"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।

बुधवार, फ़रवरी 22, 2023

मेरी कविता की ‘क’ - MERI KAVITA KI "K"

                                           

मेरी कविता की ‘क’ - MERI KAVITA KI "K"
 

मेरी कविता की ‘क’ हो तुम

बनकर रहो न सनम।

सच में यदि मुझसे ‘वर’ निकालोगी

तो रह न पाएँगे हम।

मेरी जान की ‘जा’ हो

“तुम” बिन न रह पायेंगे हम।

तुम रहोगी तो रहेंगे

वरना, नहीं जीने की है तुम्हारी ही कसम।।

 

शिकवे मिट जाएँगे

न रहेंगे हम शिकायत सुनने।

तुम न रहोगी

तो बताओ ?

किसे जाएँगे चुनने।

आसमाँ के भी आयेंगे ‘सारे’

कदम तेरे चुनने।

जब तुम्हीं चुन जाओगी

तो बताओ क्यों ?

“जियेंगे”

कांटे बनकर चुभने।।

 

काश !

मैं भी होता शराबी

कुछ वक्त के लिए या भिखारी।

शराबी शराब के नशे में

बहक जाते हैं। 

वो महात्मा बनकर कभी

देश के लिए भी कुछ कर जाते हैं।

और राष्ट्रपति अवॉर्ड लेकर

अब्बड़ नाम कमाते हैं।।

 

मैं शराबी बनकर

खाली बोतल फेंक रहा था।

ठंड में रवनियाँ से खुद को सेंक रहा था।

तभी एक आतंकी आया

“और”

मुझे खूब धमकाया।

मैं डरकर भागना चाहा

छटपटटाकर धोखे से उसे एक धक्का लगाया।।

अब तक आतंकी धक्का खाए रो रहा था।

मारे दर्द मौत की दुवारी सो रहा था।

कुछ ही पल में

मेरा साथी एसएलआर तान रहा था।

किन्तु देखा तो उसमें जान की कहाँ था।।

 

मेरा दोस्त इस पर अर्ज किया :

लोग शराब को शराबी की कमजोरी कहते हैं।

हम कहते हैं

वो इसी धोखे में जीते हैं।

शराबी शराब के नशे का नखरा दिखाते हैं।

और इसी बहाने

कुछ हकीकत को उजागर कर पाते हैं।।

 

शराबी कहता है :

दम हमीं में है

हमें हमसफ़र बना के रखना।

मेरी अर्थी उठे

वहाँ भी

पार्टी जमा के रखना।

नहीं रखोगे तो श्राप है

तुम शराबी होने के काबिल

‘नहीं’ रह पाओगे।

कमबख्त तू मेरा दोस्त नहीं है ‘बे !’

मुझसे स्वर्ग में

‘नहीं’ मिल पाओगे।।

 

मैं शराब पीकर आता हूँ

तो

पत्नी की करतूत को

उजागर कर पाता हूँ।

वो इस बात पर

मेरी कदर नहीं करतीं  

फिर मैं जम-जम के डंडे लगाता हूँ।।

 

वो कहती हैं –

मैं शराब पीकर ‘पाप’ कर जाता हूँ।

नशे में धुत्त

अपने बच्चों के हक को डकार जाता हूँ।।

बीच चौराहों में खड़ा होकर

अपनी शान दिखाता हूँ।

जीतने रुपये पत्नी से लूट लाता हूँ

शराब वाली पेसाब ही बहाता हूँ।।

कभी-कभी रास्ते या नाली में, पड़ा

मैं कुत्ते का पेशाब भी पी जाता हूँ।

इसके बाद भी

320 रुपये वाली बोतल पीने का

घोषणा कर जाता हूँ।।

 

मैं इस दीवानी पर इतना मरता हूँ

कि अंतिम पैली भर

चाऊँर भी बेच जाता हूँ।

सहर्ष

पत्नी की गाली “और”

डंडे खा जाता हूँ।

एक दिन की

ब्रांडेड दादिरस के लिए

महीने भर पलायन कर जाता हूँ।

अबे बुड़बख

तभी तो

अपनी गुलाबो से

प्रेम कर पाता हूँ।। 



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# काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?

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