"जीवन बचाओ मुहिम"

हत्यारा और मांसाहार नहीं बल्कि जीवों की रक्षा करने वाला बनो।

बुधवार, फ़रवरी 22, 2023

निंदक सखी - NINDAK SAKHI

     

निंदक सखी - NINDAK SAKHI 
कवि : हुलेश्वर प्रसाद जोशी 

क्या कहकर चली जाओगी 

फिर भी, मन को भाओगी।

सखी, सखी ‘अरी सखी’ कहकर

मुझे ही क्यों? रुलाओगी।

कब क्या कहकर चली जाओगी

कि; फिर से “मेरे मन को भाओगी”

 

मैं री सखी ‘निंदक’ ठहरी

नित-नित गुण मैं गाऊँगी। 

छेड़कर प्रेम के तानों को

फिर तुम सँग ही गुनगुनाऊँगी।

 

छेड़कर प्रेम के तानों को

फिर तुझ सँग गुनगुनाऊँगी।

मैं री सखी ‘निंदक’ ठहरी

वियोग को कुछ समझाऊँगी।

तेरी इन जुल्फों को छूकर

फिर से तुम्हें सताऊँगी।

  

मैं री सखी ‘निंदक’ ठहरी

नित-नित गुण मैं गाऊँगी ।

छेड़कर प्रेम के तानों को

फिर तुम संग ही गुनगुनाऊँगी ।

 

आ जायें ‘वो’ नयन झपकते

ऐसा विश्वास दिलाती हो।

फिर से उठकर क्यों?

“सखी”

उदास मुझे कर जाती हो।

इतना कष्ट देकर

“दुष्ट सखी”

क्या तुम कोई सुख पाती हो ?

 

मैं री सखी ‘निंदक’ ठहरी

नित-नित गुण मैं गाऊँगी।

छेड़कर प्रेम के तानों को

फिर तुम सँग ही गुनगुनाऊँगी। 


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काव्य संग्रह "लिख दूँ क्या ?
Poetry Collection "LIKH DUN KYA ?

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