अलसी और सरसों का उत्पादन। सब्जी में मूली के साथ धनिया और भाजी; बैगन के साथ मिर्च, और मीर्च के साथ टमाटर।
# गरियार बैल को चलाना : सामाजिक रूप से पिछड़े, दबे लोगों को मोटिवेट कर शोषक वर्ग के बराबर लाने का काम किया; अर्थात दलितोद्धार का कार्य किया। इसके तहत उन्होंने ऐसे लोगों (शोषित लोगों) को चलाया, आगे बढ़ाया जो स्वयं शोषक समाज के नीचे और दबे हुए मानकर उनके समानांतर चलने का साहस नहीं करते थे उन्हें सशक्त कर उनके समानांतर लाकर बराबर का काम करने योग्य बनाया।
# शेर और बकरी को एक घाट में पानी पिलाना : गुरु घासीदास बाबा सामाजिक न्याय के प्रणेता थे, उन्होंने शोषित और शोषक दोनों ही वर्ग के योग से सतनाम पंथ की स्थापना करके सबको एक समान सामाजिक स्तर प्रदान किया, एक घाट मतलब एक ही सामाजिक भोज में शामिल किया।
# 5मुठा धान को बाहरा डोली में पुरोकर बोना : गुरु घासीदास बाबा ने बाहरा डोली में 5मुठा धान को पुरोकर बोया का मतलब कृषि सुधार हेतु रोपा पद्धति का शुरआत किया, कुछ विद्ववान मानते हैं सतनाम (पंच तत्व के ज्ञान) को पूरे मानव समाज में विस्तारित किया।
# गोपाल मरार का नौकर : गुरु घासीदास बाबा को कुछ विरोधी तत्व गोपाल मरार का नौकर मानते हैं जबकि गोपाल मरार उन्हें गुरु मानते थे। हालांकि शुरुआती दिनों में गुरु घासीदास बाबा कृषि सुधार हेतु वैज्ञानिक पद्धति के विकास करने के लिए गोपाल मरार के बारी में अधिक समय देते थे और बहुफसल उत्पादन को लागू कर मरार समाज को प्रशिक्षण देने का काम करते थे।
# अमरता और अमरलोक का सिद्धांत : गुरु घासीदास बाबा द्वारा किसी भी प्रकार से भौतिक रूप से अमरता और अमर लोक या अधमलोक की बात नहीं कहा, उन्होंने नाम की अमरता और अच्छे बुरे सामाजिक व्यवस्था की बात कही जिसे कुछ लोगों द्वारा समाज को गुमराह किया जा रहा है।
गुरू घासीदास बाबा ने पितर-पुजा का विरोध किया।
# जैतखाम को सतनामी मोहल्ले का और निशाना को सतनामी घर का पहचान बताया, स्वेत ध्वज हमें सदैव सत्य के साथ देने और सागी पूर्ण जीवन जीने का संदेश देता है। 

3- गुरु घासीदास बाबा ने जन्म आधारित महानता का विरोध किया, इसके बावजूद समाज मे जन्म आधारित महानता की परंपरा बनाकर समाज में थोपने का प्रयास किया जा रहा है। एक परिवार विशेष में जन्म लेने वाले अबोध शिशु को धर्मगुरु घोषित कर दिया जा रहा है।

4- गुरु घासीदास बाबा और गुरु बालकदास के योगदान को भुलाकर काल्पनिक पात्र को आराध्य बनाया जा रहा है। इतना ही नहीं ऐसे लोगों को भी समाज का आराध्य बताया जा रहा है जो वास्तव में आराध्य होने के लायक नहीं है या समाज में उनका कोई योगदान नहीं रहा है।

5- मनखे-मनखे एक समान : ये एक ऐसा क्रांतिकारी सिद्धांत है जो मानव को मानव बनने का अधिकार देता है। मनखे मनखे एक समान का सिद्धांत मानव के सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक विकास और समानता के लिए अत्यंत प्रभावी रहा है।

6- मानव अधिकारों की नींव : सतनाम रावटी के माध्यम से गुरु घासीदास बाबा द्वारा लोगों को बताया गया कि सभी मनुष्य समान हैं, कोई उच्च या नीच नहीं है; प्राकृतिक संसाधनों में भी सभी मनुष्य का बराबर अधिकार है।

7- महिलाओं के मानव अधिकार और स्वाभिमान की रक्षा : गुरु बालकदास के नेतृत्व में महिलाओं के मानव अधिकार और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अखाड़ा प्रथा की शुरआत कराया गया। पराय (गैर) स्त्री को माता अथवा बहन मानने की परम्परा की शुरूआत कर स्त्री को विलासिता और भोग की वस्तुएं समझने वाले अमानुष लोगो को सुधरने का रास्ता दिखाया।

8- सामाजिक बुराइयों अंत : गुरु घासीदास बाबा द्वारा समाज मे व्याप्त कुरीतियों और सामाजिक बुराइयों को विरोध करते हुए उसे समाप्त करने का काम किया गया; उन्होंने सामाजिक बुराइयों से मुक्त सतनाम पंथ की स्थापना की थी; परंतु आज जो लोग स्वयं को सतनाम पंथ के मानने वाले प्रचारित करते हैं वे समाज में सैकड़ों सामाजिक बुराइयों को सामाजिक नियम का आत्मा बना दिया है।

9- प्रत्येक जीव के लिए दया और प्रेम : गुरु घासीदास बाबा ने केवल मानव ही नहीं बल्कि अन्य सभी जीव के अच्छे जीवन की बात कही, इसी परिपेक्ष्य में उन्होंने हिंसा, नरबलि, पशुबलि और मांसाहार का विरोध किया था। इसके बावजूद स्वयं को सामाजिक /धार्मिक नेता समझने वाले कुछ लोग मांसाहार के माध्यम से जीव हत्या को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं।


गुरु घासीदास बाबा के योगदान को एक लेख में लिखकर पूर्ण समझना किसी भी लेखक की बेवकूफी पूर्ण सोच होगा; मैंने सांकेतिक रूप से संक्षेप में उनके कुछ योगदान को बताने का असफल प्रयास किया है; मगर अंत मे कुछ सवाल:- 
प्रश्न-1 : गुरु घासीदास बाबा की जयंती या big poster competition?
कुछ सामाजिक कार्यकर्ता/संगठन गुरु घासीदास जयंती के नाम पर चंदा लेकर लाखों रुपए एकत्र करते हैं और गुरु घासीदास बाबा की जयंती के नाम पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से समाज को गुमराह करने का काम करते हैं। गुरु घासीदास के जीवनी, उनके संदेश और उनके योगदान की चर्चा या उल्लेख नही करते बल्कि बड़े बड़े पोस्टर में अपने खुद के या अपने मालिकों के फोटो छपवा लेते हैं। 

प्रश्न-2: सतनामी समाज/सतनाम पंथ में कुरीतियों को फैलाने के लिए जिम्मेदार कौन?
वे जो सतनामी समाज के लोगों का धर्म परिवर्तन कराना चाहते हैं या स्वयं को बडे समाज सेवक अथवा महान साहित्यकार/ग्रंथकार घोषित करना चाहते हैं।

प्रश्न-3: सतनामी समाज मनखे-मनखे एक समान के नीव पर खडा है फिर सतनामी समाज के साथ कुछ दीगर समाज के लोग द्वन्द क्यों कर रहा है?
जो मानवता के घोर विरोधी, अमानवीय और काल्पनिक सिद्धांतों को अपना धर्म समझते हैं उन्हें समानता के सिद्धांत बर्दास्त नही हो सकते, वहीं दूसरी ओर समाज के भीतर कुछ बहिरूपिया लोग भी विद्यमान हैं, जिन्हे सतनामी समाज को दीगर समाज से लडाकर अपने राजनैनिक स्वार्थ सिद्ध करना है अथवा उन्हें दीगर धर्म में शामिल कराना है।

प्रश्न-4: क्या सतनाम धर्म को धर्म का संवैधानिक दर्जा मिलना चाहिए?
हां, मगर वर्तमान में सतनामी समाज में गुरू घासीदास बाबा के मूल अवधारणा के खिलाफ सैकडों कुरीतियां भरी पडी है, जब तक ये सारे कुरीतियां समाप्त नहीं हो जाते सतनाम धर्म को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने का कोई औचित्य नही है।

प्रश्न-5: क्या जन्म के आधार पर किसी एक परिवार के लोगों को धर्म गुरू अथवा गुरू मानकर उनका पूजा करना उचित है?
नहीं, क्योंकि जन्म आधारित महानता की अवधारणा पर आधारित जीवन जीना मानसिक गुलामी और मानसिक दिवालियेपन का द्योतक मात्र है, मानवता और समानता के लिए काम करने वाले महापुरूष ही महान हो सकते हैं।

प्रश्न-6: क्या धर्मों का विभाजन मानवता के अनुकूल है?
नहीं, क्योंकि वास्तविक रूप से धर्म अब केवल कल्पना मात्र की वस्तु बन चूकी है। मौजूदा धर्म के कुछ धार्मिक नेता आपस में वर्चस्व की लडाई लडने मशगुल हैं और धर्म को मानवता के खिलाफ एक विनाशकारी शक्ति के रूप में स्थापित कर चूके हैं।

----------------
मै अपने कठोर परन्तु सत्य और तार्किक प्रश्नों व तथ्य को उजागर करने के लिए ऐसे लोगों से माफी चाहता हूं जिनकी आस्था बहुत कमजोर है, जिनके धार्मिक आस्था और विश्वास प्रश्न से डरता है, जिनके आस्था और विश्वास सदैव अतार्किक, अवैज्ञानिक और काल्पनिक रहने में अपनी भलाई समझता है।
आलेख - श्री हुलेश्वर जोशी सतनामी, जिला नारायणपुर

1 टिप्पणी:

महत्वपूर्ण एवं भाग्यशाली फ़ॉलोअर की फोटो


Recent Information and Article

Satnam Dharm (सतनाम धर्म)

Durgmaya Educational Foundation


Must read this information and article in Last 30 Day's

पुलिस एवं सशस्त्र बल की पाठशाला

World Electro Homeopathy Farmacy


WWW.THEBHARAT.CO.IN

Important Notice :

यह वेबसाइट /ब्लॉग भारतीय संविधान की अनुच्छेद १९ (१) क - अभिव्यक्ति की आजादी के तहत सोशल मीडिया के रूप में तैयार की गयी है।
यह वेबसाईड एक ब्लाॅग है, इसे समाचार आधारित वेबपोर्टल न समझें।
इस ब्लाॅग में कोई भी लेखक/कवि/व्यक्ति अपनी मौलिक रचना और किताब निःशुल्क प्रकाशित करवा सकता है। इस ब्लाॅग के माध्यम से हम शैक्षणिक, समाजिक और धार्मिक जागरूकता लाने तथा वैज्ञानिक सोच विकसित करने के लिए प्रयासरत् हैं। लेखनीय और संपादकीय त्रूटियों के लिए मै क्षमाप्रार्थी हूं। - श्रीमती विधि हुलेश्वर जोशी

Blog Archive

मार्च २०१७ से अब तक की सर्वाधिक वायरल सूचनाएँ और आलेख