राम-राम के बेरा
"RAM-RAM ke BERA"
राम-राम के बेरा म दाई,
काँव-काँव नरियावत हें।
सत् धरम बर मिटे के
हमर परमपरा ल बिगारत हें।
लबारी अउ लोभ देखा के
देख जो दाई, ‘‘सत् ल’’
कईसे लुकावत हें।
राम-राम के बेरा म दाई,
काँव-काँव नरियावत हें।
सोसल मीडिया के दुरूपयोग करके
‘कईसे’ लोगन ल भरमावत हें।
सगरी दुनिया ल बेचे खातिर
नकली देस-भगति सिखावत हें।
गरिब दुबर के अहित करथे
‘फेर’ हतियार हमन ल बनावत हें।
राम-राम के बेरा म दाई,
काँव-काँव नरियावत हें।
धरमि बेटा मन बउरा बईठे,
उपदरवी मन धरम सिखावत हें।
भाई-ल-भाई के
खून के पियासा बनावत हें।
का जानहि हुलेश्वर जोशी
फेर अपन निता बतावत हे।
राम-राम के बेरा म दाई,
काँव-काँव नरियावत हें।
दिनांक 14.05.2025
गरांजी, नारायणपुर
यह कविता श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी द्वारा लिखित एवं शीघ्र प्रकाशनाधीन काव्य संग्रह राम-राम के बेरा "RAM-RAM ke BERA" की टाइटिल कविता है। कवि की पहली प्रकाशित काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?" है।
दिल को छू गया
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